लोकसभा चुनाव- वादे और इरादे...
- डॉ. रत्ना वर्मा
पाँच साल में होने वाले चुनावों में जनता किस आधार पर वोट देती
है, अब
इसका चुनावी विश्लेषण शुरू हो गया है। बड़े- बड़े विशेषज्ञ अपनी अपनी राय जाहिर करके
अपना मत रखते हैं। इनके मत का अपना महत्व तो है पर सही मायनों में जनता का मत ही
असली मत होता है। चुनाव पूर्व ये चाहे जितना आंकलन कर लें नतीजे तो जनता के वोट ही
तय करते हैं। ऐसे में असली विश्लेषण आम जनता के मन का करना चहिए।
तो आम जनता क्या चाहती है? जाहिर है, वे मुलभूत सुविधाएँ जिनके बिना जीवन असंभव है। यानी कम
शब्दों में रोटी कपड़ा और मकान। पर यह इतना छोटा शब्द भी नहीं है। यह छोटा -सा शब्द पूरे देश का आईना होता है। रोटी
यानी देश का कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे और वह तभी भूखा नहीं रहेगा, जब प्रत्येक हाथ में काम होगा, कोई
बेरोजगार नहीं होगा। जाहिर है जब कोई बेरोजगार नहीं होगा तो उसे अच्छा कपड़ा
मिलेगा यानी उसकी जिंदगी में जीवन में वे सभी सुख सुविधाएँ होंगी, जिसकी उन्हें व उनके परिवार को जरूरत है। मकान यानी छत। थक हार कर जब वह
घर लौटे तो अपने परिवार को हँसता मुस्कुराता सुरक्षित पाए और वह स्वयं भी सुकून की
नींद ले पाए।
पर यह सब कैसे संभव
है? तब ना जब जनता देश की कमान उस व्यक्ति के हाथों में सौंपे
हो, जो अपने देश के सभी परिवार को ऐसी खुशहाल जिंदगी दे सके।
इस खुशहाल जीवन के साथ और भी कई सुख-
सुविधाएँ जुड़ी होती हैं जैसे –
शुद्ध पानी, शुद्ध
हवा, आवागमन
के पर्याप्त साधन, अच्छी
सड़कें, स्वास्थय
सुविधाएँ और न जाने ऐसी कितनी अनगिनत
सुविधाएँ जुड़ी हैं,
जो देश की जनता सरकार से चाहती हैं। पर ऐसी सुख- सुविधायुक्त देश के बारे में
सोचना तो अब किस्से कहानियों की बात और सपना देखने जैसा लगता है। आज देश में जिस
प्रकार से राजनैतिक उठापटक,
जोड़- तोड़, आरोप
– प्रत्यारोप
के साथ सिर्फ जीत हासिल करने के लिए उल्टे सीधे दांव- पेंच का उपयोग किया जाता है, गड़े मुर्दे
उखाड़े जाते हैं वहाँ एक निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद करना दिए को रोशनी दिखाने के
समान लगता है। देखा तो यही जा रहा है कि देश में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है।
देश के अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब। राजनेता भी जनता की भलाई के
पहले अपना भला सोचते हैं। विकास की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं। जनता से कभी न
पूरे होने वाले वादे किए जाते हैं।
ऐसे में मतदाता
अपना मन किसी के पक्ष या विपक्ष में तभी बनाते हैं जब पार्टी की नीतियाँ स्पष्ट
हों, देश
तथा जनता के हित में सही सोच रखती हों. साथ ही प्रत्याशी की छवि भी साफ सुथरी
हो। कई बार यह भी देखा गया है कि जनता का
रूझान किसी एक पार्टी के पक्ष में होने के बाद भी उन्हें वोट इसलिए नहीं मिल पाता
क्योंकि प्रत्याशी उनके मन के अनुकूल नहीं होता। ऐसे में बहुत बड़ा नुकसान पार्टी
को झेलना पड़ सकता है। तो पार्टियों का पहला काम सही प्रत्याशी का चयन और जनता का मन टटोलना होना
चाहिए। आजकल विभिन्न ऐजेंसियों द्वारा
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण कराने का चलन हो चला है। मीडिया भी बहुत शोर- शराबा करते
हुए चुनावी नतीजों का पूर्व आंकलन करके अपना पक्ष रखती है। कई बार जिसके पक्ष में
हवा बह रही हो या कहना चाहिए माहौल बना दिया गया हो तब भी नुकसान दूसरे सही
प्रत्याशी को उठाना पड़ता है। ये बात अलग है कि माहौल जैसा भी हो
कमान तो अंतत: जनता के हाथ में होती है।
चुनाव में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आजकल तो
मीडया अपनी टीआरपी के चक्कर में सनसनी फैलाने का काम करती है। जनता को भ्रमित करने
में मीडया भी बड़ी भूमिका निभाती है। एक वह भी समय था जब समाचार पत्र की खबरें सच
