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Dec 1, 2024

लघुकथाः 1.नागरिक, 2. हैड एंड टेल, 3.अंन्ततः

  - सुकेश साहनी

1. नागरिक

‘‘क्या हुआ,बेटी?’’ बूढ़ी आँखों में हैरानी थी।

‘‘कैसी अजीब आवाजें निकाल रहे हैं,’’ बहू ने तिनमिनाकर कहा, ‘‘गुड़िया डरकर रोने लगी है, कितनी मुश्किल से सुलाया था उसको!’’

‘‘अच्छा!’’ उन्हें हैरानी हुई, ‘‘नींद में पता ही नहीं चला, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ!’’ पैर में बँधे ट्रेक्शन की वजह से वह खुद को बहुत असहाय पा रहे थे। उन्हें गाँव की खुली हवा में साँस लेने की आदत थी। महानगरों के डिब्बेनुमा मकानों में उनका दम घुटता था। पिछले दिनों गाँव में हैडपम्प पर नहाते हुए उनका पैर फिसल गया था और कुल्हे की हड्डी टूट गई थी। खबर मिलने पर बेटा उन्हें इलाज के लिए शहर ले आया था। डाक्टरों की राय थी कि आपरेशन कर दिया जाए, ताकि वे जल्दी ही चलने फिरने लगे। दूसरे विकल्प के रूप में ट्रेक्शन था, जिसमें छह महीने तक एक ही पोजीशन में लेटे रहने के बावजूद इस उम्र में हड्डी जुड़ने की संभावना काफी कम थी, बेड सोल और पेट संबंधी विकारों का खतरा अलग से था। सभी बातों पर गौर करने के बाद बेटे ने आपरेशन कराने का फैसला किया, तो बहू ने रौद्र रूप धारण कर लिया था, ‘‘अपनी सारी बचत इनके इलाज पर लगा दोगे, तो गुड़िया की शादी पर किससे भीख माँगोगे? पड़े–पड़े जुड़ जाएगी इनकी हड्डी, फिर जल्दी ठीक होकर इन्हें कौन- सा खेतों में हल चलाना है।’’

अंतत: उनके पैर में ट्रेक्शन बाँध दिया गया था।

सोचते–सोचते फिर उनकी आँख लग गई और वे जोर–जोर से खर्राटे लेने लगे। ‘‘हे भगवान!’’ बिस्तर पर करवटें बदलते हुए बहू भुनभुनाई।

‘‘उधर ध्यान मत दो, सोने की कोशिश करो।’’ पति ने सलाह दी।

‘‘दिन भर काम में खटते रहो,’’ वह बड़बड़ाई, ‘‘जब दो घड़ी आराम का समय होता है, तो ये शुरू हो जाते हैं। कुछ करो, नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगी।’’

झल्लाकर वह उठा, दनदनाता हुआ वह पिता के पास पहुँचा और उन्हें झकझोर कर उठा दिया।

बेटे की इस अप्रत्याशित हरकत से वे भौंचक्के रह गए। ट्रेक्शन लगे पैर में कूल्हे के पास असहनीय पीड़ा हुई और उनके मुख से चीख निकल गई।

‘‘खर्राटे लेना बंद कीजिए,’’ पीड़ा से विकृत उनके चेहरे की परवाह किए बिना वह चिल्लाया, ‘‘आपकी वजह से घर में सबकी नींद हराम हो गई है।’’

बेटे से ऐसे व्यवहार की वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे। थोड़ी देर तक उनकी समझ में कुछ नहीं आया, पर सच्चाई का आभास होते ही उनकी आँखें ही नहीं पूरा शरीर डब- डब करने लगा। आँखों की कोरों से कुछ आँसू निकले और दाढ़ी में गुम हो गए।

उस रात फिर उनके खर्राटे किसी को सुनाई नहीं दिए। सुबह उनका शरीर बिस्तर पर निश्चल पड़ा था। फटी–फटी चुनौती–सी देती आँखें छत पर टिकी हुई थीं।

पिता के दाह–संस्कार के बाद मृत्यु पंजीयन रजिस्टर में शहरी बेटे ने मृत्यु का कारण लिखाया–ओल्ड ऐज।

2. हैड एंड टेल 

हम ख़ुशी से उछल पड़े, टॉस हमारे पक्ष में गया था। अब उन दो रास्तों में से किसी एक को हम चुन सकते थे।

पहला रास्ता बहुत ही बीहड़ था, उस पर चलते हुए हमें आग उगलते सूरज का सामना करना पड़ता जबकि दूसरा रास्ता समतल, साफ-सुथरा था, उसके दोनों ओर घने पेड़ों की छाया थी। उस पर चलते हुए सूर्य की ओर हमारी पीठ रहनी थी।

