इतिहास बन जाएगा अब टेलीग्राम
21वीं सदी में टेक्नॉलाजी के
विकास एवं संचार व सूचना क्रांति ने बहुत सारी बातों को पीछे छोड़ दिया है। एक दौर
में जिन तकनीकों को अपरिहार्य माना जाता था, वही अब अतीत की
चीज बनकर रह गये हैं। नयी पीढ़ी इन्हें या तो म्यूजियम में देखती है, या तो इन्टरनेट पर खंगालती है। ऐसी ही एक सेवा टेलीग्राम (तार) अब अतीत की
वस्तु बनने वाली है। स्मार्ट फोन, ईमेल और एसएमएस के मौजूदा
दौर में अब 160 साल पुरानी टेलीग्राम सेवा को सरकार ने 15 जुलाई से बंद करने का फैसला किया है। एक समय में तेजी से और आवश्यक संचार
के लिए मुख्य स्त्रोत मानी जाने वाली इस सेवा ने देशभर में कई लोगों के लिए खुशी
और गम के समाचार पहुँचाए हैं, लेकिन नई तकनीक के आने और
संचार के नए साधनों से टेलीग्राम खुद को किनारे पा रहा है।
आज मोबाइल-इंटरनेट के दौर में
नवीनतम तकनीक से संवाद चल रहा है, लेकिन एक
जमाने में जल्द संदेश भेजने का एकमात्र जरिया टेलीग्राम या तार ही था। डाकिया
द्वारा यह सुनकर कि टेलीग्राम आया है, सुनकर कलेजा मुँह को आ
जाता था। लोग मनाने लगते, कोई बुरी खबर न आए। कुछेक मामलों
में टेलीग्राम खुशखबरी भी लाता। शहरों में कामकाज के लिए आने वाले लोग अपने
घर-परिवार को या फिर उनके परिवार के सदस्य जल्द संदेश के लिए टेलीग्राम ही भेजा
करते थे। दूर देश से अपने परिचितों को जल्दी से जल्दी संदेश भेजने का माध्यम भी तब
टेलीग्राम या तार ही हुआ करता था। नौकरियों की सूचना भी टेलीग्राम या तार से आती
थी। इसके लिए देश के सभी इलाकों में सरकार ने तार-घर खोले हुए थे।
टेलीग्राम का भी अपना लम्बा इतिहास
रहा है। वर्ष 1837 में महान अमेरिकी वैज्ञानिक
सैमुअल मोर्स ने मोर्स कोर्ड टेलीग्राफ की खोज करके दुनिया में संचार क्रांति को
नया रूप दिया था। 19वीं सदी में जब टेलीफोन की खोज नहीं हुई
थी उस समय संकेत के द्वारा संदेश एक जगह से दूसरी जगह तक भेजे जाते थे। सैमुएल
मोर्स ने इसका निर्माण वैद्युत टेलीग्राफ के माध्यम से संदेश भेजने के लिए किया
था। 1840 के दशक में संदेश भेजने की इस नई पद्धति का नाम
मोर्स कोड टेलीग्राफ दिया। उसके बाद लंबी दूरी की सूचनाओं को प्रेषित करने और
प्राप्त करने के यंत्र को टेलीग्राफ और उन संदेशों को टेलीग्राम कहा जाने लगा। इस
दौर में टेलीग्राम मोर्स कोड के जरिए भेजे जाते थे। मोर्स कोड में वस्तुत: एक लघु
संकेत तथा दूसरा दीर्घ संकेत प्रयोग किया जाता है। मोर्स कोड में कुछ भी लिखने के
लिए लघु संकेत के रूप में डाट का प्रयोग तथा दीर्घ संकेत के लिए डैश का प्रयोग
किया जाता है। इसके अलावा मोर्स कोड के लघु और दीर्घ संकेतों के लिए अन्य चिह्न भी
प्रयुक्त हो सकते हैं जैसे- ध्वनि, पल्स या प्रकाश आदि।
इसका प्रचालन समय के साथ भले ही कम
होता गया,
पर अभी भी मोर्स कोड पद्धति का इस्तेमाल कई जगह पर गुप्त संदेश
भेजने के लिए किया जाता है। पानी के जहाज पर अभी भी इसके जरिए संदेश भेजे जाते
हैं। आसानी से पकड़े नहीं जाने के कारण गुप्तचर भी इस पद्धति का प्रयोग करते हैं।
सेना के सिग्नल रेजिमेंट में इसका बहुत काम है। मोर्स कोड का इस्तेमाल प्रथम और
द्वितीय विश्वयुद्ध में जमकर किया गया। मोर्स कोड के जरिए संदेश को कोड के रूप में
बदलकर टेलीग्राफ लाइन और समुद्र के नीचे बिछी केबलों के द्वारा एक जगह से दूसरी
जगह भेजा जाता था। संदेश पहुँचने के बाद इसे डीकोड करके लोगों तक भेजा जाता था।
भारत में ब्रिटिश काल के दौरान 1851 में कोलकाता और डायमंड हार्बर के बीच पहली टेलीग्राफ सेवा शुरू हुई। वर्ष
1854 में ब्रिटेन सरकार ने भारत के लिए पहला टेलीग्राफी एक्ट
पास किया। उसी साल व्यवस्थित तरीके से देश में डाक विभाग की स्थापना हुई। उसके
अधीन देश भर के 700 पोस्ट ऑफिस थे। टेलीग्राफ विभाग को भी
डाक विभाग के साथ संबद्ध कर दिया गया और उसका नाम पोस्ट और टेलीग्राफ विभाग हो
