-डॉ. सुधा गुप्ता
1
सुनो
जी कान्हा!
सात
छेद वाली मैं
खाली
ही ख़ाली
तूने
अधर धरी
सुरों
की धार बही
2
बाँस
की पोरी
निकम्मी
खोखल मैं
बेसुरी, कोरी
तूने
फूँक जो भरी
बन
गई ‘बाँसुरी’
3
कोई
न गुन
दो
टके का न तन
तूने
छू दिया
कान्हा!
निकली धुन
लो, मैं ‘नौ लखी’ हुई
4
छम
से बजी
राधिका
की पायल
सुन
के धुन
दौड़
पड़ गोपियाँ
उफनी
है कालिन्दी
5
तेरा
ही जादू
दूध
पीना भूला है
गैया
का छौना
चित्र
-से मोर ,
शुक
कैसा
ये किया टोना
6
मिली
झलक
लगी
नहीं पलक
रूप
सलोना
श्याम
ने किया टोना
राधिका
भूली सोना
7
बाँस
की पोरी
बनी
रे मुरलिका
श्याम
दीवानी
राधिका
रो-रो मरे
चुराए, छिपा धरे
8
कान्हा
क्या गए
राधा
हुई बावरी
कैसी
विकल
सदा
गीला आँचल
सूखे
न किसी पल
9
गोपी
का नेह
अनूठा, निराला है
सास
के ताने
पति-शिशु
का मोह
छोड़
जाने वाला है
10
आज
भी कान्हा
बजा
रहे बाँसुरी
निधि-वन
में
लोक-लाज
छोड़ के
दौड़ी राधा बावरी
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