– रमेशराज
1.कैसे मंज़र?
जुबाँ
हमारी
तरल
नहीं अब
कैसे मंज़र?
प्यारी
बातें
सरल
नहीं अब
कैसे मंज़र?
अहंकार
के
बोल अधर
पर
नये वार
के,
हमथे
भूले
पाठ
सुलह के
सदाचार
के ।
सच की
बातें
सफल
नहीं अब
कैसे मंज़र?
2. बुरा हाल है
ये मलाल
है
अब पतझर
में
डाल-डाल
है।
कली-कली
का
इस
मुकाम पर
बुरा
हाल है।
आज न भौंरा
मधुरस
पीकर
विहँसे-झूमे,
अब
नटखट-सी
भोली
तितली
फूल न
चूमे।
कब आएँगे
घन सुख
लेकर
यह सवाल
है।
3. भोर कहाँ है?
अँधियारे
में
अब हर मंज़र
भोर
कहाँ है?
मुँह
फैलाए
चहुँदिश
हैं डर
भोर
कहाँ है?
मन
अन्जाने
परिचय
घायल
हम
बेगाने,
प्यासे
हैं सब
नदी
मुहाने।
सम्बन्धों पर
पसरा
अजगर
भोर
कहाँ है?
4. विजन हुए सब
काँकर
दूने
प्रेम-डगर
पर
पत्थर
दूने।
आज घृणा
के
अधर
-अधर पै
अक्षर
दूने।
कैसा
हँसना
बिखर
रहा हर
मीठा
सपना,
बोल
प्रेम के,
मगर
हृदय में
अन्तर
दूने।
वर्तमान
में
गठन-संगठन
नहीं
ध्यान में,
घर को
पा के
विजन
हुए सब
बेघर
दूने।
5. किरन सुबह की
हम
रातों के
सबल
तिमिर के
हम हैं
भइया
किरन
सुबह की
सुख
बाँटेंगे।।
फँसी
नाव को
तट पर
लाकर
मानेंगे
हम,
झुकें न
यारो
मन के
नव स्वर
ठानेंगे
हम।
काँटे
जिस पै
पकड़
डाल वह
अब
छाँटेंगे।।
बढें
अकेले
अलग-थलग
हो
अबकी
बारी,
कर आए
हैं
महासमर
तक
हम
तैयारी।
हर पापी
को
यह जग
सुन ले
अब
डाँटेंगे।।
सम्पर्क:15/109, ईसानगर,
निकट-थाना सासनीगेट, अलीगढ़ [उ.प्र.] मोबा. 09634551630
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