- सुशील भोले
सतबहिनिया माता की पूजा परंपरा...
छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति इस देश में प्रचलित वैदिक या कहें शास्त्र आधारित संस्कृति से बिल्कुल अलगहटकर एक मौलिक और स्वतंत्र संस्कृति है। आप सभी जानते हैं, कि नवरात्र में वैदिक मान्यता के अनुसार माता के नौ रूपों की उपासना की जाती है। जबकि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति में माता के सात रूपों की पूजा-उपासना की जाती है, जिन्हें हम सतबहिनिया माता के नाम से जानते हैं। यहाँ की संस्कृति प्रकृति पर आधारित संस्कृति है, इसलिए यहाँ प्रकृति पूजा के रूप में जंवारा बोने और उसकी पूजा-उपासना करने की परंपरा है।
हमारे यहाँ सतबहिनिया माता के जिन सात रूपों की उपासना की जाती है, उनमें मुख्यतः - शीतला दाई, मावली दाई, बूढ़ी माई, ठकुराईन दाई, कुंवर माई, मरहीमाई, दरश माता आदि प्रमुख हैं। इनके अलावा भी अलग- अलग लोगों से और कई अन्य नाम ज्ञात हुए हैं, जिनमें -कंकालीन दाई, दंतेश्वरीमाई, जलदेवती माता, कोदाई माता या अन्नपूर्णा माता आदि-आदि नाम बताए जाते हैं।
हमारे यहाँ सतबहिनिया माता की पूजा-उपासना आदि काल से होती चली आ रही है, इसीलिए यहाँ के प्राय: सभी गाँव, शहर और मोहल्ले में शीतला माता, मावली माता, सतबहिनिया माता आदि के मंदिर देखे जाते हैं।
छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति इस देश में प्रचलित वैदिक या कहें शास्त्र आधारित संस्कृति से बिल्कुल अलगहटकर एक मौलिक और स्वतंत्र संस्कृति है। आप सभी जानते हैं, कि नवरात्र में वैदिक मान्यता के अनुसार माता के नौ रूपों की उपासना की जाती है। जबकि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति में माता के सात रूपों की पूजा-उपासना की जाती है, जिन्हें हम सतबहिनिया माता के नाम से जानते हैं। यहाँ की संस्कृति प्रकृति पर आधारित संस्कृति है, इसलिए यहाँ प्रकृति पूजा के रूप में जंवारा बोने और उसकी पूजा-उपासना करने की परंपरा है।
हमारे यहाँ सतबहिनिया माता के जिन सात रूपों की उपासना की जाती है, उनमें मुख्यतः - शीतला दाई, मावली दाई, बूढ़ी माई, ठकुराईन दाई, कुंवर माई, मरहीमाई, दरश माता आदि प्रमुख हैं। इनके अलावा भी अलग- अलग लोगों से और कई अन्य नाम ज्ञात हुए हैं, जिनमें -कंकालीन दाई, दंतेश्वरीमाई, जलदेवती माता, कोदाई माता या अन्नपूर्णा माता आदि-आदि नाम बताए जाते हैं।
हमारे यहाँ सतबहिनिया माता की पूजा-उपासना आदि काल से होती चली आ रही है, इसीलिए यहाँ के प्राय: सभी गाँव, शहर और मोहल्ले में शीतला माता, मावली माता, सतबहिनिया माता आदि के मंदिर देखे जाते हैं।
माँ गंगा मैया मंदिर, झलमला...
छत्तीसगढ़ के बालोद जिला मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर पर स्थित ग्राम पंचायत
झलमला का प्रसिद्ध देवी मंदिर है। मंदिर ऐसा कि दर्शन मात्र से ही जीवन धन्य हो
जाए। माता की अदभुत प्रतिमा को देखकर ही भक्त जनों का रोम-रोम पुलकित हुए बिना
नहीं रहता।
प्राचीन कथा जुड़ी देवी माँ के मंदिर से..
धार्मिक स्थल माँ गंगा मैया की कहानी अंग्रेज शासन काल से जुड़ी हुई है। उस समय जिले की जीवन दायिनीतांदुला नदी के नहर का निर्माण चल रहा था, करीब 125 साल पहले। उस दौरान झलमला की आबादी महज 100 के लगभग थी, जहाँ सोमवार के दिन ही यहाँ का बड़ा बाजार लगता था। जहाँ दूर-दराज से पशुओं के विशाल समूह के साथ बंजारे आया करते थे। उस दौरान पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस की जाती थी। पानी की कमी को पूरा करने के लिए बांधा तालाब नामक एक तालाब की खुदाई कराई गई। माँ गंगा मैय्या के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है।
बार-बार जाल में फंसती रही मूर्ति...
