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Sep 1, 2023

दोहाः निज भाषा उन्नति अहै...

 -भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,

बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।


अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन,

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।


उन्नति पूरी है तबहिं, जब घर उन्नति होय,

निज शरीर उन्नति किए, रहत मूढ़ सब कोय ।


निज भाषा उन्नति बिना, कबहुँ न ह्यैहैं सोय,

लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय ।


इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग,

तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग ।


और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात,

निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।


तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय,

यह गुन भाषा और मह कबहूं नाहीं होय । 


विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार,

सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।


भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात,

विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।


सब मिल तासों छाँड़ि कै, दूजे और उपाय,

उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय ।


1 comment:

शिवजी श्रीवास्तव said...

भारत मे सब भिन्न अति,ताही सों उत्पात...भारतेंदु जी की यह बात आज भी कितनी प्रासंगिक प्रतीत होती है।