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Dec 1, 2024

अनकहीः गाँव के सरकारी स्कूल ...

 - डॉ.  रत्ना वर्मा

पिछले दिनों एक ऐसी खबर पढ़ने को मिलीं जिससे यह सोच और बलवती हुई कि यदि मन में ठान लें तो क्या कुछ हासिल नहीं कर सकते। खबर छत्तीसगढ़ में घने जंगलों के बीच बसे रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ विकासखंड में संचालित एक शासकीय प्राथमिक विद्यालय लामीखार गाँव की है। समाचारपत्रों में यह खबर कुछ इस तरह प्रकाशित हुआ था कि- ‘सरकारी विद्यालय होने के बावजूद कई निजी विद्यालय को पछाड़ कर लामीखार में पढ़ाई कर रहे विद्यार्थी सबको मात दे रहे हैं।’ यद्यपि इस प्रकार टिप्पणी करने से सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता और हमारी शिक्षा व्यवस्था पर कई सवाल उठ खड़े होते हैं। 
परंतु लामीखार के इस स्कूल ने अन्य सरकारी स्कूलों के समक्ष एक उदाहरण पेश किया है।  जिले के अंतिम छोर पर बसा लामीखार गाँव बहुत पिछड़ा हुआ है, जहाँ जंगली हाथियों का आतंक भी छाया रहता है।  पहले लोग इस गाँव को जानते भी नहीं थे। लेकिन अब इस प्राथमिक विद्यालय के बच्चों की विशेष उपलब्धि के बाद इसकी एक नई पहचान बनी है। खास बात यह है कि इस प्राथमिक शाला के 8 बच्चों का चयन नवोदय विद्यालय में हो चुका है। इतना ही नहीं शाला के स्वच्छ वातावरण और अच्छी पढ़ाई को देखते हुए आस- पास के शहरों में रहने वाले अभिभावक गाँव में किराए का मकान लेकर अपने बच्चों को इस विद्यालय में पढ़ने भेज रहे हैं। 
यह सब इसलिए संभव हुआ है क्योंकि इस विद्यालय के शिक्षकों ने पढ़ाई के तरीकों में बदलाव तो किया ही साथ ही विद्यालय के वातावरण को भी विद्यार्थियों के लिए रुचिकर बनाया। पाठ्यक्रम में निर्धारित विषयों के अलावा भी बच्चों को सामान्य ज्ञान की शिक्षा  खेल- खेल में  दी जाती है।  धरती, आकाश, नदी, जंगल, जानवर, यहाँ तक कि गणित जैसे विषय को समझाने के लिए स्कूल परिसर में ही उनकी कलाकृतियाँ या मॉडल बना दिए गए हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि यहाँ के  शिक्षकों नें अपने निजी खर्च से बच्चों के लिए प्रयोगशाला और लाइब्रेरी सहित कई अन्य संसाधन भी जुटाए हैं। 
इस पाठशाला के शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए शिक्षक निरंजन लाल पटेल  पिछले कई वर्षों से प्रयास करते आ रहे हैं। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले बच्चों के अभिभावकों को तैयार किया ताकि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित हों। आस- पास के पर्यावरण और स्वच्छता के लिए गाँव के लोगों को भी जागरुक किया। परिसर में किचन गार्डन, ऑक्सीजोन और बागवानी के साथ अनुपयोगी वस्तुओं से गणित और विज्ञान की पढ़ाई के लिए विभिन्न उपकरण तैयार किए गए हैं। कुल मिलाकर इस स्कूल का भवन भले ही छोटा है पर पूरा परिसर बच्चों को पढ़ाई के प्रति आकर्षित करने वाले संसाधनों से भरा भड़ा है।  