किवदंती अनुसार एक दिन ग्राम सिवनी का एक केवट मछली पकडऩे के लिए इस तालाब में गया, लेकिन जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फँस गई, लेकिन केवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया। इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केवट जाल लेकर घर चला गया।
धार्मिक स्थल माँ गंगा मैया की कहानी अंग्रेज शासन काल से जुड़ी हुई है। उस समय जिले की जीवन दायिनीतांदुला नदी के नहर का निर्माण चल रहा था, करीब 125 साल पहले। उस दौरान झलमला की आबादी महज 100 के लगभग थी, जहाँ सोमवार के दिन ही यहाँ का बड़ा बाजार लगता था। जहाँ दूर-दराज से पशुओं के विशाल समूह के साथ बंजारे आया करते थे। उस दौरान पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस की जाती थी। पानी की कमी को पूरा करने के लिए बांधा तालाब नामक एक तालाब की खुदाई कराई गई। माँ गंगा मैय्या के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है।
बार-बार जाल में फंसती रही मूर्ति...
किवदंती अनुसार एक दिन ग्राम सिवनी का एक केवट मछली पकडऩे के लिए इस तालाब में गया, लेकिन जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फँस गई, लेकिन केवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया। इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केवट जाल लेकर घर चला गया।
स्वप्न में कहा मुझे निकालें बाहर...
देवी माँ की प्रतिमा को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं। केवट के जाल में बार-बार फंसने के बाद भी केवट ने मूर्ति को साधारण पत्थर समझ कर तालाब में ही फेंक दिया। इसके बाद देवी ने उसी गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं। मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ।
देवी माँ की प्रतिमा को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं। केवट के जाल में बार-बार फंसने के बाद भी केवट ने मूर्ति को साधारण पत्थर समझ कर तालाब में ही फेंक दिया। इसके बाद देवी ने उसी गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं। मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ।
माता के स्वप्न के बाद प्रतिमा को निकाला बाहर...
स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट तथा गांव के अन्य प्रमुख को साथ लेकर बैगा तालाब पहुँचा, उसके बाद केंवट द्वारा जाल फेंके जाने पर वही प्रतिमा फिर जाल में फंसी। प्रतिमा को बाहर निकाला गया, उसके बाद देवी के आदेशानुसार तिवारी ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गई। जल से प्रतिमा निकली होने के कारण गंगा मैय्या के नाम से जानी जाने लगी।
स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट तथा गांव के अन्य प्रमुख को साथ लेकर बैगा तालाब पहुँचा, उसके बाद केंवट द्वारा जाल फेंके जाने पर वही प्रतिमा फिर जाल में फंसी। प्रतिमा को बाहर निकाला गया, उसके बाद देवी के आदेशानुसार तिवारी ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गई। जल से प्रतिमा निकली होने के कारण गंगा मैय्या के नाम से जानी जाने लगी।
शक्ति लहरी सतधरा धाम दर्शन...
छत्तीसगढ की शक्तिपीठों में अब शक्ति लहरी सतधरा धाम का नाम भी प्रमुखता से जुड़ने लगा है। लगभग पिछले एक शताब्दी पूर्व से स्थापित माता के इस मंदिर में भक्तजनों का आना निरंतर बढता जा रहा है।
सात नदियों के एक साथ मिलने से सतधरा या सप्तधारा के नाम से जाने जाना वाला यह स्थल गरियाबंद जिला महासमुंद जिला और रायपुर जिला की सीमारेखा पर ग्राम हथखोज के अंतर्गत स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ महानदी, सोढुल नदी और पैरी नदी की तीन धाराओं के साथ सूखा नदी, सरगी नदी, केशवा नदी और बगनई नदी आपस में एक साथ मिलती हैं, इसीलिए इस विराट भू-भाग में फैले संगम को सप्तधारा या सतधराकहते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि संभवतः समूचे छत्तीसगढ में नदियों का संगम स्थल इतना विस्तारित कहीं पर नहीं है, जितना विस्तारित यहाँ का संगम पाट है।
