- डॉ.
पीसी लाल यादव
भारतीय संस्कृति में बड़ी विविधता है। इस विविधता का कारण यहाँ विभिन्न
धर्मो और विभिन्न संस्कृतियों का समन्वय है। कहीं-कहीं इस विविधता का प्रमुख कारण
यहाँ की आंचलिक जीवन-शैली और उसकी लोक संस्कृति भी है। किसी तीज त्योहार या पर्वों
के पीछे उसकी वैदिक मान्यता के स्थान पर उसकी लोक मान्यता ज्यादा प्रभावी और असरदार
होती है ; इसीलिए भारतीय जीवन और संस्कृति बहुरंगी है। जैसे स्थान-स्थान की पृथक्-पृथक्
आबो-हवा में एक पौधा या जीवनजन्तु का रंग बदलकर भिन्न हो जाता है। भारत की भौगोलिक
स्थितियों की भिन्नता भी यहाँ की सांस्कृतिक भिन्नता का प्रमुख कारण है। तीज-त्योहार
भी इससे अप्रभावित नहीं है। जैसे हरतालिका व्रत का छत्तीसगढ़ लोक जीवन में तीजा हो
जाना।
गाँव में रहकर लोक को
देखने-सुनने का खूब अवसर मिलता है। तब लोक की इन्द्रधनुषी छवि से हृदय सम्मोहित
हुए बिना नहीं रहता है। नाचा में कुछ गीत सुनने को मिलते थे तब उनकी ओर ध्यान नहीं
गया। आज जब उन गीतों के बारे में सोचता हूँ तब लगता है कि कोई भी लोकगीत अकारण
नहीं गाया जाता। उनके पीछे कोई न कोई
लोकजीवन से जुड़े सन्दर्भ होते हैं। यह टटोलने पर अब मिलता है। नाचा में परी अपने भाई
की बाट जोहते हुए गाती है-
पोरा के रोटी धर के, भैया मोर आवत होही,
तीजा लेगे बर मोला भैया मोर आवत हो ही।
तीजा लेगे बर मोला भैया मोर आवत हो ही।
और इसी नाचा में गाये
जाने वाले अग्रलिखित लोकगीत का दूसरा पक्ष यह भी है-
तीजा बड़ दुख दाई गा
तीजा बड़ दुखदाई,
नरतन हार खाके भाई, तीजा बड़ दुखदाई।
नरतन हार खाके भाई, तीजा बड़ दुखदाई।
इन दोनों गीतों में
पहले तीजा आगमन पर उल्लसित बहन द्वारा भाई की प्रतीक्षा और दूसरे गीत में भाई या
बाप के अन्तर्मन की पीड़ा मुखरित हुई है। इन गीतों के माध्यम से छत्तीसगढ़ में
तीजा का महत्व मुखरित होता है। आगे यह भी कि-
सावन मनाबो हरेली भादो तीजा रे तिहार,
कातिक मनाबो देवारी, फागुन उडय़ रे गुलाल
ये पंक्तियाँ यहाँ के लोक जीवन में तीज त्यौहारों के मर्म और उसके लोक प्रभावों को स्पष्ट करती हैं।
सावन मनाबो हरेली भादो तीजा रे तिहार,
कातिक मनाबो देवारी, फागुन उडय़ रे गुलाल
ये पंक्तियाँ यहाँ के लोक जीवन में तीज त्यौहारों के मर्म और उसके लोक प्रभावों को स्पष्ट करती हैं।
तीजा भादो मास के शुक्ल
पक्ष में तृतीया को मनाया जाता है। इसे सामान्यत: हरतालिका व्रत भी कहा जाता है।
हरतालिका विवाहित महिलाओं द्वारा अखंड सौभाग्य की कामना से रखा जाता है।
कहीं-कहीं कुँवारी
लड़कियाँ भी सुयोग्य वर की कामना से उपवास करती हैं। पुराणों में यह बात उल्लिखित
है कि पार्वती ने वर के रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए इस दिन घोर तपस्या की
थी। इसी की स्मृति में महिलाओं द्वारा हरतालिका व्रत व उपवास रखा जाता है। यह एक
सामान्य सी जानकारी है, किन्तु
हरतालिका अर्थात तीजा का छत्तीसगढ़ में विशिष्ट महत्त्व है। ऊपर मैंने जिन लोकगीतों
की चर्चा की है, उसके केन्द्र में यही तीजा है।
