- रमेश गौतम
आजादी का आज तक, कब समझे मन्तव्य।
याद रहे अधिकार बस, भूल गए कर्तव्य।।
चक्रव्यूह कितने रची, छोड़ो कितने तीर।
महानाट्य रचते रहे, अभिमन्यू -से वीर।।
हम हो जाएँ विहग से, आजादी आकाश।
मिलकर भरें उड़ान फिर, तोड़े माया-पाश।।
नगर ढिंढोरा पीटते, करते जिन्दाबाद।
समझें ना जनतंत्र का, अब तक अनहद नाद।।
सुख-दुख बाँटो परस्पर, छोड़ो वाद-विवाद।
आजादी के मूल में, है मानवतावाद।।
मिले पसीने को यहाँ, पूरा उसका दाम।
आजादी के शेष हैं, ऐसे अभी मुकाम।।
अधिकारों को जब मिले, कर्तव्यों का चूर्ण।
तब होगी जाकर कहीं, आजादी सम्पूर्ण।।
रखनी थी जनतंत्र की, हमें ठोस बुनियाद।
तानाशाही के लिए, नहीं हुए आजाद।।
रहे राजसी ही सदा, सत्ता के सोपान।
अधर बीच लटके हुए, लोकतंत्र के प्रान।।
रण-कौशल में निपुण हैं, सारे सत्ताधीश।
गठबंधन बेमेल कर, काटें जनमत-शीश।।
सब कुछ इसके हाथ में, धन वैभव अधिकार।
बस सत्ता के पास में, होता नहीं विचार।।
जो भी आता टाँगता, बदलावों के चित्र।
किन्तु व्यवस्था का कभी, बदला नहीं चरित्र।।
चुप्पी पर सौगात है, सच बोले तो जेल।
सत्ता खिड़की खोलकर, देखे अपना खेल।।
दुष्कर्मों पर डालता, पर्दा विधि-विधान।
सत्ताधारी की हनक, करती है हैरान।।
बिना भेद सबको सदा, देती रोटी दाल।
सत्ता के जन से तभी, मिलते हैं सुरताल।।
आते हैं जो द्वार पर, लिए वोट की चाह।
बन जाते जनतंत्र में, वे ही तानाशाह।।
सम्पर्कः रंगभूमि, 78 बी संजय नगर बरेली- 243005 (उ. प्र.)
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