डॉ. रत्ना वर्मा
अब चुनाव प्रचार दरवाजे पर है। प्रत्याशी हाथ जोड़ रहे हैं और
अखबार वाले मतदाताओं को टटोल रहे हैं।
जहाँ ब्यूटीपार्लर का विज्ञापन दीवार पर है, ठीक उसके नीचे हाथी छाप को प्रचंड बहुमत से विजयी बनाने का चुनावी
विज्ञापन अपना दावा ठोक रहा है। व्हील छाप साबुन के व्हील का उपयोग कार्यकर्ताओं
ने जिस सूझबूझ के साथ किया है, उससे तबियत प्रसन्न हो रही
है। व्हील तो जहाँ था वहीं है, लेकिन साबुन पर सफेदा पोत कर
कार्यकर्ताओं ने प्रत्याशी का नाम लिख दिया है और पढ़ने से लगता है सफेदी और चमक
के लिये व्हील छाप साबुन ही उपयोग करें। महिलाओं में अत्यंत लोकप्रिय साबुन “व्हील छाप साबुन।”
मतदाताओं को टटोलने का सीजन शुरु हो गया है। मैंने भी सोचा
कि इसी बहाने कुछ महिलाओं को टटोल लूँ।
एक बड़ा -सा मकान, गेट पर
लिखा था-कुत्तों से सावधान। चुनाव चल रहा है। इसलिए मुझे इस तरह का नया विज्ञापन
अच्छा लगा। मैं ठिठक गई। कोई बाहर दिखे तो मैं किसी महिला को टटोलूँ। मैं सोच ही
रही थी कि एक आदमी दिखा। मुझे असमंजस में खड़ा देख कर बोला, आइए... अंदर आ जाइए। बोर्ड देखकर डर रही है आप? अभी इस बंगले में कुत्ता नहीं है। मेम साहब ने अलशेसियन पिल्ले का आर्डर
बुक कर रखा है।
मेरी इच्छा हुई कि उससे कहूँ कि जब इस घर में स्वागत के लिए
आपके अलावा और कोई नहीं है तो फिर इस बोर्ड की क्या जरूरत है? लेकिन उसने बीच में ही कहा, बोर्ड लगा देने से
चोर और भिखारियों का डर नहीं रहता.... वे इस दरवाजे पर नहीं आते। आप तो अंदर आ जाइए।
गेट के बंगले की दूरी पार करते हुए मैं चुपचाप चल रही थी।
थोड़ी दूर वह आदमी मेरे साथ चला। फिर बोला, आप मेम साहब से मिल लीजिए... मुझे
गमलों में पानी डालना है।
मेरे कालबेल दबाते ही पक्षियों के चहचहाने की आवाज गूँज
उठी। घरेलू- सी दिखने वाली एक महिला ने दरवाजा खोला और
बोली, क्या है?
मैंने कहा- मेम साहब से कह देना टीवी वाली आई है।
टीवी की बात मैंने इसलिए की कि अपनी तस्वीर टीवी पर दिखाए
जाने के लालच में मेरा आदर सत्कार सही होगा। मैं बैठक में आ गई। थोड़ी देर बाद
नौकरानी नाश्ते की प्लेट और चाय ले आई तभी मेरी समझ में आ गया कि अपना इम्प्रेशन
ठीक जम गया है। वह बोली, मेम साहब तैयार हो रही है... आप तब तक
चाय लीजिए।
मैं जानती हूँ कि बिना सजे धजे वे बाहर नहीं आएँगी। महिलाओं
के साथ यही प्राब्लम है। चाहे उन्हें मतदान में जाना हो या किसी शोकसभा में, वे बिना मेकअप किए नहीं जाती। टीवी सीरियलों ने महिलाओं को कम से कम इतना
जागरूक तो किया ही है।
मेम साहब आधे घंटे के बाद चेहरे पर मुस्कान बिखेरती हुई
बैठक में आ गईं। मैंने औपचारिकता और शिष्टाचार के बाद सीधा सवाल किया, आप किस पार्टी को वोट देंगी?
मेरे इस प्रश्न से वो बौखला गई। इस प्रश्न के बदले मुझे
उनकी साड़ी की तारीफ करनी थी और कहना था कि आप कितनी स्मार्ट लग रही है। ऐसे
प्रश्न महिलाओं को हर मौसम में प्रसन्न रखते हैं।
वह बोली- क्या पार्टी? किटी ? मैंने कहा लगता है आप किसी पार्टी में
जा रही हैं?
इस बार मेरा प्रश्न सुनकर वे खुश हुई। बोली- ये पार्टियाँ न
हो तो हम जैसी महिलाओं का टाइम पास ही न हो।
मैंने फिर पूछा- इस बार चुनाव में वोट आप किसे देंगी?
वह बोली- अभी कुछ सोचा नहीं है...मिसेज भटनागर और मिसेज़चंद्रा
से डिसकस करेंगे आज की किटी पार्टी में। मूड हुआ तो चले जाएँगे वोट देने...
