जो फूलों को देखकर मचलते हैं
उन्हें काँटे भी जल्दी लगते हैं।
- सुभाष चंद्र बोस
इस अंक में
अनकहीः गाँव के सरकारी स्कूल ... - डॉ. रत्ना वर्मा
संस्मरणः शांतिदूत की झलक - शशि पाधा
कविताः 1.प्यार, 2. नदी बन जाऊँ 3. उधार की जिंदगी - सुदर्शन रत्नाकर
स्वास्थ्यः छोटी झपकियों के बड़े फायदे
आलेखः सुवाक्यों की अनोखी दुनिया - डॉ. महेश परिमल
आलेखः उठने लगी आबादी बढ़ाने की माँग - प्रमोद भार्गव
प्रेरकः द्वार पर सत्य - निशांत
शब्द चित्रः हाँ धरती हूँ मैं - पुष्पा मेहरा
हाइकुः हवा बातूनी - डॉ. कुँवर दिनेश सिंह
स्मरणः रोहिणी गोडबोले - लीलावती की एक बेटी - अरविन्द गुप्ता
लघुकथाः 1. नागरिक, 2. हैड एंड टेल, 3. अंन्ततः - सुकेश साहनी
लघुकथाः खाली-खाली भरा-सा - प्रगति गुप्ता
कविताः नदी नीलकंठ नहीं होती - निर्देश निधि
संस्मरणः मेरी, वे दो शिक्षिकाएँ - अंजू खरबन्दा
कविताः बंद किताब - नन्दा पाण्डेय
व्यंग्यः मुझे भी वायरल होना है - डॉ. मुकेश असीमित
लघुकथाः जूते और कालीन - चैतन्य त्रिवेदी
कविताः उठो स्त्रियो! - डॉ. सुरंगमा यादव
बालकथाः बहादुर चित्रांश - निधि अग्रवाल
कविताः शुक्रिया नन्ही दोस्त! - डॉ. आरती स्मित
किताबेंः ‘लघुकथा- यात्रा’ लघुकथाओं का दस्तावेज - रश्मि विभा त्रिपाठी
जीवन दर्शनः रोवन एटकिंसन उर्फ़ मिस्टर बीन - विजय जोशी
4 comments:
सदा की तरह सुंदर अंक ।मेरी कविता को स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
अच्छी रचनाएंँ.. पठनीय अंक 🙏
बहुत सुंदर अंक।
बहुत सुन्दर....
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