पहन
मेघमाला
- रेखा रोहतगी
1
आषाढ़ी धूप
बादलों से खेलती
आँख- मिचौली
कभी तो छुप जाती
कभी निकल आती।
2
बरसे नैन
घन सघन सम
मिलें न श्याम
होकर बावरिया
ढूँढूँ मैं चारों
धाम।
3
बरखा आई
पहन मेघमाला
साजे झूम
बूँदों का ओढ़कर
पवन का चूनर।
4
नित नवल
रूप धरें ये घन
चौकाएँ मन
कभी दुग्ध -धवल
कभी कृष्ण सघन।
0-9818903018
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