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जानी-मानी विज्ञान पत्रिका जियोलॉजी में उपलब्ध जानकारी
व आँकड़ों के आधार पर दावा किया गया है कि विश्व में भू- स्खलन के कारण होने वाली
मौतों की संख्या वास्तव में पहले के अनुमानों की अपेक्षा दस गुना अधिक है। यह 'डरहम फेटल लैंडस्लाइड डैटाबेस’
के आधार पर कहा गया है। जानलेवा भूस्खलनों सम्बंधी आँकड़ों व
जानकारियों के इस कोश को ब्रिटेन के डरहम विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्त्ताओं ने
तैयार किया है।
पहले
के अनुमान बताते थे कि वर्ष 2004 से 2010 के बीच भूस्खलनों के कारण
3000 से 7000 मौतें हुईं। इस नए
डैटाबेस ने बताया गया है कि इस दौरान भूस्खलनों से 32,300
मौतें हुईं। अधिक भूस्खलन वाले क्षेत्रों में भारत के अनेक पर्वतीय क्षेत्र भी
बताए गए हैं। इन अनुसंधानकर्ताओं ने कहा है कि इस नए डैटाबेस से उपचार व रोकथाम के
उपाय करने में सरकारों को मदद मिलेगी व इस तरह अनेक बहुमूल्य जीवन बचाए जा सकेंगे।
इस
अनुसंधान का भारतीय संदर्भ में महत्त्व स्पष्ट है; क्योंकि हाल के वर्षों में भूस्खलनों से होने
वाली भीषण क्षति के समाचार वैसे भी बढ़ते ही जा रहे हैं। हाल ही में उत्तराखंड में
भारी बारिश व बाढ़ से हुई भयानक क्षति में भू- स्खलन की अहम भूमिका थी। भू-स्खलन
सम्बंधी राष्ट्रीय स्तर के आँकड़े सहजता से हमारे देश में उपलब्ध नहीं होते हैं,
पर
बहुत-सी छिटपुट जानकारी विभिन्न पर्वतीय राज्यों में बिखरी हुई हैं। ज़रूरत इस बात
की है कि राष्ट्रीय स्तर पर इस आपदा के महत्त्व को समझ कर इस सम्बंधी उपचार, रोकथाम व सहायता के उपायों पर
समुचित ध्यान दिया जाए।
विशेषकर
इस ओर विशेष ध्यान देना ज़रूरी है कि पर्वतीय क्षेत्र में किन मानवीय कारणों व
गलतियों से भू-स्खलन के कारण होने वाली क्षति बढ़ी है। एक बड़ी वजह तो यह है कि
विभिन्न निर्माण कार्यों,
विशेषकर बांध निर्माण तथा खनन के लिए, पर्वतीय
क्षेत्रों में विस्फोटकों का अंधाधुंध उपयोग किया गया है। इस
कारण
भू-स्खलन की संभावना बढ़ गई है। इसको नियंत्रित व नियमित करना ज़रूरी है। वन विनाश
भी भू-स्खलन की संभावना बढऩे का एक अन्य बड़ा कारण रहा है।
भू-स्खलन अपने आप में तो बड़ी आपदा है ही, साथ में वे बाढ़ को और उग्र
करते हैं व बहुत विनाशकारी व अचानक आने वाली बाढ़ का कारण भी बनते हैं। यदि हिमालय
में किसी नदी का बहाव भू-स्खलन के मलबे के कारण रुक जाता है तो इससे कृत्रिम अस्थायी
झील बनने लगती है। अंत में पानी का वेग अधिक होने से जब यह झील फूटती है तो बहुत
प्रलयंकारी बाढ़ आ सकती है, जैसे कनोडिया गाड में झील बनने
के कारण उत्तरकाशी में बाढ़ आई थी। इन संभावनाओं के मद्देनजऱ भू-स्खलन की संभावना
को कम करने तथा जहाँ खतरनाक भूस्खलन होते हैं वहाँ उपचार करने पर समुचित ध्यान
देना चाहिए। भू-स्खलन प्रभावितों को समुचित सहायता समय पर पहुँचनी चाहिए।
(स्रोत फीचर्स)
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