उनकी आँखों में
- डॉ.ब्रह्मजीत गौतम
उन की आँखों में ऐसी तासीर
है
जो देखे सँवरे उसकी तक़दीर
है
कहते हैं कविता होती है पीर
से
कविता से कवि भी हो जाता
पीर है
जिस के पास नहीं दो दाने
प्यार के
राजा हो कर भी वो शख़्स
फ़क़ीर है
क्या रक्खा है मंदिर
मस्ज़िद चर्च में
घट-घट के अंदर उसकी तस्वीर
है
सब ने मैली कर दी चादर ओढ़
कर
ज्यों की त्यों धर दे वो
दास कबीर है
धूल धरो माथे पर अपने देश
की
धूल नहीं यह चंदन और अबीर
है
'जीत' ग़ज़ल वह
कहलाती है पुरअसर
जिसका हर इक श़ेर लगे ज्यों तीर है
(2)
यार क्यों हो गया ख़फ़ा
मुझसे
ऐसी क्या हो गई ख़ता मुझसे
जख़्म ये दिल पे मेरे कैसे
हुए
हाल कोई तो पूछता मुझसे
वक़्त की बेरुखी का क्या
कहिए
साथ हो कर भी है जुदा मुझसे
कोई क़ातिल है उनके रुख़ का
तिल
जान मेरी तो ले गया मुझसे
नींव ने यूँ कहा कंगूरे से
ये बुलंदी हुई अता मुझसे
मंज़िलें ख़ुद ही पास आएँगी
ले के चल हौसला ज़रा मुझसे
हार में ग़म न 'जीत' में ख़ुशियाँ
सीख लीजे ये फ़ल्सफ़ा मुझसे
युक्का- 206, पैरामाउंट सिम्फनी, क्रासिंग रिपब्लिक, गाज़ियाबाद- 201016, मो. 9760007838, 9425102154
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