 सवाल यही उठता है कि जब एक छोटे से गाँव का यह शासकीय स्कूल कम संसाधनों में भी बेहतर शिक्षा का वातावरण बना सकते हैं तो फिर अन्य स्कूल ऐसा क्यों नहीं कर सकते। आवश्यकता सिर्फ दृढ़ इच्छा शक्ति और लगन की है; परंतु यह दुर्भाग्य है कि आजादी के के बाद हम शासकीय स्कूलों की स्थिति को बजाय सुधारने के बिगाड़ते ही जा रहे हैं। 
एक तरफ तो ऐसे हजारों निजी स्कूल हैं, जिन्होंने अच्छी पढ़ाई और सुविधाओं के नाम पर लाखों की फीस वसूलते हुए शिक्षा के मंदिर को व्यवसाय बना दिया हैं। इन स्कूलों में वही बच्चे पढ़ाई कर सकते हैं, जिनके अभिभावक उतना खर्च उठाने के काबिल होते हैं और जो इस काबिल नहीं होते उनके लिए होते हैं यही सरकारी स्कूल, जहाँ सरकार न सुविधा देती न साधन न शिक्षक। हमारे देश के अनेक ऐसे ग्रामीण स्कूल हैं जहाँ एक या दो शिक्षक ही कई - कई कक्षाओं को पढ़ाते हैं।   
ऐसे ही कई कारण हैं कि शासकीय स्कूल से पढ़ाई कर उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या गिनती में होती है और सिर्फ उदाहरण के रूप में उनका नाम लिया जाता है। आज भी हम बिल्कुल उसी तरह  धरमजयगढ़ स्कूल का उदाहरण पेश कर रहे हैं। यह हमारे लिए और हमारी सरकार के लिए कितने शर्म की बात है कि, यह कहकर हम खुश होंते हैं कि देखो यह बच्चा शासकीय स्कूल में पढ़ाई करने के बावजूद आज इतनी ऊँचाईं  पर पहुँचा है। जबकि होना तो यह चाहिए कि शासकीय स्कूल में पढ़ने वाला हर बच्चा एक उदाहरण बने ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए।  
सबसे पहले तो स्कूल प्रशासन को मजबूत बनाया जाए ताकि शिक्षा की गुणवत्ता पर नियमित निगरानी हो सके और शिक्षा नीति का सही क्रियान्वयन हो, शिक्षकों को शिक्षण विधियों और तकनीकों के बारे में नियमित प्रशिक्षण दिया जाए, शिक्षकों की पर्याप्त संख्या हो ताकी शिक्षक प्रत्येक छात्र पर पर्याप्त ध्यान दे सकें। इसके साथ ही स्थानीय समुदाय को स्कूलों के विकास और निगरानी में शामिल करना चाहिए, ताकि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने और उनकी शिक्षा में सहयोग करने के प्रति जागरूक हों सकें।  स्कूल के लिए पर्याप्त भवन हो, साफ-सफाई की व्यवास्था हो, पेयजल, बिजली, शौचालय और खेल-कूद की सुविधाओं को गंभीरता से लिया जाए, स्कूलों में किताबों के अलावा कंप्यूटर, स्मार्ट क्लासरूम, प्रोजेक्टर आदि आधुनिक शैक्षिक सामग्री और तकनीकी साधनों की व्यवस्था हो। 
इन बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद ही हम प्रत्येक शासकीय स्कूल को उदाहरण योग्य बना सकते हैं। लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि व्यवस्था के अंतर्गत उपर्युक्त सभी बातें आती तो हैं परंतु उनपर अमल करने में कोताही बरती जाती है। या तो इन स्थानों पर राजनिति होती है या सारी योजनाएँ भ्रष्टातार की भेंट चढ़ जाती हैं। यही वजह है कि जब धरमजयगढ़ जैसे शासकीय स्कूल के कुछ शिक्षक अपने प्रयास से ऐसा कुछ उदाहरण पेश करते हैं तो वह खबर बन जाती है।

