सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे
हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं, एक सुविकसित सभ्यता थी जो वर्तमान उत्तर पश्चिमी भारत और
पाकिस्तान में पनपी थी। हाल ही में किए गए अध्ययनों से संकेत मिलता है कि इस
सभ्यता के विनाश का एक प्रमुख कारण करीब 200 वर्षों तक लगातार मानसून की नाकामी
थी।
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों से पता
चलता है कि यह एक विकसित नगरीय सभ्यता थी जहां उम्दा व्यवस्थाएं थीं। इनमें शहरों
में नालियाँ तथा निकास व्यवस्था प्रमुख थीं। मगर करीब 4000 साल पहले यह सभ्यता और
इसके शहर धीरे-धीरे वीरान होते गए और अंतत: नष्ट हो गए। इस तबाही के कारण अस्पष्ट
रहे हैं।
वैसे कांस्य युग की अन्य सभ्यताएं, जैसे
मिस्र, यूनान और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के लोप का कारण 2000 ईसा पूर्व में पड़े
लगातार सूखे को माना जाता है। अब पता चला है कि शायद यही हाल हड़प्पा सभ्यता का भी
हुआ था। इस संदर्भ में खोज के मार्ग में एक बाधा यह थी कि हड़प्पा सभ्यता के
क्षेत्र का जलवायु रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं था।
इसी संदर्भ में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय
की पुरा-जलवायु वैज्ञानिक यामा दीक्षित और उनके साथियों ने हड़प्पा सभ्यता के एक
स्थल कोटला डहार से प्राप्त तलछटों का विश्लेषण करके अतीत की जलवायु का अनुमान
लगाने की कोशिश की है। कोटला डहार हरियाणा में है और यह एक ऐसा स्थल है जहां पानी
भर जाता है। निकासी का कोई मार्ग न होने की वजह से पानी सिर्फ वाष्पीकरण के द्वारा
ही उतरता है।
दीक्षित व साथियों ने कोटला डहार से
विभिन्न गहराइयों की तलछट की परतें एकत्रित कीं। इन विभिन्न परतों में उन्हें झील
में पाए जाने वाले घोंघे (मेलानॉइड्स ट्यूबरकुलेटा) की खोलें प्राप्त हुईं। ये खोल
कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती हैं। कैल्शियम कार्बोनेट में जो ऑक्सीजन पाई जाती
है उसमें ऑक्सीजन का दो में से एक समस्थानिक यानी आइसोटोप हो सकता है - ऑक्सीजन-16
या ऑक्सीजन-18। समस्थानिक का मतलब होता है कि एक ही तत्व के ऐसे परमाणु जिनके परमाणु
भार अलग-अलग होते हैं।
आम तौर पर देखा गया है कि सूखे के
दिनों में जब पानी का वाष्पन होता है तो ऑक्सीजन-16 वाले पानी का वाष्पीकरण
ऑक्सीजन-18 की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से होता है। जब दीक्षित व उनके साथियों ने
विभिन्न परतों में घोंघे की खोल के कैल्शियम कार्बोनेट में ऑक्सीजन-16 व
ऑक्सीजन-18 के अनुपात की तुलना की तो पता चला कि करीब 4200 से 4000 वर्ष पूर्व की
अवधि में वर्षा अचानक कम हो गई थी।
इसका मतलब यह निकलता है कि आज से
करीब 4000-4200 वर्ष पूर्व की 200 साल की अवधि में बारिश बहुत कम हो रही थी।
इसी प्रकार का एक अध्ययन जर्मनी के
जियोसाइंस रिसर्च सेंटर की सुषमा प्रसाद ने मध्य भारत में स्थित लोनार झील पर भी
किया है। उनका निष्कर्ष है कि इस क्षेत्र में करीब 4600 वर्ष पूर्व सूखे की स्थिति
शु डिग्री हुई थी। यानी यहां सूखे की स्थिति काफी पहले शुरू हो चुकी थी।
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि
4000 वर्ष पूर्व यह जलवायु परिवर्तन क्यों हुआ था लेकिन इतना स्पष्ट है कि जलवायु
के ऐसे परिवर्तन सभ्यताओं को तबाह कर सकते हैं। आजकल जलवायु परिवर्तन की स्थिति
में यह चिंता का विषय होना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)
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