रायपुर
-जी.के.
अवधिया
छत्तीसगढ़ के अन्तर्गत
आने के कारण रायपुर भी अत्यन्त प्राचीन क्षेत्र है। यदि रायपुर के इतिहास का
अवलोकन करें तो ज्ञात होता है कि नौवीं शताब्दी से पीछे जाने पर पता चलता है कि
दूसरी से तीसरी शताब्दी तक यहाँ पर सातवाहन राजाओं का राज्य रहा है। चौथी सदी में
राजा समुद्रगुप्त ने इस पर विजय प्राप्त कर लिया और पाँचवी-छठवीं सदी तक उनके वंशज
यहाँ राज्य करते रहे। पाँचवी-छठवीं सदी में यह क्षेत्र कुछ काल तक शरभपुरी राजाओं
में के अधिकार में रहा फिर नल वंश के शासक यहाँ शासन करने लगे। बाद में इस क्षेत्र
का नियन्त्रण सोमवंशी राजाओं के हाथ में आ गया जिन्होंने सिरपुर को अपनी राजधानी
बनाया था। सोमवंशी राजाओं में महाशिवगुप्त बालार्जुन सर्वाधिक पराक्रमी राजा रहे, उन्हीं की माता रानी वत्सला ने सिरपुर में लक्ष्मण
मन्दिर का निर्माण करवाया था। उल्लेखनीय है कि सिरपुर का प्राचीन नाम 'श्रीपुर’ था
और 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग श्रीपुर आया था जिसने
श्रीपुर के 70 मंदिरों व 100 विहारों
का उल्लेख किया है।

साथ ही उसमें यह भी उल्लेख है कि विश्वास किया
जाता है कि रायपुर नगर का अस्तित्व नौवीं शताब्दी से है तथा प्राचीन रायपुर
वर्तमान रायपुर के दक्षिण पश्चिम में बसा था जिसका विस्तार खारून नदी तक था।
14 वीं सदी में रतनपुर
राजवंश के राय ब्रह्मदेव ने रायपुर को फिर से बसाया था तथा यहाँ अपनी राजधानी बनाई
थी। सन् 1460 में एक किले का निर्माण किया गया था जो कि आज
पूर्णत: नष्ट हो चुका है। किले के दो तरफ
दो तालाब थे जो कि आज भी विद्यमान हैं तथा विवेकानन्द सरोवर (बूढ़ा तालाब) एव महराजबन
तालाब के नाम से जाने जाते हैं। आज जो स्थान किला बगीचा के नाम से जाना जाता हैं
कभी वहाँ पर ही वह किला था और वहाँ पर किला होने के कारण ही उस स्थान का नाम किला
बगीचा पड़ा।

सन् 1818 में रायपुर को अंग्रेजों ने मराठों से हथिया लिया
और वहाँ सन् 1818 से 1830 तक अंग्रेजों
का शासन रहा। सन् 1818 में ही अंग्रेजों ने रायपुर को
छत्तीसगढ़ का मुख्यालय बनाया। सन् 1830 में रायपुर पर फिर से
मराठों का अधिकार हो गया जो कि सन् 1853 तक चला। सन् 1853 में पुन: रायपुर अंग्रेजों के अधीन आ गया और स्वतन्त्रता प्राप्ति तक
उन्हीं का शासन रहा। इम्पीरियल गजेटियर के अनुसार रायपुर पर अंग्रेजों के अधिकार
प्राप्ति के समय रायपुर के प्राचीन मन्दिर दूधाधारी मन्दिर का जीर्णोद्धार हो रहा
था।

सन् 1892 रायपुर में जल वितरण के लिए बलरामदास वाटर वर्क्स,
जिसके मालिक राजनांदगाँव के राजा बलरामदास थे, की स्थापना हुई जो खारून नदी से पानी के वितरण का कार्य करता था।
उन दिनों पीतल के सामान
बनाने का कार्य, लकड़ी पर रोगन
लगाने का कार्य, कपड़ा बुनना, सोनारी
कार्य आदि रायपुर के प्रमुख व्यवसाय थे। रायपुर में दो प्रिंटिंग प्रेस थे जिनमें
अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू और ओड़िया भाषा
में छपाई का कार्य होता था। यहाँ पर एक संग्रहालय भी था जिसका निर्माण सन् 1875 में हुआ था, तथा यह संग्रहालय आज भी 'महंत घासीदास संग्रहालय’ के नाम से मौजूद है।
शिक्षा के लिए राजकुमार
कॉलेज ( जहाँ पर राजा, जमींदारों,
जागीरदारों एवं रईसों की सन्तानों को ही दाखिला दिया जाता था) के
साथ ही गवर्नमेंट हाई स्कूल भी था, इसके अलावा और भी कई
स्कूल थे। चिकित्सा के लिए अनेक डिस्पेंसरीज़ भी थे।
सम्पर्क: अवधिया पारा चौक, पीपल झाड़ के पास,
रायपुर (छ.ग.)- 492 001, मो. 08004928599,
रायपुर (छ.ग.)- 492 001, मो. 08004928599,
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