- मुरलीधर वैष्णव
वह सपत्नी बृजदर्शन के लिए आया हुआ था। गोवर्धन पर्वत पर
दान एवं दूध चढ़ाने का उसकी पत्नी का संकल्प उसे जो पूरा करना था। इसके लिए उसकी
पत्नी ने पाई-पाई बचाकर इंक्यावन सौ रुपये जमा कर रखे थे।
वृन्दावन के एक यात्री निवास में ठहरने के बाद दूसरे दिन
सुबह उन्हें गोवर्धन जाना था। यात्री निवास का बिल चुकाने के लिए वह मैनेजर के
कक्ष में गया तो पता चला कि पिछवाड़े चौकीदार के कमरे पर कोई झगड़ा हो रहा है, उसी
सिलसिले में मैनेजर वहाँ गया हुआ है। वह भी उधर ही चला गया। वहाँ उसने देखा कि एक
मिनी- बस खड़ी थी जिसका फ्रन्ट ग्लास टूटा हुआ था। बस चालक ने चौकीदार की गिरहबाँ
पकड़ रखी थी और उससे गाली गलौच कर रहा था। मैनेजर ने उसे बतलाया कि चौकीदार के
बच्चे द्वारा पत्थर फेंकने से मिनी बस का फ्रन्ट-ग्लास टूट गया है और बस चालक उससे
इस नुकसान के पाँच हजार रुपये वसूलने पर आमादा है।
पन्द्रह सौ रुपये महिना तो इसे पगार मिलती है। तीन बच्चे
और इसकी बीमार
औरत है। यह गरीब आदमी अब कहाँ से लाएगा पाँच हजार रुपये! मैनेजर चालक से बोला।
तो मैं क्या करू
साब! बस मालिक तो मेरी तनख्वाह से काट लेगा न यह रकम। मेरे भी बाल बच्चे
हैं। मेरे साथ भी तो गरीब मार हो रही है साब! चालक गुस्से के साथ रूआँसा भी हो रहा
था।
चौकीदार की बिमार बीबी और तीनों बच्चें डरे दूबके एक
तरफ खड़े थे।
यह सब नजारा देख वह करूणा से भर गया। उसे लगा, दुर्भाग्य
चौकीदार और चालक दोनों के बच्चों के मुँह से दूध छीन रहा है। उसने अपनी पत्नी की
ओर अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा। पत्नी ने भी बात समझते हुए आँखों ही आँखों में अपनी
सहमति दे दी।
वह मैनेजर तथा चालक को एक तरफ ले गया। उसने तत्काल मैनेजर को अपना बिल चुकाया
और दूधदान के लिए बचाए इक्यावन सौ रुपयों में से पाँच हजार रुपये चालक की
हथेली पर रख कर वहाँ से चल दिया।
एम.ए. दर्शन शास्त्र का छात्र कुमार आज अपने कॉलेज की
पिकनिक में जा रहा था। उसे चेतक सर्कल से बस पकडऩी थी। फरवरी की उस सुहावनी सुबह
में कुमार के मस्ती भरे कदम सड़क के पास खदान में पड़े एक नवजात शिशु को रोते
देखकर अचानक ठिठक पड़े। क्षीणकाय शिशु का रुदन भी क्षीण ही था। उसने सोचा, क्या
करें। उधर घड़ी की टिकटिक बतला रही थी कि बस छूटने में केवल दस मिनट ही शेष हैं।
बच्चे को उठाकर वह पुलिस में ले जाएगा। और कहीं रास्ते में ही बच्चा.....
पुलिस तो फिर पुलिस है। बीसियों सवालों के जवाब देने
होंगे। पिकनिक का सारा मूड खराब हो जाएगा। उसने पीछे मुड़कर देखा, एक वृद्ध
शायद प्रात: भ्रमण से उधर ही लौट रहा था। उसने सोचा, अपनी पिकनिक की चिन्ता
करनी चाहिए। बच्चे की चिंता पीछे आ रहा वृद्ध कर लेगा। आखिर इन बुजुर्गों के पास
काम ही क्या है?
एक बार उसने पीछे आ रहे वृद्ध को पुन: देखा। आश्वस्त हो
जाने पर कि वह उस ओर ही आ रहा है, कुमार के कदम चेतक सर्कल की ओर तेजी से बढ़
गए ।
दूसरे दिन अखबार में यह खबर पढ़कर उसका दिल धक-से रह गया
कि चेतक रोड के पास एक नवजात शिशु का क्षत-विक्षत शव मिला। कुत्ते ने उसका करीब
आधा शरीर खा लिया था।
उसके दर्शन शास्त्र ने तर्क दिया- चिंता व्यर्थ है, चिंता
अज्ञान है, सब
कुछ नश्वर है यहाँ, लेकिन तभी ग्लानि और क्षोभ ने उसे तमाचा मारा- जिसने उस शिशु
को मारा वह कुत्ता तू है और कातिल भी!
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