- डॉ. महेश परिमल
"अगर तुम कुछ नहीं कर सकते, तो चोरी ही सीख लो, सुनते हो, चोरी ही सीख लो। क्योंकि कर्म से ज्ञान उत्पन्न होता है और ज्ञान से बुरे कर्म छूट जाते हैं।" स्वामी विवेकानंद के ये विचार किसी के जीवन में क्रांति ला सकते हैं। इस तरह के सुवाक्य, आज के विचार, अनमोल बोल आदि के नाम से जाने जाने वाले वाक्य हमारे लिए सदैव ही चमत्कारिक औषधि का काम करते रहे हैं। पहले इस तरह के वाक्य बहुत ही मुश्किल से पढ़ने को मिलते थे। अपनी स्कूलों की दीवारों पर इस तरह के वाक्य अक्सर हम पढ़ा करते थे। उसके बाद इसका धीरे-धीरे विस्तार होता गया। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के भेल इलाके की सड़कों के बीचों-बीच इस तरह के सुवाक्य आज भी पढ़ने को मिल जाते हैं। अब तो सुवाक्यों की बाढ़-सी आ गई है। लोग मोबाइल पर सुबह की राम-राम के बजाय सुवाक्य डालने लगे हैं। वाट्सएप यूनिवर्सिटी से जो भी जुड़ा है, उसके सामने से रोज ही सुवाक्यों की पूरी श्रृंखला ही गुजरती है।
सुवाक्यों में एक अलग ही प्रकार की सुगंध होती है। उसे हम जैसे-जैसे पढ़ते हैं, उसकी सुगंध उतनी ही फैलती रहती है। कई वाक्य हमें तुरंत ही प्रभावित करते हैं। कई कालांतर में याद आते हैं। कई वाक्यों को हम अपने जीवन में उतारना चाहते हैं। कई वाक्य हमें आंदोलित भी करते हैं। कई बार तो हमें लगता है कि अरे! यही तो मेरे साथ हुआ है। काश...मैं इसे पहले समझ जाता। कई वाक्य हमें इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि इस पर तुरंत अमल कर लिया जाए। हम उसे अमल में लाते भी हैं। पर कुछ दिन बाद जिंदगी अपनी पटरी पर लौट आती है। सुवाक्यों की दुनिया बहुत ही छोटी होती है। हम जैसे ही पढ़ते हैं, हमारा मस्तिष्क उससे प्रभावित होता है। हमें लगता है कि यदि इसे तुरंत अमल में लाया जाए, तो हमारा जीवन आसान हो जाएगा। पर वाक्य का असर कुछ ही देर होता है। उसे अमल में लाने के कुछ देर बाद वह कहीं विलीन हो जाता है।
आजकल सोशल मीडिया में एक नए तरह के रोगी दिखाई देने लगे हैं। ऐसे लोगों को हम "मैसेज मेनिया" कह सकते हैं। उनकी पूरी कोशिश होती है कि अपने होने का प्रमाण देने के लिए वे अपने मोबाइल से अपने मित्रों को "गुड मार्निंग" या "गुड नाइट" का संदेश देना नहीं भूलते। आजकल देश में वाट्सएप यूनिवर्सिटी के अकुशल और अनपढ़ विद्यार्थी संदेशों को आदान-प्रदान करने लगे हैं, उससे ऐसा लगता है मानों देश के सभी लोग अतिशिक्षित हो गए हैं। ज्ञान का भंडार खुल गया है। हर कोई ज्ञानी बन गया है। वह एक से एक संदेश देने लगा है। सारे संदेश और उपदेश केवल देने के लिए ही होते हैं, ऐसा मानकर वह दिन भर एक से एक संदेश देने का काम करता रहता है। यदि इन संदेशों का मर्यादा में उपयोग हो, तो यह अपने विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। आजकल इस माध्यम का दुरुपयोग अधिक हो रहा है। अच्छी जानकारी कहीं दबकर रह जाती हैं, पर समाज में नकारात्मकता फैलाने वाली सामग्री बहुत ही तेजी से फैलने लगी है। फैलाने वाले ऐसे लोगों को ही "मैसेज मेनिया" कहा जाता है। ये लोग आजकल समाज में काफी प्रदूषण फैला रहे हैं।
