- प्रिया आनंद
रन का नाम सुनते ही जो तस्वीर
सामने आती है, वह है मीलों तक
फैला सूखा वीरान क्षेत्र जहाँ बादल कभी-कभार ही आसमान में दिखते हैं, किसी समय ऐसे बादलों को देख कर बच्चे पूछते थे- ये क्या हैं और बुजुर्ग
जवाब देते थे- ये बादल हैं।
फिलहाल यह कुछ सालों पहले की
बात है। भुज में आए भूकंप ने सारा परिदृश्य ही बदल कर रख दिया है,
अब बादल आते हैं, झूम कर बरसते हैं और बच्चे
बादल तथा इंद्रधनुष का अर्थ जानने लगे हैं। रन के बादलों की एक और खासियत है-यहाँ गहरे काले बादल नहीं आते,
स्लेटी, हल्के स्याह और कपासी बादल साथ-साथ
आते हैं... भारहीन, हवा के पंखों पर तैरते हुए दोस्तों की
तरह गलबहियाँ डाले, बारिश खूब तेज हवा के बंवडर की तरह गोल
घूमती हुई नीचे आती है।
रन में साल्ट फ़ार्मिग का
विस्तृत क्षेत्र है, जगह-जगह
समुद्री पानी के साथ नमक के ढेर लगे हैं ; जिन्हें ट्रकों में भरकर रिफायनरी में
ले जाया जाता है। यह रन भारत के गुजरात और पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र में फैला हुआ
है तथा विश्व के न.1 नमक क्षेत्र में आता है। रन को साल्ट
मार्श भी कहते है। पूरा रन दो भागों में विभक्त है : बड़ा रन-छोटा रन।
वैसे देखें तो कुछ हद तक ग्रास
लैंड और रन ने ही कच्छ का विकास किया है, ग्रेट रन में प्रवासी पक्षियों का खूबखूब संसार है। जाड़े के मौसम में फ्लेमिंगों
पक्षियों से पूरा रन गुलाबी दिखाई देता है। यहाँ 13
प्रजातियाँ तो सिर्फ लार्क की हैं, छोटा रन में भी मार्श
लैंड है । यहाँ भी प्रवासी पक्षियों की भरमार है।
रन का जो सबसे बड़ा आकर्षण है ,
वह है भारतीय जंगली गधों का अभयारण्य। पहले ये घनी झाडिय़ों के बीच ही होते थे ; पर
अब ये नाल सरोवर तक देखे जाते हैं। रन के बड़े और खुले हिस्से में इन्हें झुंडों
में देखा जाता है। ये हल्के पीच कलर के होते हैं जिन पर गुलाबी पैच होते हैं।
इन्हें देखकर घोड़े, हिरन और गधे
के मिलेजुले रूप का आभास होता है। जैसे कि इन सब जानवरों के गुण लेकर गधे की एक नई
प्रजाति बन गई हो। ये काफी मजबूत होते हैं । और 24 किलोमीटर
प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ सकते हैं।
यह अभयारण्य 1972 में स्थापित किया गया, कहा जाता है कि गुजरात का यह
साल्ट डेजर्ट किसी समय समुद्र का छिछला हिस्सा था। कटीली झाड़ियाँ यहाँ बहुतायत में
पाई जाती है। किताबों में पढ़ने के बाद मैने पहली बार कच्छ का रन देखा। अब रन में
दूर तक फैली , कीकर
के पेड़ों की हरियाली है। बढ़ते रन को रोकने के लिए कीकर के बीज हवाई जहाज़
से गिराए गए... फिर बारिश ने इस क्षेत्र को हरियाली से भरपूर कर दिया। इसी हरियाली
के किनारे मैंने ऊँटों कर कारवाँ देखा, उत्तर में राजस्थान
दक्षिण में महाराष्ट्र पूर्व में मध्यप्रदेश तथा पश्चिम में अरब सागर इस क्षेत्र
को सुंदर बनाते हैं। कच्छ के लोग कच्छी भाषा बोलते हैं। इसके अलावा सिंधी, मेमूली और हिंदी भी बोली जाती है। भुज, यहाँ की
हस्तकला का मुख्य केंद्र है। कच्छ कढ़ाई और बाँधनी का उद्योग यहाँ खूब फलाफूला है।
यहाँ होने वाले रन उत्सव को
सिंफनी ऑफ साल्ट कहते हैं। रन उत्सव रंगों का कार्निवल है जिसे दिसंबर की फुल मून
लाइट अविस्मरणीय बन देती है। कच्छ की दस्तकारी और गुजराती फोकडांस से यह उत्सव और
