चम्पा चटकी
-शशि
पुरवार
इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई।
उषाकाल नित
धूप तिहारे
चम्पा को सहलाए ।
पवन फागुनी
लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ।
निंदिया आई
अखियों में और
सपने भरें लुनाई।
श्वेत चाँद-सी
पुष्पित चम्पा
कल्पवृक्ष-सी लागे।
शैशव चलता
ठुमक-ठुमक कर
दिन तितली- से भागे।
नेह- अरक में
डूबी पैंजन
बजे खूब शहनाई।
2 comments:
बेहतरीन...बधाई शशि जी !!
बहुत सुन्दर! शशि जी को हार्दिक बधाई!
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