- डॉ.सतीशराज पुष्करणा
विगत तीन-चार दशकों के कठोर संघर्ष के बाद डॉ. आदित्य
प्रताप सिंह, डॉ.भगवत
शरण अग्रवाल, डॉ.
सुधा गुप्ता, डॉ.
शैल चतुर्वेदी, उर्मिला
कौल, भावना
कुँअर, डॉ.
हरदीप संधु, रचना
श्रीवास्तव, डॉ.
उर्मिला अग्रवाल,
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु’जैसे अनेक
समर्थ कवि-कवयित्री की गंभीर साधना के फलस्वरूप आज हाइकु-काव्य इस स्थिति में आ
पहुँचा है कि वह पाठकों एवं समीक्षकों का ध्यान आकृष्ट कर सके तथा कोश के माध्यम
से अपनी सामर्थय को प्रत्यक्ष कर सके। प्रमाणस्वरूप डॉ.सुधा गुप्ता एवं डॉ.
उर्मिला अग्रवाल के संयुक्त संपादकत्व में प्रकाशित 'हिन्दी
हाइकु- प्रकृति-काव्य कोश’को अवलोकित किया जा सकता है, जो कुछ
माह पूर्व प्रकाश में आया है।
छह खण्डों में विभक्त महाभूतों तथा एकाधिक तत्त्वों को
समाहित किए 2196
हाइकुओं का संकलन मात्र नहीं है अपितु गम्भीर पीठिका के साथ-साथ 'आकाश’, 'वायु’, 'अग्नि’, 'जल’और 'पृथिवी’, इन पाँच
तत्त्वों के अतिरिक्त छठे खण्ड के रूप में 'संयुक्त तत्त्व'में
संकलित हाइकु से पूर्व प्रत्येक तत्त्व पर अलग-अलग एक-एक गंभीर लेख प्रकाशित है, जो विषय
की गम्भीरता को पूरी गहराई तक समझाने में सहायक है।
यहाँ एक प्रश्न सहज ही उठता है कि यह कोश क्यों है? यह कोश
इसलिए है कि इसमें छहों खंडों को मिलाकर 2196 हाइकु संकलित हैं तथा प्रत्येक खंड
के आरम्भ में विषय को स्पष्ट करता एक-एक लेख है। प्रत्येक खंड में प्रकाशित हाइकु
पर क्रम संख्या अंकित है और खंड के अंत में हाइकुओं की वही क्रम संख्या उन हाइकु
कवियों के वर्णक्रमानुसारनाम के सामने अंकित है, जिससे यह
स्पष्ट हो जाता है कि किस कवि के कौन-कौन से हाइकु हैं।
अंत में 'आधार ग्रन्थ’शीर्षक के अन्तर्गत जिन 151 पुस्तकों
से उन हाइकुओं को चुना गया है, वर्णक्रम से कृति का नाम, कृतिकार
का नाम और प्रकाशन वर्ष दिया गया है। इस सन्दर्भ
से यह भी पता चलता है कि प्रमुख
रूप से कौन-से हाइकु संकलन एवं संग्रह
प्रकाशित हुए हैं। इसके पश्चात् 'सहायक ग्रन्थ सूची’में उन
पुस्तकों एवं लेखकों के नाम के साथ-साथ, प्रकाशक का नाम एवं प्रकाशन का वर्ष देकर
संपादकद्वय ने पूरी पारदर्शिता का स्पष्ट परिचय दिया है। यह सारी सामग्री इतने
वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत की गई है कि किसी भी पाठक को कोई असुविधा
नहीं होती। प्रस्तुत सामग्री एवं उसका सटीक प्रस्तुतीकरण इस 388 पृष्ठीय
ग्रन्थ को सहज ही 'कोश’की श्रेणी में ला खड़ा करता है।
संपादकों का श्रम इस सामग्री से तो स्पष्ट है। इसके साथ
ही 200
पुस्तकों को देखने के साथ इण्टरनेट एवं नेट पत्रिकाओं- हिन्दी हाइकु, उदंती, अविराम
साहित्यिकी, त्रिवेणी
इत्यादि से खोजकर भी उपयुक्त हाइकु को स्थान दिया गया है। प्रकृति के पाँच तत्वों
को केन्द्र में रखकर न केवल यह प्रथम कार्य हुआ, अपितु इतना विशाल काम भी पहला ही है।
अब थोड़ी चर्चा इस कोश में प्रकाशित हाइकुओं पर भी हो
जाए, तभी
पुस्तक एवं संपादकों के प्रति न्याय हो पाएगा। पहले खंड में 398, दूसरे
खण्ड में 508, तीसरे
खण्ड में 228, चौथे
खण्ड में 366, पाँचवें
खंड में 438
और अंतिम यानी छठे खंड में 258 हाइकु का पूरी ईमानदारी से श्रेष्ठ चुनाव
