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Aug 12, 2015

बोधकथा

दर्द का अहसास

-श्याम सुन्दर अग्रवाल

 बगदाद के ख़लीफा का एक ही बेटा था। खलीफा के बाद उसे ही गद्दी सँभालनी थी। अत: खलीफा अपने इस शहजादे को राजकार्य की शिक्षा दिलाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने शहजादे को एक वृद्ध काज़ी के पास भेज दिया। काज़ी के पास रहकर वह शिक्षा ग्रहण करने लगा। काज़ी ने उसे हर तरह की शिक्षा दी, एक-एक बात समझाई।
एक दिन ख़लीफा काज़ी के पास पहुँचे और पूछा, 'हज़रत! क्या शहजादे ने सब कुछ सीख लिया?’
काज़ी ने कहा, 'बादशाह सलामत! लगभग सारी शिक्षा इसने ग्रहण कर ली है। बस एक आखिरी सबक शेष रह गया है।  इतना कह कर उसने शहजादे को वस्त्र उतारने के लिए कहा। शहजादे ने वस्त्र उतारे तो काज़ी ने उसकी पीठ पर दो कोड़े मारे।
शहजादे की पीठ पर कोड़ों की मार से ख़लीफा हैरान रह गए। उन्होंने पूछा, 'यह आपने क्या किया?’
काज़ी ने कहा, 'जब यह बादशाह बनेगा तो लोगों को कोड़े मारने की सज़ा सुनाया करेगा। मैंने इसे कोड़े मार कर दर्द का एहसास करवा दिया है। अब सज़ा सुनाते वक्त इसे तकलीफ का एहसास रहेगा। गुनाह देखकर ही सज़ा देगा।

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