-संजीव तिवारी
छत्तीसगढ़ में पारंपरिक रूप में गाये
जाने वाले लोकगीतों में जसगीत का अहम स्थान है। छत्तीसगढ़ का यह लोकगीत
मुख्यत- क्वांर व चैत्र नवरात में नौ दिन
तक गाया जाता है। प्राचीन काल में जब चेचक एक महामारी के रूप में पूरे गांव में छा
जाता था तब गांवों में चेचक प्रभावित व्यक्ति के घरों मै इसे गाया जाता था।
आल्हाउदल के शौर्य गाथाओं एवं माता के श्रृंगार व माता की महिमा पर आधारित
छत्तीसगढ़ के जसगीतों में अब नित नये अभिनव प्रयोग हो रहे हैं, हिंगलाज, मैहर, रतनपुर व
डोंगरगढ, कोण्डागांव
एवं अन्य स्थानीय देवियों का वर्णन एवं अन्य धार्मिक प्रसंगों को इसमें जोडा जा
रहा है, नये
गायक गायिकाओं, संगीत
वाद्यों को शामिक कर इसका नया प्रयोग अनावरतचालु है।
पारंपरिक रूप से मांदर, झांझ व मंजिरे के साथ गाये जाने वाला यह गीत अपने स्वरों के
ऊतारचढाव में ऐसी भक्ति की मादकता जगाता है जिससे सुनने वाले का रोमरोम माता के
भक्ति में विभोर हो उठता है । छत्तीसगढ़ के शौर्य का प्रतीक एवं मॉं आदि शक्ति के
प्रति असीम श्रद्धा को प्रदर्शित करता यह लोकगीत नसों में बहते रक्त को खौला देता
है, यह
अघ्यात्मिक आनंद का ऐसा अलौकिक ऊर्जा तनमन में जगाता है जिससे छत्तीसगढ़ के सीधे साधे
सरल व्यक्ति के रग रग में ओज उमडपडता है एवं माता के सम्मान में इस गीत के रस में
लीन भक्त लोहे के बने नुकीले लम्बे तारों,
त्रिशुलों से अपने जीभ,
गाल व हाथों को छेद लेते हैं व जसगीत के स्वर लहरियों में थिरकते हुए 'बोलबम' 'बोलबम' कहते हुए
माता के प्रति अपनी श्रद्धा प्रदर्शित करते हुए 'बाना चढाते'
हैं वहीं गांव के महामाया का पुजारी 'बैइगा' आनंद से
अभिभूत हो 'माता
चढे' बम
बम बोलते लोगों को बगई के रस्सी से बने मोटे रस्से से पूरी ताकत से मारता है, शरीर में
सोटे के निशान उभर पडते हैं पर भक्त बम बम कहते हुए आनंद में और डूबता जाता है और
सोंटे का प्रहार मांदर के थाप के साथ ही गहराते जाता है ।
छत्तीसगढ़ के हर गाँव में ग्राम्या देवी के रूप में महामाया, शीतला मां, मातादेवाला
का एक नियत स्थान होता है जहाँ इन दोनों नवरात्रियों में जंवारा बोया जाता है एवं
नौ दिन तक अखण्ड'योति
जलाया जाता है, रात
को गाँव के
पुरूष एक जगह एकत्र होकर मांदर के थापों के साथ जसगीत गाते हुए महामाया, शीतला, माता देवाला
मंदिर की ओर निकलते हैं -
अलिन गलिन मैं तो खोजेंव,
मइया ओ मोर खोजेंव
सेऊकनइ तो पाएव,
मइया ओ मोर मालनिया
मइया ओ मोर भोजलिया.........
रास्ते में माता सेवा जसगीत गाने वाले गीत के साथ जुडते
जाते हैं, जसगीत
गाने वालों का कारवां जस गीत गाते हुए महामाया मंदिर की ओर बढता चला जाता है ।
शुरूआत में यह गीत मध्यम स्वर में गाया जाता है गीतों के विषय भक्तिपरक होते हैं, प्रश्नोत्तर
के रूप में गीत के बोल मुखरित होते हैं -
कउने भिंगोवय मइया गेहूंवा के बिहरी
कउने जगावय नवराते हो माय...
