यह विश्व की सबसे अधिक पढ़ी गई प्रेरक लघुकथा है। बचपन
में मैंने इसे कहीं पढ़ा और यह मुझे इसी रूप में पढऩे को मिलती रही है। प्रसिद्ध
लघुकथाओं के स्वरूपों में समय के साथ ही परिवर्तन आ जाते हैं और यह स्वाभाविक भी
है, लेकिन
यह लघुकथा न्यूनतम परिवर्तनों के साथ पीढ़ी-दर-पीढ़ी पढ़ी जाती रही है। बहुत संभव
है कि आप इसे पहले ही कहीं पढ़ चुके हों लेकिन इस वेबसाइट में इसका समावेश आवश्यक
लग रहा था इसलिए इसे प्रस्तुत किया जा रहा है।
कभी ऐसा हुआ कि एक बड़े जहाज का इंजन खराब हो गया। जहाज
के मालिक ने बहुत सारे विशेषज्ञों को बुलाकर उसकी जाँच कराई लेकिन किसी को भी समझ
में नहीं आया कि इंजन में क्या गड़बड़ थी।
जब किसी को भी जहाज के इंजन की खराबी का कारण पता न चला
तो एक बूढ़े मैकेनिक को बुलाया गया जो बहुत छोटी उम्र से ही जहाज के इंजनों को ठीक
करने का काम कर रहा था।
बूढ़ा मैकैनिक अपने औजारों का बक्सा लेकर आया और आते ही
काम में जुट गया। उसने इंजन का बारीकी से मुआयना किया।
जहाज का मालिक भी वहीं था और उसे काम करते देख रहा था।
बूढ़े मैकेनिक ने इंजन को जाँचने के बाद अपने बक्से से एक छोटी सी हथौड़ी निकाली और
इंजन के एक खास हिस्से पर हथौड़ी से धीरे से चोट की। चोट पड़ते ही इंजन गडग़ड़ाते
हुए चल पड़ा। बूढ़े ने हथौड़ी बक्से में वापस रख दी। उसका काम पूरा हो गया था।
एक हफ्ते बाद जहाज के मालिक को बूढ़े मैकैनिक का बिल
मिला जिसमें उसने इंजन की मरम्मत के लिए दस हजार रूपए चार्ज किए थे।
बिल देखते ही मालिक चकरा गया। उसे लगा कि बूढ़े मैकेनिक
ने ऐसा कुछ नहीं किया था जिसके लिए उसे इतनी बड़ी रकम दी जाए।
उसने बिल के साथ एक नोट लिखकर वापस भेज दिया कि मरम्मत
के काम का आइटम-वाइज़ बिल भेज दीजिए।
बूढ़े मैकेनिक ने बिल रिवाइज़ करके भेज दिया। बिल में
लिखा था:
1. हथौड़ी
से चोट करने की फीस- रु. 5/-
2. चोट
करने की जगह खोजने की फीस- रु. 9,995/-
कुल- रु. 10,000/-
अपने सपनों को
पूरा करने के लिए प्रयास करना बहुत ज़रूरी है, लेकिन इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण इस बात का ज्ञान
होना है कि प्रयास किस दिशा में किए जाए।
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