ऐसे खेली होरी
- शैली चतुर्वेदी
सीस धरो तुम्हरे चरनन में,
अब छोड़ देयो बनवारी,
भीज गयी मोरी धानी चुनर और,
भीजी मोरी सारी,
मोकों काय रंगत हो कान्हा,
बे तो,
सखियन ने दी गारी,
मैं तो तुम्हरी जनम जनम तों,
सबहूँ ते तुमकों प्यारी ....
तज दये अबिर,
गुलाल,
पिचकारी हू भू पै डारी,
रंग रंगी मैं तो तुम्हरे ही,
प्रेम रस में भीजी तिहारी ...
चातक,
मोर, पपीहा बोलें बन में,
टेसूअन ने,
मादक गंध पसारी,
फूल रही सरसों खेतन में,
मंद मंद हंसत जाये सुकुमारी,
गारी देत जात मन मन में,
भरसक करत चिरौरी,
बिनती सुनत कान्हा हंस दीन्हो,
स्याम रंग दीन्ही बांकी गोरी,
सब रंग रंगे बाके ही रंग में,
ऐसी खेली होरी .......
संपर्क:
Y-41, Regency Park II,
DLF Phase IV,
Sushant Lok Ph. I, Gurgaon-122009
3 comments:
bahut sunder rachna h shaily.
bahut sunder rachna h shaily.
अनंत बधाइयाँ |
सादर
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