गया। आज भी अधिकतर लोग डाक विभाग को डाक-तार विभाग के नाम से ही जानते हैं। वर्ष 1855 में भारत में सार्वजनिक टेलीग्राम सेवाएँ शुरू हुई। 400 मील तक प्रत्येक 16 शब्द (पता सहित) पर एक रुपये का
चार्ज लिया जाता था। शाम छह से लेकर सुबह छह बजे तक टेलीग्राम के लिए दोगुना चार्ज
लिया जाता था।
इतिहास ने तमाम ऐतिहासिक
टेलीग्रामों को सुरक्षित रखा हुआ है। इसी क्रम में 23 जून, 1870 को पोर्थकुर्नो (इंग्लैंड) से बाम्बे
भेजे गए पहले टेलीग्राम को कांप्लिमेंटरी टेलीग्राम नाम दिया गया था। यह टेलीग्राम
लंदन में बैठे प्रबंध निदेशक ने बाम्बे (अब मुंबई) के प्रबंधक को भेजा था। इसका
जवाब पाँच मिनट में प्राप्त हो गया था। इसके बाद बाम्बे के गवर्नर को भी संदेश
भेजे गए थे। एक संदेश शिमला स्थित वाइसराय को उनकी पत्नी ने भेजा था। यह उस जमाने
में तकनीक का बेजोड़ काम था। खासकर तब जब दो देशों के बीच संदेश पहुँचाने में
महीनों लग जाते थे। पहला संदेश प्रबंध निदेशक एंडरसन ने प्रबंधक स्टेसी को भेजा था
- हाउ आर यू ऑल? इसका जवाब मिला- आल वेल। लंदन से 506 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में अटलांटिक तट पर स्थित कॉर्नवाल में यह
पोर्थकुर्नो घाटी है। इसी जगह से टेलीग्राम क्रांति की शुरुआत भी मानी जाती है।
यहाँ से ब्रिटेन और इसके पूर्व उपनिवेश आपस में बातचीत करते थे।
नब्बे के दशक की शुरुआत से तार का
आकर्षण कम होना शुरू हुआ और नब्बे का दशक बीतने के बाद मोबाइल-इंटरनेट की तेज गति
ने इसे हाशिये पर डाल दिया। 1984 में पोस्ट
और टेलीग्राफ विभाग दो भागों में विभाजित होकर डाक विभाग और दूरसंचार विभाग
कहलाया। दरअसल इस सेवा को बनाए रखने पर बीएसएनएल को सालाना करीब 400 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा था। गिरते राजस्व से परेशान सरकार ने मई,
2010 में अंतर्देशीय सेवाओं के लिए टेलीग्राम दरों में पिछले 60 वर्षों में पहली बार बढ़ोत्तरी की थी। इनको साढ़े तीन और साढ़े चार रूपये
से बढ़ाकर साढ़े 27 रुपये किया गया। यहाँ तक कि दो महीने
पहले विदेश के लिए टेलीग्राम सेवाओं को बंद कर दिया गया। अन्तत: टेलीग्राम सेवा से
लगातार गिरते राजस्व के बाद सरकार ने बीएसएनएल बोर्ड को फैसला लेने का अधिकार दिया
और उसने डाक विभाग से सलाह-मशविरे के बाद टेलीग्राम सेवा को 15 जुलाई से बंद करने का फैसला किया।
टेलीग्राम सेवा भले ही खत्म कर दी
जाय,
पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह सिर्फ संदेश ही नहीं देता था,
बल्कि कई मौकों पर अदालत में बतौर प्रमाण भी इसका इस्तेमाल किया
जाता रहा है। सीमा पर तैनात जवानों व ग्रामीण अंचलों के लिए तो यह दूत का काम करता
था। नौकरी की नियुक्ति पत्र हो या शोक संदेश या फिर स्थानांतरण की सूचना, टेलीग्राम वक्त पर यह सूचना संबंधित को देता था। एक जमाने में तेज और
संचार का मुख्य स्त्रोत मानी जाने वाली यह सेवा स्वाधीनता आंदोलन सहित कई मौके का
गवाह रही है। इसकी लोकप्रियता इस कदर थी कि कई हिंदी फिल्मों में इसे केंद्र में
रख कर कहानी लिखी गयी।
वस्तुत: टेलीग्राम की तकनीक मोर्स
कोड ने बेतार संचार के क्षेत्र में एक ऐसा रास्ता खोला जो आगे चलकर संचार क्रांति
में बदल गया। इससे आगे चलकर टेलीफोन और मोबाइल क्रांति का सूत्रपात हुआ। एक तरह से
यह वायरलेस तकनीक की शुरूआत थी और इसी के आधार पर आगे चलकर टेलीफोन,
मोबाइल और सेटेलाइट फोन का आगमन हुआ। यह तकनीक पुरानी हो जाने के
बावजूद अभी भी काफी प्रासंगिक है और सेना, नौसेना और हैम
रेडियो में इसका इस्तेमाल किया जाता है। कई बार सरकारी कार्यालयों में भी आपात् स्थिति
हेतु इसका उपयोग किया जाता रहा है। टेलीग्राम और तार-घर अब भले ही इतिहास बन जाएँगे
लेकिन उनका अतीत हमेशा जिंदा रहेगा।
संपर्क: इलाहाबाद परिक्षेत्र,
इलाहाबाद
(उ.प्र.)-211001 मो.-08004928599
Email-kkyadav.y@rediffmail.com
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