मासिक वेब पत्रिका उदंती.com में आप नियमित पढ़ते हैं - शिक्षा • समाज • कला- संस्कृति • पर्यावरण आदि से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर आलेख, और साथ में अनकही • यात्रा वृतांत • संस्मरण • कहानी • कविता • व्यंग्य • लघुकथा • किताबें ... आपकी मौलिक रचनाओं का हमेशा स्वागत है।

Feb 1, 2022

आधुनिक बोध कथाएँ - 2 चोर चोर चोर

- सूरज प्रकाश

बहुत पहले की बात है। नई-नई नौकरी थी। वेतन मिला था। खुश होना लाजमी था। सब दोस्त फिल्म देखने निकले।

रास्ते में भीड़ में कोई जेबकतरा मेहरबान हुआ और जेब साफ। जब तक पता चलता, मेरा पर्स निकाला जा चुका था। हम सब ने शोर मचाया। तय था कि जेबकतरा अभी आसपास ही था;  लेकिन वहाँ आसपास जितने भी लोग थे, निर्विकार लग रहे थे। किसी पर भी शक करने की गुंजाइश नहीं लग रही थी। अलबत्ता, जब हमने बहुत शोर मचाया तो बीसियों सुझाव आने लगे कि पुलिस में जाओ या सब की तलाशी लो, ये करो और वो करो,  लेकिन कुछ भी नहीं किया जा सका। चिंताएं कई थीं। कमरे का किराया, पूरे महीने का खर्च और घर भेजे जाने वाले पैसे।

भीड़ कुछ कम हुई, तो मलंग जैसा दिखता एक आदमी हमारे पास आया और बहुत ही गोपनीय तरीके से बताने लगा कि वह काला जादू जानता है और चौबीस घंटे के भीतर जेबकतरे को हमारे सामने पेश कर सकता है। वह दावा करने लगा कि उसके काले जादू से कोई नहीं बच सकता। आओ मेरे साथ। तय था कि पुलिस से मदद मिलने वाली नहीं। हम उसके पीछे चल पड़े।

वह पास ही एक कोठरी में हमें ले गया। दस- बीस सवाल पूछे उसने और अपनी फीस की पहली किस्त माँगी - इक्यावन रुपये और ग्यारह अंडों की कीमत। बाकी भुगतान पर्स वापिस मिल जाने पर। हमने सोचा यह करके भी देख लिया जाए। पूरे महीने के वेतन की तुलना में सौदा महँगा नहीं लगा और दोस्तों ने उसकी सेवा की पहली किस्त चुकाई। उसने दिलासा दी कि चौबीस घंटे के भीतर जेबकतरा रोता गिड़गिड़ाता हमारे सामने होगा। हमारा पता उसने नोट कर लिया।

अगले दिन वह हमारे कमरे पर हाज़िर था। बताने लगा कि बस चोर का पता लगा लिया है और वह उसकी पॉवर के रेडियस में आ चुका है। बस अगले कुछ घंटे में वह गिड़गिड़ाते हुए खुद आएगा। इस बार इक्यावन रुपये और इक्कीस अंडों की कीमत ले गया।

किस्सा कोताह कि वह हर तीसरे चौथे दिन आता और कुछ न कुछ वसूल कर ले जाता। कभी कहता कि चोर आपके घर का पता तलाश कर रहा है और कभी कि बस चल चुका है। जब हमने देखा कि उसकी फीस हमारे खोये पर्स से भी आगे बढ़ने वाली है तो हमने हाथ खड़े कर दिये। ये सब भी तो चंदा करके दिया जा रहा था उसे।

उसने एक दिन की मोहलत और माँगी और इस बार मुर्गे की कीमत ले गया।

अगले दिन वह हड़बड़ाता हुआ आया। हमारे कमरे में ही धुनी रमाई और आँखें मूंदे कुछ मंत्र उछाले, कुछ चेतावनिइयाँ बरसईं और कुछ धमकियों का धुँआ किया।

अचानक उसने चिल्लाना शुरू कर दिया – चोर मेरे सामने है। वह आपका पर्स मारकर बहुत शर्मिंदा है। वह खुदकुशी करने जा रहा है। वह बस नदी तक पहुँचने वाला है। जल्दी बताइए क्या करूँ। एक मामूली पर्स के चक्कर में उसके बच्चे अनाथ हो जाएँगे। जल्दी बताएँ, वह बस छलांग मारने वाला है। कहिए तो उसे रोकूँ। मुझ पर हत्या का दोष लगेगा।

पाठकगण समझ सकते हैं कि हमने तरस खाकर जेबकतरे को खुदकुशी करने से रोका ही होगा और रहीम खाँ बंगाली को भी कुछ दे दिलाकर ही विदा किया होगा।

डिस्क्लेमर : यह एक सच्ची घटना है और इसकी तुलना उस देश से न की जाए, जहाँ आम आदमी, बैंक, जेबकतरे और बिचौलियों के बीच ये खेल अरसे से खेला जा रहा है। बेशक वहाँ जेबकतरा खुदकुशी करने के बजाए शर्म के मारे देश छोड़कर चला ही जाता है।

सम्पर्कः मो. नं. 9930991424 email- kathaakar@gmail.com

6 comments:

  1. वाह,कमाल की बोध कथा,बढ़िया व्यंजना।हार्दिक बधाई सूरज प्रकाश जी।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर बोध कथा सर।बधाई।

    ReplyDelete
  3. प्रियंका मिश्रा03 February

    बहुत सुंदर बोध कथा सर।बधाई।

    ReplyDelete
  4. वाह, सुंदर । हार्दिक बधाई शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  5. रोचक कथा आदरणीय सूरज प्रकाश जी।
    काम्बोज

    ReplyDelete