हमारे मोबाइल में विभिन्न तरह के संदेशों की भरमार है। किसी को भी संदेश भेजा जाए, तो उसके पीछे के भाव, अर्थ भी जानना चाहिए। इस तरह के सुवाक्य हमें केवल मोबाइल में ही मिलते हैं, ऐसा नहीं है। सामान्य जीवन में हमें प्रतिदिन कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। कई चिंतकों, विचारकों, वक्ताओं, कथाकारों तथा दैनन्दिनी में होने वाले वार्तालापों से भी हमें सीखने के लिए बहुत कुछ प्राप्त होता रहता है। जिसे कुछ सीखना हो, तो वह बच्चों की तुतली वाणी से भी सीख सकता है। कई बार मूक प्राणी भी अपनी हरकतों से बिना कहे हमें बहुत कुछ सिखा देते हैं।
सामान्य रूप से हम रोज ही कई संदेशों को डिलीट कर देते हैं। इसके बाद भी कुछ संदेशों को डिलीट करते समय ऐसा लगता है कि इसे रख लिया जाए। जिसे सुरक्षित रखा जाता है, वे संदेश संतों, महान व्यक्तियों के होते हैं, इन संदेशों से हम सदैव प्रेरित होते रहते हैं। उसका अनुकरण करने की कोशिश करते हैं। संदेशों की महिमा अनोखी होती है। संदेशों को अंधानुकरण कई बार हानिकारक हो सकता है। यह समय ऐसा है, जब हमारे मोबाइल में संदेशों की बाढ़-सी आई हुई है। सुबह से शाम तक संदेशों का आना जारी रहता है। ऐसे में हमें इन संदेशों को लेकर सचेत होना होगा। हम सम्यक और तटस्थ भी बन सकते हैं। इससे हम कुछ हद तक इनसे बच सकते हैं।
सुवाक्य कई बार जीवन की दिशा ही बदल देने का माद्दा रखते हैं। कई बार उलाहने भी जीवन को नई रौशनी देने में सहायक होते हैं। उलाहनों को चुनौती मानते हुए जो प्राणप्रण से जुट जाते हैं, वे सफल होकर दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं। आज हमारे सामने जो सुवाक्य आ रहे हैं, उसे यदि ध्यान से पढ़ा जाए, तो ये भी दिन को प्रफुल्लित बनाने का काम कर सकते हैं। कई बार ये सुवाक्य हमें हताशा से भी बाहर निकालते हैं।
सुवाक्यों में एक अलग ही तरह की सुवास होती है। जैसे-जैसे उसे पढ़ा जाए, वैसे-वैसे उसकी सुगंध हमारे आसपास फैलने लगती है। पहले कई लोगों के पास एक किताबनुमा नोटबुक हुआ करती थी, जिस पर वे विभिन्न स्थानों, लोगों से प्राप्त सुवाक्यों को लिखकर उसका संग्रह तैयार करते थे। अब तक इस तरह के सुवाक्यों का विशाल भंडार है। अब तो अनपढ़ लोग भी इसका इस्तेमाल करने लगे हैं। वैसे कुछ लोग विख्यात लोगों के सुवाक्यों को अपने नाम से लिखकर अपनों को भेजने भी लगे हैं। अब दीवारों पर सुवाक्य नहीं दिखते। वाट्सएप यूनिवर्सिटी में सुवाक्यों का भंडार है। लोग अपने-अपने ग्रुप में सुवाक्यों का आदान-प्रदान करते रहते हैं। कई लोग इसे पढ़ते भी नहीं, तुरंत ही दूसरों को भेज देते हैं।
सुवाक्य तो अपनी जगह ठीक हैं, पर कई लोग इन सुवाक्यों के बीच जहर फैलाने का काम भी करने लगे हैं। लोगों को इससे बचकर रहना होगा। क्योंकि लोगों को बुरी चीजें तुरंत आकर्षित करती हैं। इसलिए जैसे ही इसकी भनक मिले, हमें सचेत हो जाना चाहिए। नहीं तो बहुत देर हो जाएगी। हमारे मोबाइल में भी सुवाक्यों को जमा करने की व्यवस्था है। इसे यदि हम नोटपेड पर जमा कर लें, तो कई बार ये हमें हताशा के सागर से निकलने में सहायता करेंगै। अंत में एक सुवाक्य से अपने विचारों को विराम...हमारी छाया जब हमारे कद से बड़ी हो जाए, तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि सूरज डूबने वाला है।
सम्पर्कः टी 3- 204, सागर लेक व्यू, वृंदावन नगर, अयोध्या बायपास, भोपाल- 462022, मो. 09977276257
1 comment:
सुन्दर आलेख, निःसंदेह सुवाक्यों की जीवन में बहुत उपयोगिता है, इस प्रकार के सुवाक्य बच्चों के मन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, संस्कार निर्मित करते हैं.. हार्दिक बधाई।
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