- संजय वर्मा
माता-पिता का सहारा बनके
रिश्तों के मजबूत बंधन बनाती है बेटी
चाँद -तारों सी प्यारी बनके
ऊँचाइयों को छूने लग जाती है
बेटी।
घर के रिश्तों की बगियाँ मे
भर जाती है बन खुश्बू बेटी
कही कोख मे ना मार दे कोई
माँ डर जाती जब कोख मे हो बेटी।
भ्रूण -हत्या पर रोक लगे
ये कह रही अब हर घर की बेटी
जन्म से पहले ना मारों हमें
दुनिया मे ये सन्देशा पहुँचा रही है बेटी।
इस जग मे आने तो दो
कर देगी सबका नाम रोशन बेटी
माँओं की कोख ना उजाडो
लोरियां भला कहाँ सुन सकेगी बेटी।
भाइयों की कलाइयाँ सूनी ना हो जाए
भ्रूण हत्या रोकने की समाज से गुहार कर रही है बेटी
लिंग अनुपात गड़बड़ाने वालों को
कब कड़ी सजा मिलेगी ये इंतजार कर रही है बेटी।
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