जिंदगी
- सुकेश साहनी
पेट में जैसे कोई आरी चला रहा
हैं... दर्द से बिलबिला रहा हूँ....। पत्नी के ठंडे, काँपते हाथ सिर को सहला रहे हैं। उसकी आँखों से टपकते आँसुओं की गरमाहट
अपने गालों पर महसूस करता हूँ। उसने दो दिन का निर्जल उपवास रखा है। माँग रही है
कैंसर ग्रस्त पति का जीवन ईश्वर से। ...ईश्वर? ....आँखों पर
जोर डालकर देखता हूँ, धुँध के उस पार वह कहीं दिखाई नहीं
देता...।
घर में जागरण है। फिल्मी गीतों की
तर्ज पर भजनों का धूम-धड़ाका है। हाल पूछने वालों ने बेहाल कर रखा है। थोड़ी-थोड़ी
देर बाद कोई न कोई आकर तसल्ली दे रहा है, ''सब ठीक हो जाएगा, ईश्वर का नाम लो।....ईश्वर?....फिल्मी धुनों पर आँखों के आगे थिरकते
हीरो-हीराइनों के बीच वह कहीं दिखाई नहीं देता....
नीम बेहोशी के पार से घंटियों की
हल्की आवाज सुनाई देती है। ऊपरी बलाओं से मुझे मुक्ति दिलाने के कोई सिद्ध पुरूष
आया हुआ है...। नशे की झील में डूबते हुए पत्नी की प्रार्थना को जैसे पूरे शरीर से
सुन रहा हूँ, ''इनकी रक्षा करो, ईश्वर!’....ईश्वर?....मंत्रोच्चारण
एवं झाड़-फूँक से उठते हुए धुँए के बीच वह कहीं दिखाई नहीं देता...
श्मशान से मेरी अस्थियाँ चुनकर नदी
में विसर्जित की जा चुकी हैं। पत्नी की आँखों के आँसू सूख गए हैं। मेरी मृत्यु से
रिक्त हुए पद पर वह नौकरी कर रही है। घर में साड़ी के पल्लू को कमर में खोंसे,
वह काम में जुटी रहती है। मेरे बूढ़े माँ-बाप के लिए बेटा और बच्चों
के लिए बाप भी बनी हुई है। पूजा पाठ (ईश्वर) के लिए अब उस समय नहीं मिलता।
....ईश्वर?...वह उसकी आँखों से झाँक रहा है!
बेटी का खत
'खैरियत तो है न?’ पत्नी ने पूछा, 'क्या लिखा है?’
'सब कुशल-मंगल है,’ आवाज में कंपन था।
'फिर पढ़ते ही घबरा क्यों गए?’
पत्नी बोली, फिर उसके हाथ से चिट्ठी लेकर खुद पढऩे लगी।
खत खैरियत वाला ही था। बेटी ने
माँ-बाप की कुशलता की कामना करते हुए अपनी राजी-खुशी लिखी थी,
अंत में लिखा था-राजू भइया की बहुत याद आती है। पत्र पढ़ने के बाद
पत्नी निश्चिंत होकर रसोई में चली गई।
जब लौटी तो देखा पति अभी भी उस खत को एकटक घूरे जा रहा है, चेहरा ऐसा मानो किसी ने सारा खून निचोड़ लिया हो।
पत्नी को देखते ही उसने सकपकाकर खत
एक ओर रख दिया। सहज होने का असफल प्रयास करते हुए बोला,
'सोचता हूँ, कल रजनी बेटी के पास हो ही आऊँ।’
पत्नी ने उसके पीले उदास चेहरे की
ओर ध्यान से देखा, फिर रुँधे गले से
बोली, 'आखिर हुआ क्या है? अभी कल ही तो
दशहरे पर बेटी के यहाँ जाने की बात कर रहे थे, फिर अचानक ऐसा
क्या जो... तुम्हें मेरी सौं जो कुछ भी छिपाओ!’