तीज त्योहार लोक जीवन
में रंग भरते हैं और उमंग भी। तीजा के समय बेटी व बहनों को पिता या भाई द्वारा
लिवा कर लाया जाता है। बेटी और बहन के लिए यह त्योहार आनंद व उमंग लेकर आता है। ये
जब मायके आती हैं तो इनकी खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहता। पुरानी सखी सहेलियों
से भेंट, माँ-बाप, भाई-बहन का बिछड़ा
हुआ साथ, बड़े बूढ़ों का सान्निध्य व आशीर्वाद जैसे सब कुछ
जीवन में लौटकर आ जाता है। वही नदी-नाले, घाट-घटौन्दे,
बाग-बगीचे, खेत-खार, घर-द्वार
जो विवाह के पूर्व सब बचपन के साथी थे। इन सबसे मिलकर जैसे सपनों को पंख लग जाते
हैं। ससुराल की बंदिशों से कुछ समय के लिए मुक्ति मिलती है। ये बहन, बेटियाँ मायके आकर चिड़ियों की तरह फुदकती हैं और झरनों की तरह गाती हैं।
लाज और संकोच छूट जाते हैं, स्नेह-प्यार व मया-दुलार पाकर
जैसे क्लांत चेहरा फूल की तरह खिल-खिल जाता है। ये सारी खुशियाँ मिलती हैं, तीजा में
मायके आने पर। तब बेटी क्यों न जोहे बाट अपने बाप की? बहन
क्यों न ताके राह अपने भाई की?
उन बहन बेटियों का आनंद द्विगुणित हो जाता है
जिन्हें तीजा से आठ-दस दिन पहले ही लिवा कर ले जाया जाता है। किन्तु मायके पक्ष व
ससुराल पक्ष में कार्य की अधिकता या व्यस्तता के कारण पोरा के बाद मायके जाने वाली
बहन बेटियों का धीरज लेनहार भाई की प्रतीक्षा में जवाब दे जाता है। फिर भी उसे आशा
है कि उसका भाई पोला त्योहार की रोटी (व्यंजन) लेकर उसे लेने आएगा; इसलिए।
प्रतीक्षातुर बहन के कंठ से यह लोकगीत झरता है- नव व्याहता बेटी के लिए तो यह और
भी परीक्षा की घड़ी होती है।
पोरा के रोटी धर के, भैया मोर आवत होही,
तीजा लेगे बर मोला, भैया मोर आवत होही।
तीजा के पहले दिन उपसहिन करू भात खाती हैं। इसमें करेले की सब्जी की अनिवार्यता होती है वे पास पड़ोस में रिश्तेदारों के घर जाकर देर रात तक खाती हैं। खाना कम, मान रखना ज्यादा। तीज के दिन मौनी स्नान करती है। इस दिन नीव व सरफोंक के दातुन का अपना वैज्ञानिक महत्त्व है। उपवास की साधना में ये ज्यादा सहायक होते है। लोक की ऐसी मान्यता है। फिर आठों पहर रात्रि में जागकर फुलौरा सजाकर शिव पार्वती की पूजा करती है। अपने अखंड सौभाग्य की कामना लिए एक नारी ही तो है जो धरती की तरह सबकुछ सहन कर दूसरों की मंगल के लिए व्रत उपवास करती है। कभी बेटे के लिए बहुरा चौथ, कभी पति के लिए करवा चौथ और हरतालिका, पर अपने लिए किसी से भी कुछ नहीं माँगती। इस पर भी उसे क्या मिलता है? तिरस्कार, अपमान और उपेक्षा। सब सहती है, क्योंकि वह माँ है, इसलिए पूजनीय है, महान है।
तीजा लेगे बर मोला, भैया मोर आवत होही।
