लहरों की ताल पे
- डॉ. कुँवर दिनेश सिंह
ये अम्बरी है
नारी सावन नीर
कादम्बरी है।
2
धुँध हर सू
अपने ही ख्यालों में
गुमसुम भू।
3
बुंदियाँ झरें
समेटती जा रहीं
प्यासी लहरें।
4
सावन झरी
लहरों की ताल पे
बने घुमरी।
5
अल्हड़ बूँदें
रिमझिम ताल पे
नाचती बूँदें।
6
चाँदनी रात
ओस बना रही है
चाँदी के पात।
7
सावन तारी
बादलों से उलझी
धूप बेचारी।
8
नाचे सारंग
बादलों को कीलते
पंखों के रंग।
9
धँधेरी उठी
धरा के हृदय में
है धुकधुकी।
10
तनाव भंग
सूरज-मेघा सन्धि
वर्णाली रंग।
11
चीड़ों के बीच
पगडण्डी अकेली
लेती है खींच।
12
राह एकान्त
पथिक को जोहती
हुई अशान्त।
13
समता- भरी
आकाश की आँखें
हैं
ममता-भरी।
14
रंग बदले
आसमान रँगीला
ढंग बदले।
15
खड्ड में पानी
अश्मों से टकराता
गाए रागिनी।
16
सलिल जीता
सिल से जो भी भिड़ा
आया न जीता।
17
जल-प्रवाह
परकोटे में रूँधा
खोजता राह।
18
आती है पौन
दर को खटकाती
रहती मौन।
19
डगर सूनी
जी बहलाने आई
हवा बातूनी।
20
वन-अनल
चिल्लाते रहे वृथा
मृगों के दल।
21
चीड़ जलते
जंगल की आग में
चुप्प बलते।
22
किरने ढोएँ
थका -माँदा सूरज
पूछे न कोए।
23
मेघों का राग
भर रहा है देखो
पानी में आग।
24
पावस-रात
खेले आँख-मिचौली
जुगनू साथ।
लेखक के बारे में: डॉ. कुँवर दिनेश सिंह शिमला, हिमाचल
प्रदेश के निवासी हैं। ये हिन्दी व अंग्रेज़ी के जाने माने कवि, कहानीकार, लेखक, आलोचक एवं
अनुवादक हैं। अब तक इनके अंग्रेजी में 15 काव्य संग्रह, हिन्दी
में 7
काव्य संग्रह एवं अंग्रेजी में 5 आलोचना ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं।
इन्हें कई साहित्य सम्मान प्राप्त हैं। हिमाचल प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार से
अलंकृत हो चुके हैं। सम्प्रति महाविद्यालय में अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य के
एसोसिएट प्रोफेसर के रुप में कार्यरत हैं।
सम्पर्क- संपादकः हाइफन, 3 सिसिल क्वार्टज़, चौड़ा
मैदान, शिमला-171004, हि.प्र., मो. 09418626090, Email-
kanwardineshsingh@gmail.com
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