उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Dec 1, 2024

किताबेंः ‘लघुकथा- यात्रा’ लघुकथाओं का दस्तावेज

 -  रश्मि विभा त्रिपाठी

लघुकथा यात्रा: डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’, पृष्ठ: 122, मूल्य: 320 रुपये, ISBN: 978-93-6423-834-2, प्रथम संस्करण: 2024, प्रकाशक: अयन प्रकाशन, जे–19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली–110059

संवेदनापरक लघुकथाओं पर केंद्रित नीलाम्बरा के पुस्तक रूप संग्रह ‘लघुकथा- यात्रा’ के अध्ययन का अवसर प्राप्त हुआ। यहाँ पढ़ने के बजाय अध्ययन शब्द- प्रयोग इसलिए समीचीन है; क्योंकि यह संग्रह अध्येताओं, शोधार्थियों के लिए न केवल एक महत्त्वपूर्ण शोध सामग्री है बल्कि एक पुस्तकालय है जहाँ उन्हें संवेदना की सार्वभौमिक सत्ता की शिक्षा मिलती है, जो जीवन- जगत् के लिए अपरिहार्य है। 

आज के मशीनी युग में मानवीय संवेदनाओं का अस्तित्व मिट गया है। व्यक्ति यंत्रवत् अपने भौतिक सुख के लिए दौड़ रहा है। हर किसी के प्रति वह संवेदनहीन है।

संवेदना का महत्त्व बताते हुए संपादकीय में सम्पादक डॉ. कविता भट्ट ने लिखा है– संवेदना साहित्य की आत्मा है।

72 लघुकथाकारों की बेजोड़ लघुकथाओं से सुसज्जित यह संग्रह मानवीय मूल्यों की एक पाठशाला है।

ख्यातिलब्ध कथाकार व अनुवादक सुभाष नीरव के लेख से लघुकथा की रचना- प्रक्रिया को समझा जा सकता है।

संग्रह की पहली लघुकथा ‘राष्ट्र का सेवक’ (प्रेमचन्द) में सामाजिक विषमता व जातिवाद का चित्रण है। राष्ट्र का सेवक सबको समान मानता है; परन्तु जब उसकी बेटी निम्न जाति के युवक से विवाह की इच्छा जताती है, तो वह अपने भीतर छिपे असमानता के सच और सामाजिक मान्यताओं की विडम्बना को उजागर करता है।

लघुकथा ‘फ़र्क’ (विष्णु प्रभाकर) में जानवरों के माध्यम से आपसी मानवीय भेद के परिहार का संदेश निहित है।

अंजू खरबंदा की लघुकथाओं ‘खिड़की’, ‘खाली पलंग’ में क्रमशः सामान बेचने वालों की भावनात्मक स्थिति और ससुराल पक्ष द्वारा निर्मित सम्बन्धों को जोड़ता एक मजबूत पुल है। लघुकथा ‘ख़ूबसूरती’ (डॉ. उपमा शर्मा) समाज में व्याप्त सौंदर्य की संकीर्ण परिभाषा को चुनौती देती है। ‘जल संरक्षण’ (कमला निखुर्पा) जल संरक्षण की महत्ता और व्यक्ति के दोहरे चरित्र को उजागर करती है। 

‘कुलच्छन’ (डॉ. कविता भट्ट) सामाजिक मूल्य, धार्मिकता और व्यक्तिगत आचरण के मध्य के अंतर का आवरण हटाकर सोचने पर विवश करती है कि मनुष्य की कथनी और करनी में कितनी भिन्नता है। लघुकथा ‘हैप्पी मदर्स डे’ (कृष्णा वर्मा) आधुनिक जीवन की व्यस्तता और अकेलेपन का भाव दर्शाते हुए बहू की परिवार के प्रति संवेदनशीलता से एक भावनात्मक मोड़ लाती है।

लघुकथा ‘लड़की’ (प्रेम गुप्ता मानी) में समाज की भीतरी मानसिकता झलकती है। कथानक मानव स्वभाव का बखान करता है कि कैसे बिना जानकारी के लोग एक-दूसरे का मूल्यांकन करते हैं।