8 comments:

भारती बब्बर said...

बहुत सही, सरकारी स्कूलों को निकृष्टता के मापदंड की संज्ञा मिलना हमारी शासकीय और सामाजिक न्यूनता का परिचायक है। धरमजयगढ़ के शिक्षक साधुवाद के पात्र हैं जो धारा के विरुद्ध जा कर सामाजिक उत्थान का कार्य कर रहे हैं। उदंती के पाठकों को उनसे परिचित करवाने के लिए आपका आभार।

शिवजी श्रीवास्तव said...

धरमजयगढ़ का विद्यालय और उसके शिक्षक श्री निरंजन लाल पटेल के प्रयास अनुकरणीय हैं, ये इस बात के द्योतक हैं कि शिक्षा पद्धति में समय और परिवेश के अनुकूल परिवर्तन की आवश्यकता है. प्रेरक आलेख।

Anonymous said...

श्रद्धेय रत्ना जी,
सादर प्रणाम !
आपने देश के भविष्य के एक अत्यंत गंभीर पहलू को उजागर किया है !
जीवन को विस्तार देने की कोशिश में हम अक्सर ख़ुद को खो देते हैं और जब हमें इस बात का एहसास होता है और जब हम ख़ुद को तलाश करने की कोशिश करते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है !

हम दूसरे के लिए जीना तो सीख लेते हैं लेकिन जिनके लिए जीते हैं उनके साथ जीना नहीं सीख पाते हैं !

व्यक्ति के जीवन में उसकी ज़रूरतें मौलिक हैं और इच्छाएं सीमित हैं तो शायद उस व्यक्ति का जीवन वर्तमान जीवन शैली की अपेक्षाकृत थोड़ा सहज और सुगम होगा !

ज़िंदगी की चकाचौंध में और उस चकाचौंध में बने रहने की दौड़ में हमें ये बात थकने भी नहीं देती की बच्चों का भविष्य किस किस तरीक़े से सुधर सकता है ! यह बात सब समझ पाते हैं या यूँ कहें कि उसके बाद ही समझते हैं या शायद तब समझते हैं जब हम कुछ खो देते हैं !

कोई रौंद सकता है सभी फूलों को लेकिन कोई भी वसंत को आने से नहीं रोक सकता !
और यही बसंत लाने के साधुवाद के पात्र है श्री निरंजन पटेल जी !
उनके ज़ज़बात और हौसले को नमन !
यह होते हैं असली हीरो !
सादर !
डॉ. दीपेद्र कमथान
बरेली !

विजय जोशी said...

आदरणीया
महात्मा गांधी ने कहा है : Live as if you have to die tomorrow and Learn as if you have to Live for ever अर्थात जियो ऐसे जैसे कल मर जाना हो और सीखो ऐसे जैसे आजीवन जीना हो।

और कहना न होगा कि ज्ञान के सबसे बड़े स्रोत तो शिक्षक ही हैं बशर्ते वे हों सांदीपनि या गुरु वशिष्ठ जैसे, जिनके लिये खुद राम ने कहा था :

- गुरु वशिष्ठ कुल पूज्य हमारे
- तिनकी कृपा दनुज रन मारे

पर अफ़सोस कोचिंग, कमाई और काले कामों में रत इस कलियुगी शिक्षक जगत में निरंजन लाल पटेल जैसे रत्न ढूंढना कोयले की खदान में हीरा ढूंढने जैसा दुष्कर कार्य है.

प्रशंसा सतही शब्द होगा। अद्भुत योगदान लफ़्ज़ों से कई गुना ऊपर योगी समान अवदान है

आपके ऐसे प्रयास जहाज के मस्तूल सदृश्य हैं, जिसके लिये हार्दिक बधाई सहित सादर प्रणाम 🙏🏽

रत्ना वर्मा said...

धन्यवाद और आभार भारती जी आपने उपर्युक्त गंभीर विषय की ओर ध्यान दिया सराहा और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की🙏

रत्ना वर्मा said...

आपने बिल्कुल सही कहा श्रीवास्तव जी, परंतु पता नहीं वह समय कब आएगा l प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद और आभार,🙏

रत्ना वर्मा said...

अदरणीय कमथान जी, आपके विचार गहराई और प्रेरणा से परिपूर्ण हैं। आपने जीवन के सार, इच्छाओं की सीमितता, और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी को जिस प्रकार व्यक्त किया है, वह प्रशंसनीय है। आपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार 🙏

रत्ना वर्मा said...

माननीय जोशी जी, आपके प्रेरणादायी विचार के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार। महात्मा गांधी के कथन और गुरु वशिष्ठ जैसे महान शिक्षकों के आदर्शों का स्मरण कराते हुए आपने शिक्षक समाज की महत्ता को जिस प्रकार रेखांकित किया है, वह अत्यंत प्रशंसनीय है।
आपके भावनात्मक और प्रेरक शब्द हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।