- हरी राम यादव
दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने काम से ऐसा नाम कर जाते हैं, जो कि एक इतिहास बन जाता है और यह इतिहास आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का काम करता है। सैन्य इतिहास में बहुत- सी ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिन पर वर्तमान समय और परिस्थिति में यकीन करना मुश्किल होता है; क्योंकि युद्ध की परिस्थितियाँ और उनका आधार बिल्कुल अलग होता है। एक ऐसे ही वीर योद्धा, जिन्होंने युद्ध क्षेत्र में ऐसा प्रदर्शन किया जिससे दुश्मन सेना भौंचक्की रह गई थी। साल था 1962 का और युद्ध का स्थान था चुशूल।
19 अक्टूबर की रात में चीनी सेना ने फॉरवर्ड पोस्टों पर अपने हमलों की शुरूआत की, यह छुटपुट रूप से 27 अक्टूबर तक चली। 27 अक्टूबर और 18 नवंबर के बीच लड़ाई में एक विराम था। इस अवधि का उपयोग दोनों देश की सेनाओं ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए किया। सेकंड लेफ्टिनेंट श्यामल देव गोस्वामी की यूनिट 13वीं फील्ड रेजिमेंट को 114 ब्रिगेड के अंतर्गत लद्दाख में चूशुल की रक्षा के लिए भेजा गया। जिस समय इनकी यूनिट को युद्ध में भेजा गया उस समय इनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था और यह अस्पताल में भर्ती थे। जब इनको पता चला की इनकी यूनिट को युद्ध में जाने का आदेश मिला है, तो यह सैनिक अस्पताल से व्यक्तिगत रूप से डिस्चार्ज लेकर अपनी यूनिट में पहुँचे । इन्हें गुरुंग हिल पर ऑब्जर्वेशन पोस्ट अधिकारी के रूप में तैनात किया गया। वहाँ पर इनकी जिम्मेदारी 1/8 गोरखा राइफल्स को कवरिंग फायर प्रदान करना था । 18 नवंबर को सुबह 5:30 बजे चीनी सेना ने गुरुंग हिल के साथ-साथ स्पांगुर गैप और मगर हिल में स्थित भारतीय चौकियों पर भारी बमबारी शुरू कर दी। 1/8 गोरखा राइफल्स की दो कंपनियाँ गुरुंग हिल के विशाल क्षेत्र की रक्षा कर रही थीं। सैनिकों ने पहाड़ी पर बंकर बना रखे थे और उनको कंटीले तारों और एंटी-पर्सनल माइंस से सुरक्षित कर रखा था।
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एक दिन बाद जब सेकंड लेफ्टिनेंट गोस्वामी होश में आए और किसी तरह अपनी पोस्ट से नीचे बेस कैंप में पहुँचे, तो उन्हें दो गोरखा सैनिकों ने देखा और चिकित्सा सहायता के लिए ले गए। शुरुआत में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था; लेकिन उनके शरीर में अचानक हुई हलचल ने कुछ और ही संकेत दिया। उन्हें शीघ्र दिल्ली के सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया । बर्फ में काफी समय तक पड़े रहने के करण उनके दोनों पैरों और दाहिने हाथ पर गंभीर शीतदंश का प्रभाव हो गया था, जिसके कारण उनके दोनों पैरों को घुटनों के नीचे से और दाहिने हाथ की अँगुलियों को काटना पड़ा। रोटेरियन क्लब ने अच्छे इलाज के लिए उन्हें जर्मनी भेजा। बाद में सेकंड लेफ्टिनेंट गोस्वामी को पदोन्नत कर मेजर बनाया गया और चिकित्सीय आधार पर सेवानिवृत्त कर दिया गया । युद्धभूमि में प्रदर्शित वीरता के लिए उन्हें युद्धकाल के दूसरे सबसे बड़े सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह भारतीय तोपखाना के पहले अधिकारी हैं जिन्हें यह वीरता सम्मान मिला है। मौत को मात देने वाले इस बहादुर यौद्धा का निधन जून 1992 में हो गया।
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| श्यामल देव गोस्वामी (दाएं से दूसरे) अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ। |
सेकंड लेफ्टिनेंट श्यामल देव गोस्वामी का जन्म 06 नवंबर 1938 को मेरठ के एक बंगाली परिवार में प्रोफेसर प्रिया कुमार गोस्वामी और श्रीमती अमोला सान्याल गोस्वामी के यहाँ हुआ था। उन्होंने मेरठ के एक ईसाई मिशनरी स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की और उच्च शिक्षा के लिए ग्वालियर के माधव इंजीनियरिंग कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमीशन लिया। इसी बीच उनका चयन राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के लिए हो गया। उन्होंने अपना सैन्य प्रशिक्षण भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून से पूरा किया और 11 जून 1961 को भारतीय सेना की तोपखाना रेजिमेंट में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन मिला। सेकंड लेफ्टिनेंट गोस्वामी के माता पिता का निधन हो चुका है, इनके परिवार में इनकी तीन बहनें लेफ्टिनेंट कर्नल अशोका (सेवानिवृत्त), श्रीमती दीपाश्री मोहन, श्रीमती मधु और एक भाई जयंत गोस्वामी हैं जो कि एक बिजनेस मैन हैं और हांगकांग में रहते हैं।
सेकंड लेफ्टिनेंट श्यामल देव गोस्वामी एक बहादुर और उच्च हौसले वाले अधिकारी थे। उनकी वीरता और कर्तव्यपरायणता की याद में जिला सैनिक कल्याण कार्यालय मेरठ में एक प्रतिमा लगाई गई है और मेरठ में इनके नाम पर एक पार्क का नामकरण किया गया है ।
सम्पर्कः सूबेदार मेजर (आनरेरी), hariram1511@gmail.com, मो. 7087815074


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प्रेरणादायी शौर्य गाथा। ऐसे वीरों को दिल से सलाम। सुदर्शन रत्नाकर
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