संवेदनशील लघुकथा ‘उड़ान’ (रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’) अकेलेपन और उपेक्षा का दर्द बयान करती है।  इन्हीं की ‘ख़ुशबू’ लघुकथा एक महिला की कुंठा और अकेलेपन को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर उस सामाजिक ढाँचे को दर्शाती है जिसमें महिलाओं की समर्पित भूमिका को नजरअंदाज किया जाता है; कथा के उत्तरार्ध में गुलाब जीवन की ओर बढ़ने का पर्याय है। ‘ख़ूबसूरत’ लघुकथा सिखाती है कि वास्तविक सुंदरता व्यक्ति के आंतरिक गुणों में होती है। ‘गंगा स्नान’ की वृद्ध महिला पारो गंगा स्नान के लिए रखे पैसे स्कूल निर्माण हेतु दान कर शिक्षा को व्यक्तिगत लाभ से अधिक महत्त्व देते हुए संदेश देती है कि सच्चा ‘गंगा स्नान’ उस सेवा में है, जो हम समाज के लिए करते हैं। धारणा, कमीज और टुकड़खोर भी गहन भावबोध की लघुकथाएँ हैं।

लघुकथा ‘कसौटी’ (रश्मि विभा त्रिपाठी) में विवाह संस्था के पारंपरिक नियमों पर प्रश्न करती एक युवा महिला की परिष्कृत सोच है। ‘मंजिलें लाँघता दर्द’ (शशि पाधा) लघुकथा में दादी और पोते के बीच का भावनात्मक सेतु है।

डॉ. शिवजी श्रीवास्तव की मार्मिक लघुकथा ‘इकतीसवाँ दिन’ में आज के सम्बन्धों के क्षरण का सटीक विश्लेषण है। डॉ. सतीशराज पुष्करणा की लघुकथा ‘दिखावा’ में युवा पीढ़ी का सामाजिक पाखण्ड और मानवता के प्रति एक विरोधाभासी दृष्टिकोण है।

लघुकथा (सुकेश साहनी) ‘संस्कार’ पिता-पुत्र के रिश्ते और पारिवारिक जिम्मेदारियों को दर्शाती एक गहन भावनात्मक यात्रा है, जो पहले पारिवारिक रिश्तों की उपेक्षा और फिर कर्तव्यबोध के मार्ग पर ले जाती है। ‘धुँए की दीवार’ बँटवारे और उसके परिणामों पर प्रकाश डालते हुए, अंत में पुनर्मिलन की संभावना प्रकट करती है। कथा में बेटी और चाचा के बीच का निश्छल प्रेम, बँटवारे की दीवार को भेदकर इस सकारात्मक विचार को दृढ़ करता है कि यदि प्रेम, सद्भावना हो, तो रिश्तों की दीवारें भी धुँए की तरह उड़ सकती हैं। ‘पितृत्व’ दोहरी मानसिकता को दर्शाती लघुकथा है।

लघुकथा ‘मुक्ति’ (सुदर्शन रत्नाकर) में एक बेटे के आंतरिक संघर्ष और माँ की गम्भीर मानसिक स्थिति का मनोवैज्ञानिक चित्रण है। क्या सच में मुक्ति वही थी, जो उसे चाहिए थी?

डॉ. सुषमा गुप्ता की लघुकथा ‘ज़िंदा का बोझ’ एक गहन सामाजिक, मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। हिंसक प्रवृत्ति के पीर साहब की हत्या होने पर सारे समाज का ध्यान जाता है, जबकि बेटी तक के प्रति उसकी कामुक प्रवृत्ति का किसी को पता नहीं। हिंसा झेलते हुए पल- पल मरती गुलाबो को किसी ने नहीं देखा। ‘ज़िंदा का बोझ’ शब्द में उसका भारी मानसिक संघर्ष दबा है।  

डॉ. हरदीप कौर सन्धु की हृदयस्पर्शी लघुकथा ‘ख़ूबसूरत हाथ’ में करमो का नजरिया मातृत्व और श्रम को गरिमामय बनाता है।

‘लघुकथा यात्रा’ संग्रह पाठकों को लघुकथा की अद्भुत दुनिया में ले जाता है। एक यायावर की तरह संवदनाओं की खोज में निकली संग्रह की ये उत्कृष्ट लघुकथाएँ पाठक को उस मोड़ पर ले जाती हैं, जहाँ वह एक नए दृष्टिकोण का सामना करता है। लघुकथा के विकास, तकनीकी विश्लेषण सम्बन्धी लेख, महत्त्वपूर्ण संग्रहों की समीक्षा और अनुवाद सामग्री सहेजे अध्येताओं और शोधार्थियों को लघुकथा की अनंत संभावनाओं की मंजिल की ओर ले जाती साहित्य- जगत् की इस लघुकथा- यात्रा के सम्पादन हेतु आदरणीया ‘शैलपुत्री’ जी को साधुवाद।

No comments: