गद्दारी मत कर
- डॉ. श्याम सखा 'श्याम’
1
हम जैसों से यारी मत कर
खुद से यह गद्दारी मत कर।
तेरे अपने भी
रहते हैं
इस घर पर बमबारी मत कर।
रोक छलकती इन आँखों को
मीठी यादें ख़ारी मत कर।
हुक्म-उदूली का ख़तरा है
फ़रमाँ कोई जारी मत कर।
आना-जाना साथ लगा है
मन अपना तू भारी मत कर।
खुद आकर ले जाएगा वो
जाने की तैयारी मत कर।
सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर।
'श्याम’निभानी है
गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर।
दर्द सुना जिसने...
2
कुछ भी कहना पाप हुआ
जीना भी अभिशाप हुआ।
मेरे वश में था क्या कुछ?
सब कुछ अपने आप हुआ।
तुमको देखा सपने में
मन ढोलक की थाप हुआ।
कह कर कड़वी बात मुझे
उसको भी संताप हुआ।
दर्द सुना जिसने मेरा
जब तक ना आलाप हुआ।
शीश झुकाया ना जिसने
वो राना प्रताप हुआ।
पैसा-पैसा-पैसा ही
सम्बन्धों का माप हुआ।
इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
सिर्फ अगूँठा-छाप हुआ।
सम्पर्क: निर्देशक हरियाणा साहित्य अकादमी,
अकादमी भवन, पी-16,
सेक्टर-14, पंचकूला-134113
Email-
shyamskha1973@gmail.com,मोबाइल-09416359019
1 comment:
काफी अर्से के बाद हिंदी में कुछ बेहतरीन और ताज़ा ताज़ा गज़लें पढ़ने को मिली। आपको और डॉ. श्याम सखा 'श्याम' जी को मेरी ओर से साधुवाद।
प्रो. शिवदेव मन्हास
डोगरी विभाग, जम्मू विश्वविद्यालय जम्मू
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