किया गया है। श्रेष्ठता का पता हाइकु-अध्ययन के पश्चात्स्पष्ट
होता है। उदाहरण स्वरूप प्रत्येक खंड से क्रमश: दो-दो हाइकु प्रस्तुत हैं- नभ
उदास/हो गई दोपहर/कोई न पास (प्र.खंड क्र. 268) नभ में ताके/प्यासी एक गौरैया/सूखी
तलैया (प्र.खंड क्र. 309) पवन छुई/पत्ते नाचते-गाते/बाँटते सुख (द्वि.खंड क्र. 35 ) घाम से
डर/दुबक कर बैठी/शीतल हवा (द्वि.खंड क्र. 25) तेज है धूप/अगनी बनी स्तूप/सूखे हैं
कूप (तृ.खंड क्र. 29) दौड़ती आती/आग बरसाती/धूप सताती (तृ.खंड क्र. 74) बादल
घना/भर गई तलैया/पानी बरसा (च.खंड क्र. 67) वर्षा का पानी/भिगोता तन-मन/खुश है
प्राणी (च.खंड क्र. 46) ओढ़ सो गयी/शरद की चाँदनी/भोली धरती (पं.खंड क्र. 25) आई
हिचकी/बादल को जब भी/धरा सिसकी (पं.खंड क्र. 289) पुरवा झूमे/लहरा के बादल/धरती चूमे
(ष.खंड क्र. 162)
चाँदनी खिली/अंबर-आँगन में/धरती धुली (ष.खंड क्र. 242)
उपर्युक्त बारह
उद्धरणों से जहाँ चुनाव की श्रेष्ठता का पता चलता है, वहीं यह
बात भी स्पष्ट हो जाती है कि हाइकु-काव्य भी अपनी सीमा के भीतर अपनी महत्ता एवं
श्रेष्ठता का सहज ही परिचय देता है। ये उद्धरण हाइकु के उज्ज्वल भविष्य की ओर भी
सुखद संकेत करते हैं।
पाँच तत्व, जो प्रकृति के विभिन्न अंग हैं, के विषय
में भी थोड़ी जानकारी आवश्यक है। इस पुस्तक की पीठिका में संपादकद्वय ने स्पष्ट
किया है- इन पाँच तत्त्वों में पृथिवी का विस्तार सबसे कम है। सृष्टि में पृथिवी
एक चौथाई भाग और तीन भाग जल है। (जल का विस्तार अधिक सिद्ध होताहै।) अग्नि का
विस्तार जल से अधिक है। हर वायु/स्थान में अग्नि विद्यमान है। ज्वलनशीलता हर वस्तु
का गुण है। अग्नि का संस्पर्श पाते ही प्रत्येक पदार्थ जल उठता है। अग्नि सदैव ऊर्ध्वमुखी
होकर अपने विस्तार का परिचय देती है। वायु का विस्तार अग्नि से अधिक है। पृथिवी के
200
किलोमीटर ऊपर तक वायु विद्यमान है। और वायु के कारण जीवन संभव है। अत: इसी कारण
साधारण भाषा में वायु को जीवनाधार, 'प्राणाधार'कहा जाता है। आकाश तत्त्व का व्यापकत्व सर्वाधिक
है। 'आकाश’असीम, अनन्त, सर्वव्यापी
है। उसे मापा नहीं जा सकता। वैज्ञानिक अध्ययन ने सिद्ध कर दिया है कि मानव शरीर
इन्हीं पाँच तत्त्वों से निर्मित है। अत: यह बहुत ही स्वाभाविक है कि मनुष्य जिन
पाँच प्रकृति तत्त्वों से निर्मित है, उसका ध्यान उस ओर जाए और जब इन पाँच
तत्त्वों की चर्चा हो जाए तो प्रकृति में इससे इतर कुछ शेष रह ही नहीं जाता।
यह संतोष की विषय है कि हाइकु की मूल चेतना कभी दर्शन और
बाद में प्रकृति रही है और आज भी है। संपादकद्वय ने हाइकु- कोश प्रकाशित कराने से
पूर्व यदि हाइकु की मूल चेतना पर विचार किया है तो यह स्वाभाविक भी था। संपादकद्वय
की इस भावना की भूरि-भूरि प्रशंसा की जानी चाहिए।
इन हाइकुओं को पढ़कर यह भी संतोष होता है कि वर्तमान में
प्राय: चर्चित हाइकुकारों के हाइकु इस कोश की शोभा बन अपनी सुखद उपस्थिति का सहज
ही अहसास कराते हैं।
पुस्तक: हिन्दी हाइकु
प्रकृति-काव्यकोश संपादन- डॉ. सुधा
गुप्ता/ डॉ.उर्मिला अग्रवाल। प्रकाशक- अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई
दिल्ली-110030।
मूल्य- रु. 750/-
मात्र। संस्करण- 2014।
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