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Aug 14, 2013

प्रिय बहना

प्रिय बहना
मुरलीधर वैष्णव

सहोदर थे हम
फिर मेरे लिए
खुशी की लहर,
तो तेरे आने से
क्यों बरपा कहर।

हम शैशव की शान थे
किलकारी हो या रुदन
हमारे सहगान थे।

माँ से पूछूँ या बापू जाने
मैं जाता स्कूल जब
तू क्यों जाती बकरी चराने।

चौका- बर्तन तक सिमटी तुम
होती रही जार जार
मैं अनवरत पाता रहा
कंचों से कम्प्यूटर तक प्यार।

मैं लुटाता स्वर्ण- मोहरें
तू कौडिय़ाँ गिनती रही
मैं नहाता दूध से
तू छाछ को तकती रही।

मेरे लिए ममता की नदी
तुझसे छीनी तेरी अपनी सदी।

इन रेशमी धागों की आन
मोती चुगेगी हंसिनी
तेरी अपनी होगी उड़ान।

हे शतरूपा ! अब न सहना
प्रिय सहोदरा मेरी प्रिय बहना।

 संपर्क'गोकुल’, ए-77, रामेश्वर नगरबासनी प्रथम फेज,
जोधपुर- 342005,  Email- mdvaishnav.1945@gmail.com

1 comment:

  1. बहुत सुंदर!
    काश! आप जैसे हर कोई सोचे....

    ~सादर!!!

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