छत्तीसगढ़ में फाग
की परम्परा
- जी.के.अवधिया
फागुन
महीने में रक्तवर्ण पुष्पों से सुसज्जित पलाश के पत्रविहीन वृक्ष,
आम्रमंजरियों से सुशोभित आम्रवृक्ष, पीले मखमल
सदृश दृष्टिगत होते सरसों के खेत, गेहूँ की लहलहाती बालियाँ,
मादक सुगंध लिए हुए शीतल मंद बयार किसी भी व्यक्ति के रसिक मन को
मदमस्त बना देते हैं, रसिकता जाग उठती है, कोमल भावनाएँ उद्दीप्त होने लग जाती हैं और उसके कंठ से अनायास ही
स्वरलहरी फूट निकलती है। शायद यही कारण है कि सम्पूर्ण उत्तर भारत में फागुन के
महीने में फाग गाने की परम्परा है। इन फाग गीतों में कहीं प्रथम देव गणेश को मनाया
जाता है तो कहीं अन्य देवताओं को, कहीं भगवान राम की रामलीला
होती है तो कहीं कृष्ण-मुरारी की रासलीला एवं गोपी प्रेम। भक्ति रस और शृंगार रस
के अनोखे संगम हैं ये फाग गीत!
फागुन में फाग गीत गाने की
परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। शायद इस परम्परा का आरंभ तब से हुआ होगा जब से मानव
मन के भीतर रसिकता का प्रादुर्भाव हुआ। झांझ, मंजीरे, ढोल, डफ, नगाड़े आदि के ताल धमाल पर गाये जाने वाले फाग गीत अनायास ही पाँवों को
थिरकाने लगते हैं और आदमी झूम उठता है।
छत्तीसगढ़ में फाग गीत गाने का
आरम्भ वसन्त पंचमी के दिन से ही हो जाता है जो कि रंग पंचमी तक चलते रहता है। पहला
फाग शुरू होता है प्रथम पूज्य देव को मनाने से -
गणपति को मनाय प्रथम चरण गणपति
को मनाय
एक दंत गज मुख लम्बोदर
सेन्दुर तिलक बरनि ना जाय
प्रथम चरण गणपति को मनाय
माँगत हौं बर दुइ कर जोरे
देहु सिद्धि कछु बुधि अधिकाय
प्रथम चरण गणपति को मनाय
राजीवलोचन के छत्तीसगढ़ के
प्रमुख देव होने के कारण गणपति को मनाने के बाद उनका भजन किया जाता है -
भजु राजिम लोचन नाथ हमारे पतित
उधारन तुम आए
लोक लोक के भूपति आए
तोरे चरन में सिर नाए
पतित उधारन तुम आए
इत पैरी उत महानदी है
बीच कुलेसर नाथ सुहाए
पतित उधारन तुम आए
फाग गीत में भगवान श्री
रामचंद्र जी की रामलीला का भी अनेक प्रकार से वर्णन किया जाता है जैसे कि -
निकल चले दोनों भाई बन को निकल
चले दोनों भाई
आगे-आगे राम चलत हैं पीछे लछमन
भाई
माँझ-मँझोलन सिया जानकी
चित्रकूट बन जाई
बन को निकल चले दोनों भाई
रिमझिम रिमझिम मेघा बरसे पवन
चले पुरवाई
बन को निकल चले दोनों भाई
राम बिना मोरी सूनी अयोध्या
लखन बिना ठकुराई
सीता बिना मोरी सूनी रसोई कौन
करे चतुराई?