इस बार वह पत्नी से आँख नहीं चुरा
सका,
भर्राई आवाज में बोला, 'पिछली दफा रजनी ने
मुझे बताया था कि ससुराल वाले उसकी लिखी कोई चिट्ठी बिना पढ़े पोस्ट नहीं होने देते,
तब मैंने उससे कहा था कि भविष्य में अगर वे लोग उसे तंग करें और वह
हमें बुलाना चाहे तो खत में लिख दे- राजू भइया की बहुत याद आती है। इस बार उसने खत
में यही तो लिखा है’- कहते हुए बूढ़े बाप की आँखें छलछला आर्इं।
जागरूक
लड़की अपनी धुन में मस्त चली जा रही
थी। रात के सन्नाटे में उस आधुनिका के सैंडिलों से उठती खट्-खट् की आवाज काफी दूर
तक सुनाई दे रही थी। जैसे ही वह उस पॉश कालोनी के बीचों बीच बने पार्क के नजदीक
पहुँची,
वहाँ पहले से छिपे बैठे दो बदमाश उससे छेड़छाड़ करने लगे।

वे लड़की को पार्क में झुरमुट की ओर
खींच रहे थे। उनके चंगुल से मुक्त होने के लिए वह बुरी तरह छटपटा रही थी।
तभी वहाँ से गुजर रहे एक लावारिस
कुत्ते की नजर उन पर पड़ी। वह जोर-जोर से भौंकने लगा। जब उसके भौंकने का बदमाशों
पर कोई असर नहीं हुआ तो वह बौखलाकर इधर-उधर दौडऩे लगा। कभी घटनास्थल की ओर आता तो
कभी किसी कोठी के गेट के पास जाकर भौंकने लगता मानो वहाँ रहने वालों को इस घटना के
बारे में सूचित करना चाहता हो। उसके इस प्रयास पर लोहे के बड़े-बड़े गेटों के उस
पार तैनात विदेशी नस्ल के पालतू कुत्ते उसे हिकारत से देखने लगे।
संघर्षरत लड़की के कपड़े तार-तार हो
गए थे,
हाथ-पैर शिथिल पड़ते जा रहे थे। बदमाशों को अपने मकसद में कामयाबी
मिलती नजर आ रही थी।
यह देखकर गली का कुत्ता मुँह उठाकर
जोर-जोर से रोने लगा। कुत्ते के रोने की आवाज इस बार कोठियों से टकराकर वापस नहीं
लौटी ; क्योंकि वहाँ रहने वालों को अच्छी तरह मालूम था कि कुत्ते के रोने से घर
में अशुभ होता है। देखते ही देखते तमाम कोठियों में चहल-पहल दिखाई देने लगी। छतों
पर बालकनियों पर बहुत से लोग दिखाई देने लगे।
उनके आदेश पर बहुत से वाचमैन
लाठियाँ-डंडें लेकर कोठियों से बाहर निकले और उस कुत्ते पर पिल पड़े।
ओएसिस
मिक्की की आँखों में नींद नहीं थी।
वह पिल्ले को अपने पास नहीं रख पाएगा, सोच
कर उसका मन बहुत उदास था। पिल्ले को लेकर ढेरों सपने बुने थे पर घर आते ही सब कुछ
खत्म हो गया था। माँ ने पिल्ले को देखते ही चिल्लाकर कहा था, 'अरे, यह क्या उठा लाया तू? तेरे
पिता जी ने देख लिया तो किसी की भी खैर नहीं। उन्हें नफरत है इनसे। जा, इसे वापस छोड़ आ।’ दादी माँ ने बुरा सा मुँह बनाया
था, 'राम-राम! कुत्ता सोई जो कुत्ता पाले। बाहर फेंक इसे।’
यह सब सुनकर उसे रोना आ गया था। कितनी खुशामद करने पर दोस्त पिल्ला
देने को राजी हुआ था। चूँकि दोस्त का घर दूर था इसलिए एक रात के लिए उसे पिल्ले को
घर में रखने की इजाजत मिली थी। पिता जी के आने से पहले ही उसने बरामदे के कोने में
टाट बिछाकर उसे सुला दिया था।

दादी की नींद उचट गई थी,
वह करवटें बदल रही थीं। आखिर वह उठ कर बैठ गर्इ।
आने वाली भयावह स्थिति की कल्पना से
ही उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसे लगा दादी पिल्ले को घूरे जा रही हैं।
दादी ने दाएँ-बाएँ देखा...पिल्ले को
उठाया और पायताने लिटा कर रजाई ओढ़ा दी।
संपर्क: 193121,
सिविल लाइंस, बरेली -243001, Email- sahnisukesh@gmail.com
3 comments:
maarmikta liye huye ..dil ko gahre chhu gaye .....par vastvikta se najar nahi fera ja sakta
उदंती के जुलाई अंक में सुकेश साहनी जी की लघुकथाएँ जिन्दगी,बेटी का खत,जागरूकता,ओएसिस पढ़कर वर्तमान समाज की स्थिति व मानव मन के भावों का दर्पण देख मन द्रवित हो गया। सुकेश जी की वर्षो पहले लिखी हुई कहानी इमिटेशन भी याद आ गई जिसे पढने के बाद ही से लघुकथाओं के प्रति मेरा एक विशेष आर्कषण प्रारम्भ हुआ था। आज भी वह कहानी मेरे जहान में अंकित है । लघुकथा जागरूकता और जिन्दगी पढ़कर बस वाह। ही निकलती है। सुकेश जी जैसा लेखक ही मानव मन व स्थितियों का इतना सुन्दर चित्रण कर सकता है। वह सदा यूं ही लिखते रहें।
सीमा स्मृति
दंती के जुलाई अंक में सुकेश साहनी जी की लघुकथाएँ जिन्दगी,बेटी का खत,जागरूकता,ओएसिस पढ़कर वर्तमान समाज की स्थिति व मानव मन के भावों का दर्पण देख मन द्रवित हो गया। सुकेश जी की वर्षो पहले लिखी हुई कहानी इमिटेशन भी याद आ गई जिसे पढने के बाद ही से लघुकथाओं के प्रति मेरा एक विशेष आर्कषण प्रारम्भ हुआ था। आज भी वह कहानी मेरे जहान में अंकित है । लघुकथा जागरूकता और जिन्दगी पढ़कर बस वाह। ही निकलती है। सुकेश जी जैसा लेखक ही मानव मन व स्थितियों का इतना सुन्दर चित्रण कर सकता है। वह सदा यूं ही लिखते रहें।
सीमा स्मृति
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