वसीयत
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डॉ.किरण वालिया
आज पूरी हो गई मेरी
वसीयत
कई दिनों से
मेरे काँपते हाथ
कलम का बोझ
सह नहीं पा रहे थे...
मेरी आँखों को
न जाने क्यों
धुँधला धुँधला दिखता
था....
मेरा यह मन
न जाने कौन से
जन्मों का
दर्द समेटे था ...
पर आज सब कर्ज़
उतार दिए मैंने।
दे डाले सारे अंगारे
उड़ेल दिया सारा
प्यार
अपनी ममता
अपना विश्वास
अपनी पीड़ा
अपना उल्लास
अपना उन्माद
अपना संघर्ष
अपने रिश्ते
सारे नाते
सब तुम्हें निभाने
हैं अब
लो लिख डाला है
मैंने अपना
वसीयतनामा।
सम्पर्क: प्राचार्या,
कमला नेहरू कॉलेज फार विमेन,
फगवाड़ा, पंजाब
1 comment:
सुंदर रचना..हार्दिक बधाई किरण जी
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