सुख से अनजान
- ज़हीर कुरैशी
वो जो धनवान होते नहीं,
सुख से अनजान होते नहीं।
उनसे डरती हैं कठिनाइयाँ,
जो परेशान होते नहीं।
वो जो आसान लगते रहे,
वो भी आसान होते नहीं।
दान को मत कलंकित करो,
देख कर दान होते नहीं।
कैसे कह दूँ कि इंसान के,
मन में शैतान होते नहीं।
कोशिशों से ही निकलेंगे हल,
यूँ समाधान होते नहीं
हर किसी आदमी के लिए
मान के पान होते नहीं।
पत्थर की पूजा
प्राण की जब प्रतिष्ठा हुई,
तो ही पत्थर की पूजा हुई।
प्यार से उनसे मुझको छुआ,
यूँ भी मन की चिकित्सा हुई
सबके चेहरों पे उभरा तनाव,
घर में जब भी समस्या हुई।
मुस्कुराए कुटिलता से आप,
शब्द बिन, यूँ भी हिंसा हुई
स्वप्न में वो था बीमार-सा,
इसलिए मुझको चिन्ता हुई।
लोग फँसने लगे द्वैत में,
जब भी उनकी परीक्षा हुई।
सिर उठाती मिली वासना,
भंग जब-जब तपस्या हुई।
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