पर आधारित होती थीं। उनकी लिखी बातों पर जनता का अटूट विश्वास होता था। पर समय बदल
गया है। चैनलों की बाढ़ लग गई है। सब अपने को सबसे तेज कहलाने के चक्कर में सच्चाई
से कहीं दूर चले जा रहे हैं। इसी तरह सोशलमीडिया ने तो सबसे ज्यादा नुकसान किया
है। लोगों को जितनी तेजी से यह जोड़ता है उससे कहीं सौ गुना तेजी से तोड़
भी देता है। एक झूठी खबर को वायरल होते देर नहीं लगती।
ऐसे में पार्टियों
और प्रतिनिधियों के लिए यह चिंतन मनन का
समय होता है। जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी उनके सिर
पर आ जाती है। ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि वे केवल जीत हासिल करने के लिए
चुनावी वादे न करें।प्रलोभन देकर वोट खरीदने का चलन इधर कुछ दशकों में बहुत ज्यादा बढ़ गया है।
कम्बल और साड़ियाँ बाँटना आम हो चला है।
हाँ अब जागरूक मतदाता इन सब प्रलोभनों में नहीं आता ;परंतु आज भी हमारे देश में आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा पढ़ा-लिखा नहीं है । उनकी महिलाएँ आज भी अपनी मर्जी से
निर्णय लेने की काबिलियत नहीं रखती। या तो वे उनके पति जो कहते हैं वहीं करती हैं
या फिर उनका मुखिया जिस बटन दबाने कहता है
वह बटन दबा देती है। चुनाव के दौरान इस
प्रकार के कई अलग अलग तरह की घटनाएँ और अनुभव भी
होते हैं।
अभी हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में जो कुछ अनुभव
मुझे हुआ मैं उसे आप सबके साथ साझा करना चाहती हूँ। घरों का काम करने वाली महिला
से जब मैंने पूछा-‘वोट डालने क्यों नहीं जा रही हो’, तो उसका जवाब था दूसरे पहर में जाएँगे समूह की सब महिलाएँ
एक साथ। मैंने उसे मजाक में पूछ लिया -किसे वोट दे रही हो,
तब उसने जो जवाब दिया वह चौकाने वाला था- उसने कहा हमारे समूह की मुखिया जिसे
कहेगी, उसे ही वोट देंगे। उसने यह भी कहा कि अभी तो कोई भी
पार्टी हमें साड़ी कम्बल या कुछ भी बांटने
नहीं आई है। तब मैंने पूछा, जो साड़ी देगा क्या उसे
ही वोट दोगी। इसपर उसने कहा- साड़ी भले ही
ले लेंगे वोट तो देंगे उसे ही, जिसे हमारा मन करेगा। अब आप
समझ गए होंगे कि इस महिला के मन की बात।
लोकसभा चुनाव को लेकर एक धारणा यह भी है- खासकर मध्यम और
उच्च वर्ग मेंकि जनता किसे वोट देगी, इसका फैसला वह प्रदेश की सरकार को देखकर नहीं करती। भले ही
उसने प्रदेश में किसी एक पार्टी को चुना है,
जरूरी नहीं है कि केन्द्र में भी वह उसी पार्टी को देखना चाहे। केन्द्र के
मुद्दों को वह अलग ही नजरिए से देखती है,
केन्द्र का चुनाव पूरे देश के विकास से जुड़ा होता है। चाहे वह देश की सुरक्षा
का मामला हो, आर्थिक
मुद्दा हो या जनता के हितों का मामला। यही वजह है कि केन्द्र में एक पार्टी का
शासन होता है ,तो राज्यों में अलग अलग पार्टियाँ काबिज
होती हैं।
कहने को तो चुनाव की कमान हर बार जनता के हाथ होती है। पर
जनता को भ्रमित करने की कोशिश प्रत्येक पार्टी करती है। लोक लुभावन वादें चुनाव का
प्रमुख हथकंडा होता है। इन दिनों पिछले विधानसभा चुनाव में जिन पार्टियों ने जीत हासिल की है ,उन राज्यों की सरकार जनता से किए वादे पूरे
करने में लगी है ; ताकि उनकी पार्टी को लोकसभा चुनाव में भी
अच्छा रिजल्ट मिले। पिछले विधानसभा चुनाव में कई राज्यों में इतने अप्रत्याशित
परिणाम आए हैं कि लोकसभा चुनाव में भी वे इसी तरह अप्रत्याशित परिणाम की आस लागाए
हैं। यद्यपि बालाकोट एयरस्ट्राइक और हाल ही में ऐंटी सेटेलाइट मिसाइल के सफल
परीक्षण के बाद तो भाजपा जनता का फैसला अपनी तरफ ही मान कर चल रही है।
इन चुनावी हथकंडों के बीच अंतत: कमान जनता के हाथों ही होती
है। अंतिम फैसला तो उसे ही लेना है बिना किसी दबाव और लालच के। तभी देश का भविष्य
सुरक्षित हाथों में रहेगा। उम्मीद की जानी चाहिए देश की कमान जनता उसे ही सौंपेगी
जो जनता के हितों की बात करे।
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