- मीना गुप्ता
दिसम्बर का महीना था ...ठण्ड अपनी जोरों पर थी। आस-पास की चीजों को अपदस्थ करके कोहरे ने जबरदस्त अधिकार जमा रखा था .सुबह के पाँच बज चुके थे। पति ने कहा
आज कॉलोनी में सुबह चार बजे से चार संदिग्ध लोग दिख रहे हैं....
मैंने व्यस्तता में जवाब दिया-
तो पूछा लेना था आप लोग कौन हैं ? कहकर
मैं मॉर्निंग-वाक के लिए निकल पड़ी धुंधलका था। गली के मोड़ पर पहुँची ही
थी कि स्टाफ के कई लोग एक साथ झुण्ड बनाए हुए नजर आए। मैंने माजरा समझना चाहा...
क्या हो गया सिन्हा सर?
...मैडम एकदम शुद्ध शहद है, ले लीजिए। हम सभी ने ली है ..पाण्डेय जी ने एक किलो लिया,
बिसेन जी ने एक किलो लिया,
बड़े बॉस ने भी दो किलो लिया है।
आप कैसे कह सकते है
कि एकदम शुद्ध है ?
हमारे सामने ही
निकाला है... समवेत स्वर में वे बोल उठे।
अच्छा तो ये वही लोग
है...
जो सुबह से कॉलोनी में घूम रहे हैं?
हाँ मैडम हम चार बजे
से लगे हैं ....शहद निकलने वालों में से एक बोला।
अपने खाद्य के साथ
चिपकी उन बेदम मक्खियों को देख मेरा मन लेने से इनकार कर गया।
मैंने पूछा आप लोग
कहाँ से आए हैं ?
बोले- मैडम
हम बहुत दूर के रहने वाले हैं ....
मुझे उन पर तरस आ
गया...
ठीक है दे दो-
क्या रेट है?
उसके बोलने से पहले ही स्टाफ के एक
मेंबर ने चुपचाप उँगली से इशारा किया तीन। एक किलो शहद का तीन सौ देकर मैं घर आई।
मैं खुश थी शुद्ध शहद तीन सौ में।
थोड़ी देर में बाहर
से आवाज आई मैडम शहद ले लीजिए।
खिड़की से ही मैंने
उन्हें बताया मैं ले चुकी हूँ . ...उनकी भरी हुई बाल्टी खाली हुई देख मैंने पूछा कितनी कमाई हुई?
उनमें से एक ने कहा ....तीन सौ।
मगर ...
तुम्हारी बाल्टी तो भरी हुई थी!
हाँ ...
भरी थी बीच में खाली हो गई।
मतलब?
कॉलोनी के बड़े सर
ने पैसे नहीं दिए
क्यों?
बोले- हमने
तुम्हें अन्दर आने को परमिट किया है...
बाकी ने?
बाकी बोले-
हम तुम्हें लेकर आए हैं।
कहकर चारो जल्द ही
कॉलोनी से बाहर हो गए कि कहीं बिचौलिए फिर न घेर लें।
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