मैदान में खेल
देखने का आनन्द
यूँ तो मुझे खेलों में कोई खास
दिलचसपी नहीं है मगर ऐसा भी नहीं है कि आँखों के सामने कोई खेल चल रहा हो और मुझे
बोरियत महसूस होने लगे। सबसे पहले आपको बता दूँ कि विम्बलडन (Wimbledon) लंदन में एक कस्बे का नाम है। वैसे मैंने इससे पहले कभी किसी खेल को
उसके मैदान में सीधा नहीं देखा था मगर इस बार किस्मत से हमें विम्बलडन का महिलाओं
द्वारा खेला जाने वाला फ़ाइनल मैच देखने को मिल ही गया यहाँ लंदन में रहकर विम्बलडन
कोर्ट में जाकर खेल देखना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। आप को जानकार आश्चर्य
होगा कि जुलाई 2014 के खेलों के लिए पब्लिक बेलट (Public Ballot) 1 अगस्त 2013 से खुलेगा और आपको दिसम्बर तक फॉर्म भर कर भेजना पड़ेगा, फिर लाटरी प्रक्रिया से जो किस्मत वाले लोगों का नाम निकलेगा उनको फरवरी 2014 तक बताया जाएगा, तब आप उनकी साइट पर जाकर राशि जमा करें और आपके घर टिकट भेज दिया जाएगा । यह
प्रकिया सिर्फ Centre Court और Court no.1के लिए है। जो लोग किसी कारण नहीं जा
पाते हैं वो वापस कर देते हैं क्योंकि टिकट किसी और को नहीं दिया जा सकता। यह टिकट
फिर मैच के एक दिन पहले टिकटमास्टर.कॉम पर बेचा जाता है और कुछ मिनट में सारे बिक
जाते हैं मगर उसके लिए भी जेब में अच्छे खासे पैसे और किस्मत दोनों का होना ज़रूरी
है। यहाँ आपको बता दूँ इस बार पुरुषों के फ़ाइनल खेल का सबसे महँगा टिकिट 80 हजार पाउंड का बिका है। इस बात से ही आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यहाँ इस
खेल को देखने के लिए किस कदर पागल रहते है लोग।
हमें भी हमारे श्रीमान् जी की
कृपा से यह सुनहरा और पहला अवसर मिला इस खेले को सीधे कोर्ट में बैठकर देखने का, जिसका अपना एक अलग ही मज़ा है। हमें दो टिकिट 250
पाउंड के मिले थे तीसरा नहीं मिल सका इसलिए अपने बेटे को मुझे अपनी एक दोस्त के घर
छोड़कर जाना पड़ा और किस्मत बहुत अच्छी थी कि टिकट भी वहाँ का मिला जहाँ से
खिलाड़ी कोर्ट में आते और जाते हैं, इस कारण हमें दोनों खिलाड़ियों
का ऑटोग्राफ भी मिल गया।
खैर खेल के कोर्ट में
बड़े-बड़े खिलाडिय़ों को सामने से देखना ऐसा लग रहा था मानो वो इंसान नहीं कोई
अजूबे हों। पूरा कोर्ट खचाखच भरा था। आपको यहाँ यह जानकार भी शायद आश्चर्य हो कि
टेनिस ही एक मात्र ऐसा खेल हैं जिसमें दूर -दूर तक कहीं भी विज्ञापन का कोई रोल
नहीं है, ना ही कोर्ट में और
ना ही टीवी पर ही खेल के दौरान आपने कभी कोई विज्ञापन देखा होगा। है ना आश्चर्य की
बात! वहाँ हम ने यह भी देखा कि लोग एक खिलाड़ी को ज्यादा और दूसरे को कम बढ़ावा दे
रहे थे जबकि दोनों ही खिलाड़ी ब्रिटेन की नहीं थी फिर भी जाने क्यों लोगों ने सबीन
को ज्यादा सपोर्ट किया जो कि जर्मनी से है। लेकिन फिर भी जीती वही महिला जिसको
जनता का सपोर्ट कम मिला अर्थात Marion जो फ्रांस से है।
यद्यपि खेल के दौरान जनता का झुकाव और बढ़ावा भी बहुत बड़ी चीज़ होती है। मगर फिर
भी आखिर काबलियत भी कोई चीज़ होती है भई, जीतता वही है
जिसमें दम हो।
आजकल लंदन में पिछले कुछ दिनों
से मौसम भी बहुत अच्छा चल रहा है मतलब 28 डिग्री यानी सूर्य नारायण की भरपूर कृपा बरस रही है आजकल यहाँ जो आमतौर
पर बहुत ही कम होता है यहाँ, जिसके चलते बेहद गरमी है लोग
हाहाकार कर रहे है। उस दौरान हमे भी यही लग रहा था कि अभी तो हम छाँव में बड़े
मज़े से बैठे हैं ; मगर जब सूर्य नारायण
की दिशा बदलेगी और उनका प्रकोप हम पर भी पड़ने लगेगा तब हमारा क्या होगा। हमारी यह
चिंता शायद हमारे चहरे पर भी दिखाई देने लगी थी। इसलिए वहाँ हमारे पास खड़े गार्ड
ने हमे बताया कि आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है आप बहुत ही किस्मत वाले हैं जो
आपको यहाँ सीट मिली है यहाँ धूप आते ही हम ऊपर का शेड (Retractable roof ) आपके लिए खोल देंगे। पहले हमें
लगा शायद वह मज़ाक कर रहा है लेकिन वो मज़ाक नहीं सच था। हम पर धूप आते ही हमारे
