मेघ गरजे
- डॉ. पूर्णिमा राय
पेड़ से ही तो, जिंदगानी
है।
आब से ही मिली रवानी है।।
धूप उतरी चमन खिला सुन्दर
बागबाँ को मिली जवानी है।।
मेघ गरजे हुआ गगन पागल
आज धरती दिखे सुहानी है।।
ओस की बूँद फूल पर चमकी
पीर तारों की, ये
पुरानी है।।
धूल उड़ती फिज़ा भी, है
निखरी
साँझ की ये नयीकहानी है।।
रेत पर बन गए निशाँ देखो
हार में जीत भी मनानी है।।
मुक्त हो कर उड़ें परिन्दे भी
'पूर्णिमा’ भी हुई दिवानी है।।
1 comment:
मेघ गरजे बहुत सुन्दर कविता । बधाई पूर्णिमा जी ।
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