- मुरलीधर वैष्णव
सहोदर थे हम
फिर मेरे लिए
खुशी की लहर,
तो तेरे आने से
क्यों बरपा कहर।
हम शैशव की शान थे
किलकारी हो या रुदन
हमारे सहगान थे।
माँ से पूछूँ या बापू जाने
मैं जाता स्कूल जब
तू क्यों जाती बकरी चराने।
चौका- बर्तन तक सिमटी तुम
होती रही जार जार
मैं अनवरत पाता रहा
कंचों से कम्प्यूटर तक प्यार।
मैं लुटाता स्वर्ण- मोहरें
तू कौडिय़ाँ गिनती रही
मैं नहाता दूध से
तू छाछ को तकती रही।
मेरे लिए ममता की नदी
तुझसे छीनी तेरी अपनी सदी।
इन रेशमी धागों की आन
मोती चुगेगी हंसिनी
तेरी अपनी होगी उड़ान।
हे शतरूपा ! अब न सहना
प्रिय सहोदरा मेरी प्रिय बहना।
संपर्क: 'गोकुल’, ए-77, रामेश्वर नगर, बासनी प्रथम फेज,
जोधपुर- 342005,
1 comment:
बहुत सुंदर!
काश! आप जैसे हर कोई सोचे....
~सादर!!!
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