आकर्षक बन जाता है।
कच्छ के रंग और हरियाली
परिवर्तन मन मोह लेने वाला है।
००००
मांडवी किसी समय कच्छ था एक
बड़ा बंदरगाह था। आज भी 400
साल पुराना शिव बिल्डिंग का कारखाना है। यह जहाज़ बनाने का कारखाना अपने पुराने
इतिहास के लिए अधिक जाना जाता है। हालाँकि यहाँ छोटे जहाज़ अधिक बनते है पर इनका
इस्तेमाल गल्फ़ कंट्रीज में ज्यादा होता है।
रूक्मावती नदी यहाँ आकर कच्छ
से मिलती है, यह दो ट्रेडस्ट का
जंक्शन रहा है, आज भी मसाले, रूई और
ऊँट का व्यापार इस जगह को काफी व्यस्त रखता है, यहाँ के लोग
ब्रहमक्षत्रिय, भाटिया, लोहान, खवास, दाउदी वोहरा, मेमन खत्री
और जैन हैं।
गुजरात की मातृभाषा गुजराती है, पर 12 प्रतिशत लोग उर्दू बोलते हैं। हिंदी और मराठी
भी बोली जाती है, भुज यहाँ की हस्तकला का मुख्य केंद्र है। ज़्यादातर
लोग शाकाहारी है। भाखरी, दाल, कढ़ी
सब्जी और छाद मांडवी के लोगों का मुख्य भोजन है। मांडवी में बने जहाज़ दुबई और
दक्षिण अफ्रिका तक माल लाद कर ले जाते हैं।
जब इन गर्मियों में मैंने बेटे
के पास गुजरात जाने का प्रोग्राम बनाया था, तो कच्छ का रन और मांडवी बीच हमारे प्रोग्राम में पहले नंबर पर था। मांडवी
जाते हुए हमें रास्तें में एक टर्किश गाँव मिला ; जिसका नाम दब था। इन लोगों का जहाज़
यहाँ कभी डूब गया था। जो बच गए और यहाँ तक आ गए वे लौट कर गए नहीं। एक गाँव और भी
है जिसमें नीग्रो परिवार रहते हैं। इनका भी जहाज़ डूबा ये बच कर निकल आए और वापस
नहीं गए यहाँ सिलसिलेवार छोटे-छोट गाँव हैं जिनमें सुंदर कोनिकल पक्के घर बने हैं।
यहाँ झोपड़ियाँ नहीं दिखतीं और हर गाँव के
आगे सुंदर प्रवेशद्वार है। सड़क से थोड़ी दूर पर मीलों तक खजूर के जंगल हैं। यहाँ
खजूर की बागबानी होती है। लाल, नारंगी रसीले खजूर...।
ड्राइवर ने हमें बताया कि
एक-एक गुच्छे में 60 किलो तक खजूर
होते हैं।
मांडवी बीच पर जाने से पहले हम
विजय विलास पैलेस गए। यहाँ हम दिल दे चुके सनम की शूटिंग हुई थी,
पैलेस आकार में बहुत बड़ा नहीं है पर बहुत खूबसूरत है। वास्तु शैली
सुंदर है, झरोखों में बनी संगमरमर की जालियाँ कलाकारी का
सुंदर नमूना है।
हम मांडवी के प्राइवेट बीच पर
गए यह कॉमन नहीं है और खास लोगों का पर्यटकों के लिए ही खुलता है,
यहाँ बैठकर हमने काफी देर तक समुद्र को अठखेलियाँ करते देखा। दूर...
एक बड़ा जहाज़ दिखाई दिया...। थोड़ी देर बाद वह आगे बढ़ गया और नजरों से ओझल हो
गया। दूर एक जोड़ा सागर में अंदर की ओर थोड़ा आगे जाकर लहरों के बीच खड़ा था।
लड़की बहुत सुंदर थी। उसने सफेद कैप पहन रखी थी और लड़के ने लाल कैप। वे आपस में
बोल नहीं रहे थे, बस चुपचाप लहरों को
महसूस कर रहे थे। वे बाहर निकल कर आए तो मैंने देखा... लड़की सिर से पाँव तक ढकी
थी। यहाँ तक कि उसका आधा चेहरा ढका हुआ था।
हम कॉमन बीच पर भी गए। यहाँ
काफी भीड़ लोग समंदर में नहा रहे थे... ऊँटों की सवारी कर रहे थे। बच्चे बेतरह शोर
रहे थे। यहाँ दुकानें थी... गंदगी भी काफी थी। दूर एक फिशिंग बोट लहरों पर तैर रही
थी। भारत के बीच खूबसूरत हैं पर मांडवी कीर बात ही और है । यहाँ का अछूता एहसास
मुझे हमेशा याद रहेगा।
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