मैंने सोचा ऐसी जागरुक महिला मतदाता के पीछे समय बर्बाद
करना ठीक नहीं। यही सोच कर मैंने कहा- अच्छा, आप पार्टी में जाइएमैं चलती हूँ।
वह बोली, लेकिन टीवी... बात पूरी होने के पहले
ही मैं बंगले से बाहर आ गई।
थोड़ी दूर पैदल चलने के बाद एक महिला अपने घर के दरवाजे पर
खड़ी बार-बार सड़क की ओर देख रही थी। मैंने सोचा उन्हें भी टटोल लूँ।
मैंने पूछा- किसी का इंतजार कर रही हैं आप?
वह बोली, जी हाँ... बच्चों का स्कूल से आने का
समय हो गया है और ‘वे’ भी
आते ही होंगे। जैसे ही उनकी गाड़ी और बच्चों का रिक्शा दिखेगा, मैं दूध और चाय गैस पर रख देती हूँ; क्योंकि इसमें
यदि थोड़ी भी देर भी हुई तो वे पूरा घर सिर पर उठा लेते हैं।
मैं महिलाओं से इसी गृहस्थी के किस्से से डरती हूँ। कहीं यह
किस्सा आगे चला तो मेरा पूरा समय बर्बाद हो जाएगा। यही सोचकर मैंने उनसे सीधा सवाल
किया, इस बार आप चुनाव में किसे वोट देंगी?
तभी बच्चों का रिक्शा आता दिखाई दिया। वह बोली- बच्चे आ गए, आप अंदर आकर बैठिए मैं चाय चढ़ा देती हूँ।
वह बोली- वे जिसे कहेंगे उसे ही दे दूँगी... हम औरतों को तो
जिंदगी भर किचन में रहना है। शादी के इतने साल बाद भी मैं आज तक उनका ही कहना
मानती हूँ। फिर वोट से हमें क्या करना है? किसी को भी दें, महँगाई कम होने वाली नहीं है।
मैं सोच रही थी कि महिलाओं को लेकर लंबे- लंबे सर्वेक्षण
होते हैं और आज भी महिलाएँ सोचती हैं कि उनकी जिम्मेदारी किचन तक ही सीमित है।
बच्चों को दूध गरम कर देने और पतियों के ऑफिस से लौटने के बाद गरम चाय पिलाने तक
ही।
थोड़ी दूर जाने के बाद झुग्गी झोपडियों वाला मुहल्ला शुरु
हो गया। मैंने सोचा इन गरीब महिलाओं को भी टटोल लूँ। एक झोपड़ी के सामने तीन चार
धूल से सने गंदे बच्चे खेल रहे थे। एक महिला उन्हें गालियाँ दे रही थी। थोड़ी देर
बाद उसका पति झोपड़ी से बाहर आया ,तो महिला उसे भी कोसने लगी। गुस्से में
बोली- जब बच्चों का पेट नहीं भर सकते थे ,तो इतने बच्चे क्यों
पैदा करवा दिये? मैं दिन भर काम करते मर रही हूँ और तुम
दिन भर घूमते हो और रात को पीकर पड़े रहते हो... तुम्हें ना मेरी फिकर है और ना
बच्चों की।
पति मुँह झुकाए चुपचाप चला गया।
मैंने सोचा देश के सही और निर्णायक मतदाता तो यही हैं। जिसे
वोट दे देंगे, वे ही सरकार बना लेंगे और पाँच साल तक
मौज करेंगे। मैं उसकी झोपड़ी के सामने रुक गई। मुझे देखकर वह बोली-क्या है? कौन सी पार्टी वाली हो? जल्दी बोलो... मुझे
बहुत काम है।
मैंने पूछा- तुम्हारा पति कुछ काम नहीं करता है?
वह बोली- तुमको क्या करने का? मेरा पति
है... काम करे कि नई करे। तुम जल्दी बोलो- क्या तुम्हारी पार्टी काम दे देगी? कोई काम देगी तो बोलो... अभीचपइसा दे दो तभीच वोट देंगे, तुम्हारी पार्टी को।
मैं समझ नहीं पा रही थी कि उसे किस तरह टटोलूँ। मैंने कहा– मैं तो पूछने आई थी कि तुम किसको वोट दोगी।
वह गुस्से में बोली- तुमको पहलेच बोला ना कि जो पईसा देगा
उसीच को वोट देने का... बोल, दिलाती क्या पईसा? अभी रोज पार्टी वाला आता है लेकिन पईसा कोई नहीं देता। जो पहले देगा, उसी को वोट दे दूंगी... इस चुनाव में बच्चों का कपड़ा सिलवाना है। जल्दी
बोल, कित्तापईसा देती है?
मैं उसकी बात का जवाब दिये बिना ही आगे बढ़ गई। समय कम है, मुझे अभी भी महिलाओं की मानसिकता को टटोलना है। अखबार के लिये महिलाओं की जागरूकता
पर रपट तैयार करनी है।
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