आज मैंने उस पेड़ से
बात की
जिसकी छाया में बैठ मैं
सालों पढ़ा
मैं तब बच्चा था और
पेड़ बूढ़ा
आज मैं बूढ़ा था और
पेड़ जवान
हम दोनों ने एक दूसरे
का हाल जाना
और पाया कि दोनों मज़े
में ही हैं
पेड़ को बस एक ही दुख
था
कि अब पंछी बहुत कम आते
हैं
मैंने अपने दुख के बारे
में सोचा तो पाया
हम दोनों का दुःख कितना
मिलता था
हम एक दूसरे के गले लग
देर तक
बीते दिनों को याद करते
रहे
हम कई बार हँसे, कई बार रोए
हमने बहुत बातें कीं और
थक गए
हमारी बातों को किसी ने
नहीं सुना
कहते हैं जिन बातों को
कोई नहीं सुनता
उन बातों को ईश्वर
सुनता है चुपचाप
पेड़ और मैं किसी
ईश्वरीय सत्ता में
यक़ीन नहीं करते थे, इसके बावजूद
हम दोनों ने महसूस की
ईश्वर की मौजूदगी
जो हँसता और रोता रहा
था हमारे साथ
हम दोनों एक दूसरे को
देख मुस्कुराए
और आँखों ही आँखों में
एक दूसरे से कहा-
अरे, ईश्वर तो बिल्कुल हम जैसा निकला!
सम्पर्क- 406, सेक्टर-20, सिरसा-125055 ( हरियाणा)
5 comments:
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
बहुत ही सुंदर रचना
पेड़ और व्यक्ति की समान मनोदशा...व्यक्ति एक-दूसरे से कटते जा रहे हैं और पेड़ को व्यक्ति काट रहा है!
भावपूर्ण रचना! हार्दिक बधाई!
~सादर
वाह!
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