साइड का ऊपर का कवर थोड़ा सा खोल दिया गया। यहाँ मैं आपको यह भी बताती चलूँ कि
केवल सेंट्रल कोर्ट में ही यह व्यवस्था है जो खिलाडिय़ों और वहाँ बैठी जनता को धूप
और पानी से बचा सकता है बाकी अन्य कोर्ट में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है । वहाँ यदि बारिश हो जाये तो खेल बीच में ही
रोकना पड़ता है। इसलिए इस दौरान होने वाले
सभी महत्वपूर्ण मैच केवल सेंट्रल कोर्ट में ही खेले जाते है। हमने भी गर्मी का लुत्फ़
उठाते हुए वहाँ (पिम्म्स पेय) पीकर और ठंडी-ठंडी स्ट्रॉबेरी के साथ ठंडी-ठंडी
क्रीम डालकर खायी, सच मज़ा आ गया था खाकर,वो भी HSBC
बैंक की मेहरबानी थी जिसका जाइंट खाता था उसके कारण फ्री में यह स्ट्रॉबेरी और
क्रीम खायी और खूब मज़ा आया खेल देखकर जैसा कि मैंने उपर्युक्त कथन में भी लिखा है
खिलाड़ियों के हस्ताक्षर (Autograph) भी लिये।
महिलाओं के खेल का तो हमने
भरपूर मज़ा लिया और जि़ंदगी भर के लिए इन मीठी यादों को अपने दिल में सजा लिया।
पुरुषों के खेल का मज़ा हमने घर बैठकर टीवी पर ही लिया ,जबकि मन पुरुषों के खेल को
देखने का ही ज्यादा था । टिकिट मिली महिलाओं वाले खेल की,
फिर भी हम बहुत खुश थे। पुरुषों वाले खेल के खत्म हो जाने के बाद जब
यह जाना कि यह ट्रॉफी ब्रिटेन में 77 साल के बाद आयी है यह सोचकर लोग ज्यादा खुश हो रहे हैं ।और लोगों
की तो छोड़ो जीतने वाला Andy Murray वो भी ऐसा ही सोचता है
यह जानकार बहुत अफसोस हुआ क्योंकि महिलाओं के साथ हमेशा हर जगह दुनिया के किसी भी
कोने में दोगला व्यवहार ही होता आया है और शायद हमेशा ही होता रहेगा। जब भी यह बात
ज़ेहन में आती है एक आग सी लग जाती है दिल के अंदर की खेल में भी दोगलापन क्यों?
क्या महिलाओं को कम मेहनत लगती है टैनिस खेलने में जो उनकी विनर को सिर्फ एक
सुनहरी प्लेट दी जाती है और पुरुषों को पूरा कप क्यों? अभी
तक लगता था यह दोगलापन केवल हमारे यहाँ ही ज्यादा देखने को मिलता है। मगर अब यहाँ
ऐसा देखकर लगा सभी जगह महिलाओं की स्थिति एक सी ही है कहीं कोई फर्क नहीं है। जबकि
Murray से पहले एक
महिला खिलाड़ी 1977 में भी यह Wimbledon जीत चुकी है तो 77 साल बाद नहीं बल्कि पहले भी यह जीत ब्रिटेन को एक महिला (Virginia
Wade) दिला चुकी है। मगर उसका कहीं किसी ने नाम तक नहीं लिया आप
चाहे तो इस लिंक पर पूरी जानकारी पढ़ सकते है
http:// ftw.usatoday.com/2013/07/andy-murray-virginia-wade-first-brit-wimbledon/
जहाँ तक पुरुषों के फाइनल को देखने
की बात है कि लोग उसके पीछे इतना पागल क्यों थे कि इतना महंगा बिका उसका टिकिट तो
वो सिर्फ इसलिए कि इस बार केवल यह ही दो प्रसिद्ध खिलाड़ी टिक पाए बाकी सब मशहूर
लोग इस बार जल्दी बाहर हो गए थे। जब उनके खेल देखे रहे थे तब ऐसा लग रहा था जैसे
इस बार सभी मशहूर खिलाड़ियों ने यह मन बना लिया है कि इस बार नए खिलाड़ियों को आगे
आने का मौका देंगे। जबकि वास्तविकता यह नहीं होगी, मगर लग ऐसा ही रहा था और यही वजह थी कि पुरुषों का खेल देखने के लिए लोग
ज्यादा पागल थे। मगर इस सब के बीच यह देखकर मन को तसल्ली हुई थी कि और कुछ हो न हो
महिलाओं के खेल को देखने के लिए भी लोग उतने ही पागल थे , मतलब जनता ने खेल देखने
के मामले में दोगलापन न दिखाते हुए इंसाफ किया क्योंकि महिलों के खेल वाले दिन भी
पूरे कोर्ट में कहीं पैर रखने की जगह नहीं थी पूरा कोर्ट खचाखच भरा हुआ था यकीन ना
आए तो खुद ही देख लिए इस तस्वीर में...)
संपर्क: संपर्क: द्वारा- डॉ. एस के
सक्सेना, 27/1 गीतांजलि कॉम्पलेक्स, गेट
नं. 3 (भोपाल म. प्र.)
Email-pallavisaxena80@gmail.com
2 comments:
ओह, इस बार तो मेरा आलेख भी शामिल है। आभार रत्ना जी साथ ही पत्रिका के 5 वर्ष पूर्ण होने की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें।
रोचक... :)
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