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Dec 1, 2024

उदंती com, दिसम्बर - 2024

वर्ष- 17, अंक- 5

जो फूलों को देखकर मचलते हैं

 उन्हें काँटे भी जल्दी लगते हैं।

        - सुभाष चंद्र बोस

इस अंक में 

अनकहीः गाँव के सरकारी स्कूल ... - डॉ. रत्ना वर्मा

संस्मरणः शांतिदूत की झलक - शशि पाधा

कविताः 1.प्यार, 2. नदी बन जाऊँ 3. उधार की जिंदगी - सुदर्शन रत्नाकर  

स्वास्थ्यः छोटी झपकियों के बड़े फायदे

आलेखः सुवाक्यों की अनोखी दुनिया - डॉ. महेश परिमल

आलेखः उठने लगी आबादी बढ़ाने की माँग - प्रमोद भार्गव

प्रेरकः द्वार पर सत्य - निशांत

शब्द चित्रः हाँ धरती हूँ मैं - पुष्पा मेहरा

हाइकुः हवा बातूनी - डॉ. कुँवर दिनेश सिंह

स्मरणः रोहिणी गोडबोले - लीलावती की एक बेटी - अरविन्द गुप्ता

लघुकथाः  1. नागरिक, 2.  हैड एंड टेल, 3. अंन्ततः - सुकेश साहनी

लघुकथाः खाली-खाली भरा-सा - प्रगति गुप्ता

कविताः नदी नीलकंठ नहीं होती - निर्देश निधि

संस्मरणः मेरी, वे दो शिक्षिकाएँ - अंजू खरबन्दा

कविताः बंद किताब - नन्दा पाण्डेय

व्यंग्यः मुझे भी वायरल होना है - डॉ. मुकेश असीमित

लघुकथाः जूते और कालीन - चैतन्य त्रिवेदी

कविताः उठो स्त्रियो! - डॉ. सुरंगमा यादव

बालकथाः बहादुर चित्रांश - निधि अग्रवाल

कविताः शुक्रिया नन्ही दोस्त! - डॉ. आरती स्मित

किताबेंः ‘लघुकथा- यात्रा’ लघुकथाओं का दस्तावेज -  रश्मि विभा त्रिपाठी

जीवन दर्शनः रोवन एटकिंसन उर्फ़ मिस्टर बीन - विजय जोशी


4 comments:

dr.surangma yadav said...

सदा की तरह सुंदर अंक ।मेरी कविता को स्थान देने के लिए हृदय से आभार।

Anonymous said...

अच्छी रचनाएंँ.. पठनीय अंक 🙏

अनीता सैनी said...

बहुत सुंदर अंक।

Anonymous said...

बहुत सुन्दर....