माता जी के यहाँ पर स्थापित होने के संबंध में बताया जाता है, कि माता की यह बिना शीश वाली प्रतिमा नदी में बहकर आयी है, एक यादव को यह प्राप्त हुई है। बताया जाता है कि वह व्यक्ति अपनी भैंसोथ को लेकर संगम स्थल पर जाया करता था, वहाँ उसकी भैंस एक स्थान विशेष पर हमेशा चमक जाती थी। यादव को आश्चर्य होता था कि आखिर भैंस यहाँ पर चमक या झिझक क्यों जाती है। उसने उस स्थल को ठीक से देखकर रेत में टटोलने लगा कि आखिर यहाँ है क्या? तब यह प्रतिमा उसके हाथों में आयी।
बताया जाता है, कि तब माता ने उस यादव को स्वप्न दिया कि मुझे यहाँ से निकालकर अन्य स्थल पर स्थापित करवा दो। उन्होंने बताया कि मुझे उठाकर ले जाते समय हर कदम पर एक-एक नारियल रखते जाना और जहाँ पर नारियल अपने आप फूट जाए उस स्थल पर मुझे स्थापित कर देना। वर्तमान में स्थापित जगह पर ही नारियल के फूटे जाने का जिक्र किया जाता है।
वर्तमान में यह स्थल देवी उपासना के प्रमुख पीठ के रूप में विकसित हो रहा है। राजिम से महासमुंद को जोड़ने वाले इस मार्ग पर स्थित सूखा नदी पर भव्य पुल बन जाने के कारण यहाँ से होकर गुजरने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है, इसका प्रतिफल मंदिर के दर्शनार्थियों के लिए भी सार्थक रहा है, उनकी संख्या में भी वृद्धि हुई है।
यहाँ पर प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर तीन दिनों का मेला भरता है। मेला का स्वरूप दिनों दिन बढता ही जा रहा है। इसी अवसर पर यहाँ सूखा लहरा लिया जाता है। बताया जाता है, कि संगम स्थल की रेत पर लोग लोट कर लहरा लेते हैं। जिसके भाग्य में होता है, वह उंगली के स्पर्श मात्र से काफी दूर तक लुढकते हुए चला जाता है, और निढाल होने के पश्चात ही रुकता पाता है।
माता के इस स्थल पर नवरात्र के दोनों ही अवसर पर ज्योति कलश की स्थापना की जाती है, जहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामना को लेकर ज्योति प्रज्वलित करते हैं।
छत्तीसगढ की शक्तिपीठों में अब शक्ति लहरी सतधरा धाम का नाम भी प्रमुखता से जुड़ने लगा है। लगभग पिछले एक शताब्दी पूर्व से स्थापित माता के इस मंदिर में भक्तजनों का आना निरंतर बढता जा रहा है।
सात नदियों के एक साथ मिलने से सतधरा या सप्तधारा के नाम से जाने जाना वाला यह स्थल गरियाबंद जिला महासमुंद जिला और रायपुर जिला की सीमारेखा पर ग्राम हथखोज के अंतर्गत स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ महानदी, सोढुल नदी और पैरी नदी की तीन धाराओं के साथ सूखा नदी, सरगी नदी, केशवा नदी और बगनई नदी आपस में एक साथ मिलती हैं, इसीलिए इस विराट भू-भाग में फैले संगम को सप्तधारा या सतधराकहते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि संभवतः समूचे छत्तीसगढ में नदियों का संगम स्थल इतना विस्तारित कहीं पर नहीं है, जितना विस्तारित यहाँ का संगम पाट है।
माता जी के यहाँ पर स्थापित होने के संबंध में बताया जाता है, कि माता की यह बिना शीश वाली प्रतिमा नदी में बहकर आयी है, एक यादव को यह प्राप्त हुई है। बताया जाता है कि वह व्यक्ति अपनी भैंसोथ को लेकर संगम स्थल पर जाया करता था, वहाँ उसकी भैंस एक स्थान विशेष पर हमेशा चमक जाती थी। यादव को आश्चर्य होता था कि आखिर भैंस यहाँ पर चमक या झिझक क्यों जाती है। उसने उस स्थल को ठीक से देखकर रेत में टटोलने लगा कि आखिर यहाँ है क्या? तब यह प्रतिमा उसके हाथों में आयी।
बताया जाता है, कि तब माता ने उस यादव को स्वप्न दिया कि मुझे यहाँ से निकालकर अन्य स्थल पर स्थापित करवा दो। उन्होंने बताया कि मुझे उठाकर ले जाते समय हर कदम पर एक-एक नारियल रखते जाना और जहाँ पर नारियल अपने आप फूट जाए उस स्थल पर मुझे स्थापित कर देना। वर्तमान में स्थापित जगह पर ही नारियल के फूटे जाने का जिक्र किया जाता है।
