बरस पड़े मेघा झर-झर
- शैफाली
गुप्ता
हौले से इक दिन
जो अम्बर हुआ स्याह
और बादलों में हुआ स्पंदन
बरस पड़े मेघा झर-झर,
एक-एक उस बूँद ने कहीं बुझाई
थकेहाल तन की तपन
तो कहीं भिगोया मन तर-बतर!
कहीं बच्चों के स्वर गूँजे
और चलने लगी कागज की
नन्ही बुलंद कश्तियाँ,
तो कहीं कपड़े समेट
भागी गृहिणियाँ अपने संसार में।
कहीं मुस्कुराएँ हरे पत्तों
के स्वरुप, खिलीं लताएँ
तो कहीं फैली खेतिहरों के
चेहरे पर तसल्ली।
मानसून का यह आगमन...
है मायने सभी के अपने
है अपने ही आनन्द
मगर खिड़की से बाहर जो मैंने झाँका
सोचा यह मानसून की है आहट
या अपने अन्दर उठने वाले
सागर का तूफ़ान!
सपने बुने थे किसी ख्वाब में एक बार
पकड़ तुम्हारा हाथ
फेंक
उस रंग-बिरंगी छतरी कोभी
भी गूँगी जी-भर तुम्हारे साथ,
मुस्कुराऊँगी आत्मा तक पोर-पोर
और चलूँगी फलक तक बादलों पर
तुम्हारे साथ!
सच, यह मानसून की है आहट
या तुम्हारी?
सम्पर्क: Milpitas, California, Email-shaifaligupta80@gmail.com,
Blog-guptashaifali.blogspot.com
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