- ज़हीर कुरैशी
जिन्दगी में जो आए नहीं,
हम उन्हें भूल पाए
नहीं।
सात फेरों के पश्चात्
भी,
आप दिल में समाए नहीं।
ऐसे महलों के मालिक हैं
हम,
जो कभी जगमगाए नहीं।
वो है मित्रों में सबसे
सफल,
जिसने मौके गँवाए नहीं।
खुल के रोने को...
एकान्त में,
तुमने आँसू बचाए नहीं?
सच- बयानी के कारण भी, यार,
हम किसी को सुहाए नहीं।
पूरी उसकी दुआ हो गई,
हाथ जिसने उठाए नहीं।
2.याद-दर-याद
दूर तक... भीनी खुशबू
भी है,
चाँदनी रात है, तू भी है।
कितनी मुश्किल से बरसों
के बाद,
साथ लैला के मजनू भी
है।
चाँद को चूमने के लिए,
कल्पना का पखेरू भी है।
आँसुओं की घटा है, मगर,
भावनाओं पे काबू भी है।
तोलकर बोलने के लिए,
मन के अंदर तराजू भी
है।
बात होती नही उसके बाद-
प्यार चुप्पी का जादू
भी है।
फिल्मी की रील-सा है
अतीत,
याद-दर-याद की 'क्यू’ भी है।
सम्पर्क: 108, त्रिलोचन टॉवर, संगम सिनेमा
के सामने, गुरूबख्श की तलैया, स्टेशन
रोड, भोपाल-462001 (म.प्र.), मो. 09425790565, Email-poetzaheerqureshi@gmail.com
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