वर्तमान में यह स्थल देवी उपासना के प्रमुख पीठ के रूप में विकसित हो रहा है। राजिम से महासमुंद को जोड़ने वाले इस मार्ग पर स्थित सूखा नदी पर भव्य पुल बन जाने के कारण यहाँ से होकर गुजरने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है, इसका प्रतिफल मंदिर के दर्शनार्थियों के लिए भी सार्थक रहा है, उनकी संख्या में भी वृद्धि हुई है।
यहाँ पर प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर तीन दिनों का मेला भरता है। मेला का स्वरूप दिनों दिन बढता ही जा रहा है। इसी अवसर पर यहाँ सूखा लहरा लिया जाता है। बताया जाता है, कि संगम स्थल की रेत पर लोग लोट कर लहरा लेते हैं। जिसके भाग्य में होता है, वह उंगली के स्पर्श मात्र से काफी दूर तक लुढकते हुए चला जाता है, और निढाल होने के पश्चात ही रुकता पाता है।
माता के इस स्थल पर नवरात्र के दोनों ही अवसर पर ज्योति कलश की स्थापना की जाती है, जहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामना को लेकर ज्योति प्रज्वलित करते हैं।
जतमई छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीर्थ आैर पर्यटन स्थलों में से एक है। ये प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। यह स्थान अब देवी का एक चर्चित तीर्थ का रूप धारण कर चुका है। जतमाई छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 65 किमी की दूरी पर स्थित एक प्राकृतिक स्थल है आैर यह जंगल के बीचों-बीच बना हुआ है। जतमाई अपने कल कल करते प्राकृतिक सदाबहार झरनों के लिए भी प्रसिद्ध है। गरियाबंद जिले में प्रकृति की गोद में बसा, वनों से आच्छादित यह अत्यंत सुंदर स्थान है, जहाँ वर्षा ऋतु में कल कल करते झरने बहते रहते हैं। यही शहर के प्रदूषण से मुक्त शांत जगहों मेंसे एक जतमई धाम है। यहाँ माँजतमाई का प्रसिद्घ मंदिर है जो की पहाड़ों की देवी है। माता के मंदिर के ठीक सटी हुई जलधाराएं उनके चरणों को छूकर चट्टानों से नीचे गिरती हैं। इसमें युवा नहाने से नहीं चूकते हैं। स्थानीयमान्यताओं के अनुसार, ये जलधाराएं माता की सेविकाएं हैं जो देवी माँ के भक्तों को नहलाती हैं। यहाँ आने वाला हर शख्स यही कहता है कि वह जन्नत में आ गया।
बहुत मशहूर है यह स्थान...
वैसे तो यहाँ साल भर ही भक्तों की भीड़ आती है और माँ के दर्शनों का लाभ उठाती है, परंतु प्रतिवर्ष चैत्र और कुवांर के नवरात्र में मेला भी लगता है। जतमाई में दूर दूर से लोग माता के दर्शन करने आते हैं तथा पिकनिक का भी आनंद उठाते हैं। जतमई वनों के मध्य में स्थित होने के कारण एक खूबसूरत पिकनिक स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहाँ के झरने लोगों के मन मोह लेते हैं और लोग झरने में भीगने से आपने आप को रोक नहीं पाते हैं। जतमाई से लगा हुआ घटारानी भी जतमाई की तरह ही एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल है। यहाँ भी जतमाई की तरह ही झरने बहते हैं और माँ घटारानी का मंदिर है, जतमाई के पास ही एक छोटा सा बांध भी है जिसे पर्यटक देखना नहीं भूलते।
सम्पर्कः संजय नगर, रायपुर, मो.982699281
वैसे तो यहाँ साल भर ही भक्तों की भीड़ आती है और माँ के दर्शनों का लाभ उठाती है, परंतु प्रतिवर्ष चैत्र और कुवांर के नवरात्र में मेला भी लगता है। जतमाई में दूर दूर से लोग माता के दर्शन करने आते हैं तथा पिकनिक का भी आनंद उठाते हैं। जतमई वनों के मध्य में स्थित होने के कारण एक खूबसूरत पिकनिक स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहाँ के झरने लोगों के मन मोह लेते हैं और लोग झरने में भीगने से आपने आप को रोक नहीं पाते हैं। जतमाई से लगा हुआ घटारानी भी जतमाई की तरह ही एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल है। यहाँ भी जतमाई की तरह ही झरने बहते हैं और माँ घटारानी का मंदिर है, जतमाई के पास ही एक छोटा सा बांध भी है जिसे पर्यटक देखना नहीं भूलते।
सम्पर्कः संजय नगर, रायपुर, मो.982699281
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