हमने दूसरा रास्ता चुना।

हम बेफिक्र थे। टॉस ने हमारा काम आसान कर दिया था। हमने पलक झपकते ही निर्धारित दूरी तय कर ली थी। लेकिन लक्ष्य पर पहुँचते ही हमें शॉक-सा लगा, हमारी ख़ुशी काफूर हो गई।

प्रतिद्वंद्वी टीम उस दुर्गम रास्ते से चलकर हमसे पहले ही वहाँ पहुँच कर जश्न मना रही थी। वे पसीने से तर बतर थे। श्रम की आँच से उनके चेहरे दमक रहे थे।

हमारे चेहरे बुझ गए थे। हमारे पास अपनी लम्बी होती परछाइयों के सिवा कुछ भी नहीं था।

3. अन्तत: 

"आज दफ्तर नहीं जाना हैं क्या?"

"तुम्हें दफ्तर की पड़ी है..." श्यामलाल झुँझलाकर पत्नी से बोले, "दो महीने बाद जब मैं रिटायर कर दिया जाऊँगा, तब तुम्हें आटे-दाल का भाव मालूम पड़ेगा। आज मैं ऑफिस न जाकर सेवा-मुक्ति के विरुद्ध अपने प्रत्यावेदन को अंतिम रूप दूँगा..."

"क्यों नाहक अपना खून जलाते हो, ..." पत्नी ने कहा, "अकेले तुम्हीं तो रिटायर होने नहीं जा रहे।"

"जब तुम्हारे दिमाग में भूसा भरा है तो क्यों हर मामले में अपनी टाँग अड़ाती हो?" श्यामलाल ने कुढ़कर जलती हुई आँखों से पत्नी को घूरा, "सारे कायदे-कानून हमारे लिए ही तो बने हैं। अवतार सिंह को ही ले लो, उसने शासन में अपनी ऐसी गोट फिट कर रखी है कि साठ साल की सेवा के बाद एक-एक साल के दो एक्सटेंशन ले चुका है। इन राजनीतिज्ञों को देख लो...इनके सेवा काल में उम्र कहीं आड़े नहीं आती। तुम्हें मेरी क्षमता का अभी कोई अंदाजा नहीं है, मैं आज भी तीन-चार आदमियों का काम अकेले कर सकता हूँ। आजकल के एम.ए. पास छोकरे मेरे आगे पानी भरते हैं- श्यामलाल जी यह बता दीजिए, यह एप्लीकेशन जाँच दीजिए... इस पत्र का जवाब बनवा दीजिए.। और मुझे ही रिटायर किया जा रहा है। मैं कल हर हालत में निदेशक को अपना प्रत्यावेदन भेज दूँगा।" थोड़ा रुककर बोले, "अच्छा-खासा लिखने का मूड था, तुमने चौपट करके रख दिया। थैला लाओ, ...पहले बाज़ार से सामान ले आता हूँ।"

इस बार पत्नी कुछ नहीं बोली। उसने चुपचाप थैला उन्हें थमा दिया। रोज़गार कार्यालय के सामने से लौटते हुए श्यामलाल ठिठक गए। उन्होंने हैरानी से देखा...परेशान-से इधर-उधर घूमते पच्चीस-तीस वर्षीय बूढ़े युवक-युवतियाँ ...चश्मों के मोटे-मोटे शीशों के पीछे सोचती हुई उदास आँखें...न जाने कितनी चलती-फिरती लाशें। उन बेरोज़गार युवक-युवतियों की भीड़ को एकटक देखते हुए श्यामलाल गहरी सोच में डूब गए।

सीटी की आवाज़ से श्यामलाल की पत्नी चौंक पड़ी। इस तरह की सीटी जवानी के दिनों में श्यामलाल बजाया करते थे। उसे लगा तीस साल पहले वाले जवान श्यामलाल ने घर में प्रवेश किया है। उन्होंने सामान का थैला पत्नी को दिया और मुस्कराकर बोले, "एक प्याला गर्म-गर्म चाय तो पिलाओ।" कहकर वह आरामकुर्सी पर पसर गए। अगले ही क्षण वह अपने विदाई समारोह की कल्पनाओं में खो गए थे।

2 comments:

अनीता सैनी said...

तीनों लघुकथाएँ बहुत ही सुंदर 👌
'हैड एंड टेल' हृदय में उतरती।
सादर

शिवजी श्रीवास्तव said...

अलग-अलग भाव भूमि की तीनों लघुकथाएँ प्रभावी हैं, तीनों ही संवेदना को स्पर्श करती हैं।