तीजा के पहले दिन उपसहिन करू भात खाती हैं। इसमें करेले की सब्जी की अनिवार्यता होती है वे पास पड़ोस में रिश्तेदारों के घर जाकर देर रात तक खाती हैं। खाना कम, मान रखना ज्यादा। तीज के दिन मौनी स्नान करती है। इस दिन नीव व सरफोंक के दातुन का अपना वैज्ञानिक महत्त्व है। उपवास की साधना में ये ज्यादा सहायक होते है। लोक की ऐसी मान्यता है। फिर आठों पहर रात्रि में जागकर फुलौरा सजाकर शिव पार्वती की पूजा करती है। अपने अखंड सौभाग्य की कामना लिए एक नारी ही तो है जो धरती की तरह सबकुछ सहन कर दूसरों की मंगल के लिए व्रत उपवास करती है। कभी बेटे के लिए बहुरा चौथ, कभी पति के लिए करवा चौथ और हरतालिका, पर अपने लिए किसी से भी कुछ नहीं माँगती। इस पर भी उसे क्या मिलता है? तिरस्कार, अपमान और उपेक्षा। सब सहती है, क्योंकि वह माँ है, इसलिए पूजनीय है, महान है।
तीजा रहने वाली
तीजहारिन को साड़ी उपहार में दी जाती है। यहाँ उक्ति भी प्रचलित है-मइके के फरिया
अमोल अर्थात मायके से कपड़े का टुकड़ा भी मिलता है तो अनमोल होता है। यह है
छत्तीसगढ़ की अपनी लोक- परम्परा जिसका निर्वाह लोक जीवन में न जाने कब से हो रहा
है। इस दिन माताएँ बेटियों के लिए चूड़ियाँ, फीते सिंदूर लेकर देती हैं। तुरकिन घर-घर घूमकर तीजहारिनों को चूड़ियाँ पहनाती है। तीजा की यह अनोखी परम्परा अन्यत्र
शायद दुर्लभ हो।
छत्तीसगढ़ में मामा
द्वारा भांजे -भांजियों को चरण छूकर प्रणाम करने की परम्परा है। विद्वानों का कथन
है कि छत्तीसगढ़ को पहले दक्षिण कौशल कहा जाता था। यहाँ के राजा भानुमंत की बेटी
कौशिल्या, राजा दशरथ को
ब्याही गई थी। अत: कौशिल्या छत्तीसगढ़ की बहन हुई और उनका पुत्र राम भांजा।
इसीलिए यहाँ भांजा को राम के रूप में प्रतिष्ठित कर मामा द्वारा भांजे को चरण छूकर
प्रणाम किया जाता है। इस दृष्टि से बहनों के साथ तीजा के समय उनके बच्चे अर्थात्
भांजे-भांजी भी आते हैं। उन्हें भी नये कपड़े देकर मामा उनके चरण छूकर यश का भागी
बनता है ; इसीलिए छत्तीसगढ़ में तीजा का अपना अलग महत्त्व है।
अब इसका दूसरा पक्ष
दूसरे गीत के माध्यम से, जिसमें
तीजा को दुखदायी कहा गया है। यह गीत हमें सोचने के लिए विवश करता है। कि आखिर वह
कौन सी स्थितियाँ होंगी, जिसके कारण तीजा दुखदायी साबित होती
है।
तीजा बड़ दुखदायी गा,
नर तन हार खाके भाई,
तीजा बड़ दुखदायी।
नर तन हार खाके भाई,
तीजा बड़ दुखदायी।
यह परिस्थितियाँ उन भाइयों
के लिए हो सकती हैं, जिनकी
बहनें नहीं हैं। यही बात बाप और बेटी के सन्दर्भ में कही जा सकती है। तब भला सोचिए
इन परिस्थितियों में उन पर क्या गुजरती होगी? जिन भाइयों की
बहन नहीं है या बहनों के भाई नहीं है, जिस बेटी का बाप गुजर
गया हो या उस बाप की बेटी गुजर गयी हो तब तीजा दुखदायी है। निश्चित रूप से दुखदायी
है।
हरतालिका का लोक रूप तीजा
के पीछे बहन बेटियों की अखंड सौभाग्य कामना की जो भावना है, वह लोक मंगलकारी होने का सूचक है। तीजा का स्वरूप
अन्यत्र जहाँ भी, जैसा हो लेकिन छत्तीसगढ़ में इसकी उज्ज्वल
परम्परा लोक को प्यार-दुलार और ममता के सूत्र में बाँधती है। छत्तीसगढ़ के तीज त्योहारों
की लोक परम्परा का यह अनूठा चरित्र यहाँ के लोक जीवन को आकाशीय ऊँचाई प्रदान करता
है। ( रामहृदय तिवारी द्वारा संपादित पत्रिका- "लोकरंग अरजुन्दा " से )
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