धरा पर रंग
- अनुपमा त्रिपाठी
1
उर-पटल
हैं स्मृति की रेखाएँ
मिट न पाएँ।
2
पलकों में है
मोती-से अनमोल
छुपे रतन।
3
सजल नैन
भरी जीवन-पीर,
डबडबाएँ।
4
मन-सागर
है वेदना असीम
सूखे नयन।
5
सूरज डूबे
ढेरों रश्मियाँ लिये
डूबती आशा।
6
बर्फ-सी ठंडी
संवेदनाएँ हुई
शिथिल मन।
7
अथाह पीड़ा
बस मौन ही रहूँ
किससे कहूँ ....?
8
ज्यों टूटकर
गिरते पीले पात
बीते हैं लम्हें ।
9
कुछ तो कहो
ऐसे चुप न रहो
नदी-से बहो।
10
ठिठक गई
मूक-सी हुई जब
संवेदनाएँ।
11
मानवता ही
परम दया धर्म
एक मुस्कान।
12
सृजन खिला
संवेदनशील हो
तरंग बना।
13
रंग-बिरंगे
हैं धरा पर रंग
पुष्प बिखरे।
14
बीन-बटोर
शब्द-शब्द सुमन
गूँथी है माला ।
15
अर्पण करूँ
प्रभु तुमरे द्वार
शब्द-संसार।
16
शब्दों से तुम
सजाते मेरा मन
कविता खिले।
17
शब्द की कथा
कहे मन की व्यथा
भावना बहे।
18
कैसे रचाऊँ ?
नित नया सृजन
ये शब्द पूछें ...!
19
पंख पसार
उड़ जा उस पार
संदेसा ले जा।
20
उड़े बयार
शब्द उड़ा ले जाएँ
कुछ न सूझे।
21
हुए हैं एक
मिल धरा-गगन
सृष्टि मगन।
22
पसरा मौन
बिखरे हैं सुमन
आया है कौन ...?
23
खिली लालिमा
देती अब सन्देश
मिटी कालिमा।
24
छूकर तुम्हें
आई है मेरे द्वार
लेखिका के बारे में: जन्म- 13-05-63 शिक्षा- एम.ए(अर्थशास्त्र)1984
में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय(जबलपुर)। संगीत विशारद
(संगीत) 2006 में
प्रथम श्रेणी में। वर्तमान में संगीत अलंकार कर रहीं हैं। व्यावसायिक अनुभव
अर्थशास्त्र की व्याख्याता 1984-85 जबलपुर में। 2010 में क्वालालंपुर मलेशिया में TEMPLE OF FINE ARTS में
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत पढ़ाया।
संगीत के कई कार्यक्रमों में गाया और 'यादें’ नामक सी.डी में भी गाकर अपना योगदान दिया। ब्लॉग http://anupamassukrity.blogspot.com/
पर कविताएँ और लेख। http://swarojsurmandir.blogspot.com/ पर संगीत के विषय में जानकारी। Email- tripathi_anupama@yahoo.com
2 comments:
बहुत सुंदर, भावपूर्ण हाइकु... अनुपमा जी!
हार्दिक बधाई!
~सादर!!!
utkrist haikuz ..naman :)
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