वक्त के नाम
- हरेराम समीप
चलो एक चिट्ठी लिखें,
आज वक्त के नाम
पूछें दु:ख का सिलसिला,
होगा कहाँ तमाम ।
शायद अपने वक्त के,
नहीं इरादे नेक
नदी सुखाने वास्ते,
हुए किनारे एक ।
पृष्ठ -पृष्ठ पर सनसनी,
मार- काट , व्यभिचार
आँखें घायल कर गया,
रोज़ सुबह अखबार ।
कौन पढ़े अब चार हो,
दो से दो का जोड़
साँठ-गाँठ से जब बनें,
दो के बीस करोड़ ।
कैसे पूरी हो सके,
नए समय की साध
जब है अपनी सोच में,
प्रेम एक अपराध ।
अजब सियासत देश की,
गजब आज का दौर
ताला कोई और है,
चाबी कोई और ।
आया तानाशाह का,
आज सख्त आदेश
अनशन पर हो जाएगा,
स्यूसाइड का केस ।
अनशन, धरना, रैलियाँ, मारपीट,
हड़ताल
आम आदमी देश का,
है गुस्से से लाल ।
अंधा नृप,
गूँगी प्रजा, बहरे थे सामन्त
चलो बताओ शीर्षक,
और कथा का अन्त ।
व्यापारी अब कर रहे,
राजनीति से मेल
हरे पेड़ पर ही चढ़े,
अमरबेल की बेल ।
होना था उनको अलग,
कब तक रहते तिक्त
इस पुल के सीमेंट में,
मिट्टी थी अतिरिक्त ।
संपर्क: 395
सेक्टर 8 फरीदाबाद 121006, मो. 9871691313
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