एक दिन बुद्ध ने भूमि
पर घिसटते हुए एक लंगड़े योगी को देखा।
मैं अपने पापों का फल
भोग रहा हूँ- योगी ने कहा।
तुमने कितने पापों का
फल भोग लिया है?
यह तो मैं नहीं जानता।
और कितने पापों का फल
भोगना शेष है?
मैं यह भी नहीं जानता।
बस करो अब रुकने का समय
आ गया है। ईश्वर से क्षमा माँगना बंद करो और उनसे क्षमा मांगो जिन्हें तुमने आहत
किया।
क्षमादान का मूल्य
क्षमादान की शक्ति और
उसके महत्व का मोल वही आँक सकते हैं जिन्हें क्षमादान मिला होता है।
कुछ तीर्थयात्रियों का
दल मंदिर में दर्शन कर रहा था। उनमें से एक श्रद्धालु को ईश्वर की उपस्तिथि का
अनुभव होने लगा। वह समाधि में चला गया और उसने ईश्वर से कहा- भगवन, कृपया मुझे एक यही वरदान दीजिये कि आप मुझसे कभी भी
रुष्ट न हों।
मैं तुम्हें यह वरदान
नहीं दे सकता ईश्वर ने कहा- यदि तुम मुझे कभी रुष्ट नहीं करोगे तो मैं भी तुम्हें
कभी क्षमा नहीं कर सकूँगा। ऐसी स्थिति में तुम दूसरों के प्रति करुणा और दया का
भाव भी विस्मृत कर दोगे।
सभी के प्रति अपने
ह्रदय में अपार प्रेम का भाव रखो। मैं तुम्हें सदैव क्षमा करता रहूँगा ताकि तुम इस
सद्गुण को न बिसरा दो। (हिन्दी ज़ेन से)
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