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Jun 1, 2024

लघुकथाः धारणा

 - डॉ. पद्मजा शर्मा

मैं और मेरी देवरानी सुधा खाना खाने के बाद रात को वाकिंग पर जाते हैं। हम घर के सामने वाला चौराहा पार करते हैं। फिर माता जी के मंदिर के सामने से, इंजीनियरिंग हॉस्टल के आगे से होते हुए सरकारी बंगलों के सामने से गुजरते हैं। मेन रोड से होते हुए लौट आते हैं। एक दिन रात को हम चौराहा क्रॉस कर रहे थे। एक मोटर बाइक बहुत तेजी से हमारे सामने से गुजरी ।थोड़ी सी देर बाद फिर वही बाइक फिर गुजरी। मैंने कहा – ‘यह लड़का पगला गया है । इतनी तेज गाड़ी चला रहा है । कभी आ रहा है, कभी जा रहा है। क्या दिखाना चाह रहा है एक उसी के पास गाड़ी है ?'

दूसरे दिन फिर वही गाड़ी हमारे सामने से गुजरी। सुधा ने उस लड़के को सुनाते हुए कहा –‘इन लड़कों के पास गाड़ियाँ आ जाती हैं, दिन भर लिए फिरते हैं। पेट्रोल में पैसा फूँकते हैं, इनका क्या जाता है।’

मैंने कहा –‘इनके एक्सीडेंट होते हैं तब माँ बाप रोते हैं, इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है।’

हमारी बात सुनकर, पास से गुजरते  एक आदमी ने कहा –‘युवा पीढ़ी बौरा गई है।’ 

मोटर बाइक वाला लड़का लौटकर आया और हमारे साइड में गाड़ी रोकी और बोला –‘मैम, सॉरी मैं आपको जानता नहीं मगर आपकी बात का जवाब देना चाहता हूँ। आपने मुझे सुनाकर कहा है इसलिए।’

मैंने कहा-‘क्या गलत कहा है ? तुम कल गाड़ी कितनी तेज चला रहे थे।’

वह शांति से बोला –‘मैम, कल मेरे छोटे भाई को अस्थमा का अटैक आया था और पंप खराब हो गया था। यहाँ मैं दवा की दुकान से पंप लेने आया था ।उसकी हालत बहुत खराब थी, इसलिए गाड़ी तेज चला रहा था। आज तो आपने देखा होगा मेरी गाड़ी नॉर्मल थी। मैम एक लड़का गाड़ी तेज चलाता है इससे सारी युवा पीढ़ी को आपने लपेटे में ले लिया। यह जाने बिना कि क्या हुआ होगा। इस तरह सारी युवा पीढ़ी को जज करना तो ठीक नहीं। मैम अपवाद तो सब जगह होते हैं । युवा पीढ़ी आपको निराश नहीं करेगी। सॉरी मैंने आपका समय लिया’ कहकर लड़के ने बाइक स्टार्ट कर ली ।

हम देवरानी जेठानी एक दूसरे का मुँह ताकने लगी। इस दौरान इकट्ठा हुई भीड़ भी छँटने लगी।

2 comments:

Anonymous said...

सुंदर संदेश देती लघुकथा । बधाई । सुदर्शन रत्नाकर

प्रियंका गुप्ता said...

हम कितनी आसानी से किसी के लिए भी अपना निर्णय सुना देते हैं, एक अच्छी लघुकथा के लिए बहुत बधाई