सेऊक भिंगोवय मइया गेहूंवा के बिहरी
लंगुरे जगावय नवराते हो माय...
जसगीत के साथ दल महामाया मंदिर पहुंचता है वहाँ माता की
पूजा अर्चना की जाती हैं फिर विभिन्न गांवों में अलग अलग प्रचलित गीतों के अनुसार
पारंपरिक छत्तीसगढ़ी आरती गाई जाती है -
महामायलेलो आरती हो माय
गढ हींगलाज में गढे हिंडोलना
लख आवय लख जाय
माता लख आवय लख जाय
एक नहीं आवय लाल लंगुरवा
जियरा के प्राण आधार...
जसगीत में लाल लंगुरवा यानि हनुमान जी सातों बहनिया माँ आदिशक्ति
के सात रूपों के परमप्रिय भाई के रूप में जगह जगह प्रदर्शित होते हैं जहाँ माता
आदि शक्ति लंगुरवा के भ्रातृ प्रेम व उसके बाल हठ को पूरा करने के लिये दिल्ली के
राजा जयचंद से भी युद्ध कर उसे परास्त करनें का वर्णन गीतों में आता हैं । जसगीतों
में दिल्ली व हिंगलाज के भवनों की भव्यता का भी वर्णन आता है -
कउन बसावय मइया दिल्ली ओ शहर ला,
राजा जयचंद बसावय दिल्ली शहर ला,
माता वो भवानी
हिंगलाजे हो माय
कउने बरन हे दिल्ली वो शहर हा,
कउने बरन हिंगलाजे हो माय
चंदन बरन मइया दिल्ली वो शहर हा,
बंदन बरन हिंगलाजे हो माय
आरती के बाद महामाया मंदिर प्रांगण में सभी भक्त बैठकर माता
का सेवा गीतों में प्रस्तुत करते हैं । सभी देवी देवताओं को आव्हान करते हुए गाते
हैं -
पहिली मयसुमरेव भइया चंदा- सुरूज ला
दुसरे में सुमरेंव आकाश हो माय......
सुमरने व न्यौता देने का यह क्रम लंबा चलता है ज्ञात अज्ञात
देवी देवताओं का आहवान गीतों के द्वारा होता है । गीतों में ऐसे भी वाक्यों का
उल्लेख आता है जब गांवों के सभी देवी- देवताओं को सुमरने के बाद भी यदि भूल से
किसी देवी को बुलाना छूट गया रहता है तो वह नाराज होती है गीतों में तीखें सवाल
जवाब जाग उठते हैं - -
अरे बेंदरा बेंदराझन कह बराइन मैं हनुमंता बीरा
मैं हनुमंता बीरा ग देव मोर मैं हनुमंता बीरा
जब सरिस के सोन के तोर गढ लंका
कलसा ला तोर फोरहॉं,
समुंद्र में डुबोवैं,
कलसा ला तोरे फोरहाँ ...
भक्त अपनी श्रद्धा के फुलों से एवं भक्ति भाव से मानस पूजा
प्रस्तुत करते हैं, गीतों
में माता का श्रृंगार करते हैं मालिन से फूल गजरा रखवाते हैं । सातों रंगो से माता
का श्रृंगार करते हैं - -
मइयासांतों रंग सोला हो श्रृंगार हो माय...
लाल लाल तोरे चुनरी महामाय
लालै चोला तुम्हारे हो माय...
लाल हावै तोर माथे की टिकली
लाल ध्वजा तुम्हारे
हो माय....
खात पान मुख लाल बाल है
सिर के सेंदूर लाल हो माय...
मइया सातों रंग...
पुष्प की माला में मोंगरा फूल माता को अतिप्रिय है। भक्त
सेउक गाता है -
हो माय के फूल गजरा,
गूथौ हो मालिन के धियरी फूल गजरा
कउनेमाय बर गजरा कउने माय बर हार,
कउने भाई बर माथ मटुकिया
सोला हो श्रृंगार...
