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Dec 1, 2024

कविताः 1.प्यार, 2. नदी बन जाऊँ 3. उधार की जिंदगी

- सुदर्शन रत्नाकर

1.प्यार

प्यार से छू लो तो

कलियाँ

निखर आएँगी

मौसम की

पत्तियाँ हैं

लहराने दो

पतझड़

आने पर स्वयं ही

बिखर जाएँगी।

2.नदी बन जाऊँ।

मैं बरसों से

प्रतीक्षा कर रही हूँ

उस उजली धूप और

हरी दूब के लिए,

जहाँ एक नदी बहती हो

और मैं भी हिमखंड-सी पिघलती

नदी बन जाऊँ।

निरन्तर गतिशील बहती

अँजुरी-अँजुरी प्यार बाँटती

सागर की गहराइयों में

कहीं खो जाऊँ।

3. उधार की जिंदगी

घोंसला बनाने की चाह में

ज़िन्दगी भर वह

जिंदगी को ढोता रहा

पर

न तो उसे ज़िन्दगी मिली

और

न घोंसला।

टूटता रहा

वह पल-पल

जीता रहा उधार की जिंदगी।


7 comments:

शिवजी श्रीवास्तव said...

अलग अलग भाव भूमि की मार्मिक कविताएँ। हार्दिक बधाई

शिवजी श्रीवास्तव said...
This comment has been removed by the author.
अनीता सैनी said...

बहुत सुंदर कविताएँ।

नंदा पाण्डेय said...

बहुत उम्दा कविताएं हैं मैम की 👌
खूब बधाई 🌹

भीकम सिंह said...

बहुत सुंदर कविताऍं, हार्दिक शुभकामनाऍं।

विजय जोशी said...

आदरणीया
बहुत ही सुंदर एवं संवेदनशील भाव समाहित रचनाधर्मिता हेतु मेरी हार्दिक बधाई। सादर

Anonymous said...

विजय जोशी जी, शिवजी श्रीवास्तव जी,भीकम सिंह जी, नंदा पांडेय जी, अनिता सैनी जी प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार ।सुदर्शन रत्नाकर