बूढी माय बर गजरा धनईया माय बर हार,
लंगुरे भाई बर माथ मटुकिया
सोला हो श्रृंगार ...
माता का मानसिक श्रृंगार व पूजा के गीतों के बाद सेऊक जसगीत
के अन्य पहलुओं में रम जाते हैं तब जसगीत अपने चढाव पर आता है मांदर के थाप
उत्तेजित घ्वनि में बारंबार ता बढाते हैं गीत के बोल में तेजी और उत्तेजना छा जाता
हैं -
भारेव लखन कुमारा
चंदा सुरूज दोन्नो ला भारेव,
तहूं ला मैं भारेहौं हां
मोर लाल बराईन,
तहूं ला मैं भरे हंव हाँ ...
गीतों में मस्त सेऊक भक्ति भाव में लीन हो, वाद्य यंत्रों
की धुनों व गीतों में ऐसा रमता है कि वह बम बम के घोष के साथ थिरकने लगता है, क्षेत्र में
इसे देवता चढना कहते हैं अर्थात देवी स्वरूप इन पर आ जाता है । दरअसल यह
ब्रम्हानंद जैसी स्थिति है जहाँ भक्त माता में पूर्णतया लीन होकर नृत्य करने लगता
है सेऊक ऐसी स्थिति में कई बार अपना उग्र रूप भी दिखाने लगता है तब महामाई का
पुजारी सोंटे से व कोमल बांस से बने बेंत से उन्हें पीटता है एवं माता के सामने 'हूमदेवाता' है ।
भक्ति की यह रसधारा अविरल तब तक बहती है जब तक भगत थक कर
चूर नहीं हो जाते। सेवा समाप्ति के बाद अर्धरात्रि को जब सेऊक अपने अपने घर को
जाते हैं तो माता को सोने के लिये भी गीत गाते हैं -
पउढौ पउढौ मईयां अपने भुवन में,
सेउक बिदा दे घर जाही बूढी माया मोर
दसो अंगुरी से मईया बिनती करत हौं,
डंडा ओ शरण लागौं
पायें हो माय ...
आठ दिन की सेवा के बाद अष्टमी को संध्या 'आठे’ में 'हूम हवन’ व पूजा
अर्चना पंडित के .द्धारा विधि विधान के साथ किया जाता है । दुर्गा सप्तशती के
मंत्र गूंजते हैं और जस गीत के मधुर धुन वातावरण को भक्तिमय बना देता है । नवें
दिन प्रात- इसी प्रकार से तीव्र चढावजस
गीत गांए जाते हैं जिससे कि कई भगत मगन होकर बाना, सांग चढाते हैं एवं मगन होकर नाचते हैं । मंदिर से जवांरा
एवं जोत को सर में उढाए महिलाएं कतारबद्ध होकर निकलती है गाना चलते रहता है ।
अखण्ड'योति
की रक्षा करने का भार बइगा का रहता है क्योंकि पाशविक शक्ति उसे बुझाने के लिये
अपनी शक्ति का प्रयोग करती है जिसे परास्त करने के लिये बईगा बम बम के भयंकर
गर्जना के साथ नीबूचांवल को मंत्रों से अभिमंत्रित कर 'योति व
जवांरा को सिर पर लिए कतारबद्ध महिलाओं के उपर हवा में फेंकता है व उस प्रभाव को
दूर भगाता है । गीत में मस्त नाचते गाता भगतों का कारवां नदी पहुंचता है जहाँ 'योति व
जवांरा को विसर्जित किया जाता है । पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ सभी माता को
प्रणाम कर अपने गांव की सुख समृद्धि का वरदान मांगते हैं, सेऊक माता
के बिदाई की गीत गाते हैं -
सरा मोर सत्तीमाय ओ छोडी के चले हो बन जाए
सरा मोर सत्ती माय वो ...
सम्पर्कः ए 40,
खण्डेलवाल कालोनी,
दुर्ग, मो.
09926615707
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