बन को निकल चले दोनों भाई
माता कौसल्या घर में रोवे बाहर
में भरत भाई
राजा दशरथ प्राण तजत हैं
कैकेयी पछताई
बन को निकल चले दोनों भाई
रावण मार राम घर आये घर-घर बजत
बधाई
माता कौसल्या आरती उतारैं शोभा
बरनि ना जाई
बन को निकल चले दोनों भाई
श्री कृष्ण की रासलीला के
वर्णनों से तो फाग गीत अँटे पड़े हुए हैं -
कालीदह जाय,
कालीदह जाय
छोटे से श्याम कन्हैया
छोटे-मोटे रुखवा कदंब के
भुइयाँ लहसै डार,
भुइयाँ लहसै डार
ता पर बइठे कन्हैया
मुख मुरली बजाय,
मुख मुरली बजाय
छोटे से श्याम कन्हैया
सब सखियन गोकुल के
दही बेचन जाय,
दही बेचन जाय
बीच में मिल गै कन्हैया
दही लुट -लुट खाय,
दही लुट- लुट-खाय
छोटे से श्याम कन्हैया
साँखुर खोल गोकुल के
राधा पनिया जाय,
राधा पनिया जाय
बीच में मिल गै कन्हैया
गले लियो लिपटाय,
गले लियो लिपटाय
छोटे से श्याम कन्हैया
ऐसा नहीं है कि फाग गीत के
विषय सिर्फ भक्ति-भाव ही हों, एक
फाग में, जिसे बारहमासी के नाम से जाना जाता है, विरहिन की व्यथा का सुन्दर वर्णन किया गया है -
नींद नहिं आवै पिया बिना नींद
नहिं आवै
सखि लागत मास असाढ़ा मोरे
प्रान परे अति गाढ़ा
अरे वो तो बादर गरज सुनावै
परदेसी पिया नहि आवै
पिया बिना नींद नहिं आवै
सखि सावन मास सुहाना सब सखियाँ
हिंडोला ताना
अरे तुम झूलव संगी सहेली मैं
तो पिया बिना फिरत अकेली
पिया बिना नींद नहिं आवै
सखि भादों गहन गंभीरा मोरे नैन
बहे जल नीरा
अरे मैं तो डूबत हौं मँझधारै
मोहे पिया बिना कौन उबारै
पिया बिना नींद नहिं आवै
सखि क्वाँर मदन तन दूना मोरे
पिया बिना मंदिर सूना
अरे मैं तो का से कहौं दु:ख
रोई मैं तो पिया बिना सेज न सोई
पिया बिना नींद नहिं आवै
सखि कातिक मास देवारी सब दियना
अटारी बारी
अरे तुम पहिरौ कुसुम रंग सारी
मैं तो पिया बिना फिरत उघारी
पिया बिना नींद नहिं आवै
सखि अगहन अगम अंदेसू मैं तो
लिख लिख भेजौं संदेसू
अरे मैं तो नित उठ सुरुज
मनावौं परदेसी पिया को बुलावौं
पिया बिना नींद नहिं आवै
सखि पूस जाड़ अधिकाई मोहे पिया
बिना सेज ना भाई
अरे मोरे तन मन जोबन छीना
परदेसी गवन नहिं कीना
पिया बिना नींद नहिं आवै
सखि माघ आम बौराये चहुँ ओर
बसंत बिखराये
अरे वो तो कोयल कूक सुनावै
मोरे पापी पिया नहिं आवै
पिया बिना नींद नहिं आवै
सखि फागुन मस्त महीना सब सखियन
मंगल कीन्हा
अरे तुम खेलव रंग गुलालै मोहे
पिया बिना कौन दुलारै
पिया बिना नींद नहिं आवै
एक फाग में कर्म की गति के
बारे कहा है -
गति तुम्हरो नहि जानी रे माधव
गति तुम्हरो नहि जानी
सतजुग में हरिश्चन्द्र भये
राजा सत्य ही सत्य बखानी
नित उठि दान लेत मरघट में भरत
डोम घर पानी
गति तुम्हरो नहि जानी
त्रेता में रावन भये राजा सोने
की लंका बनानी
इक लख पुत्र सवा लख नाती कोऊ न
लकड़ी लानी
गति तुम्हरो नहि जानी
द्वापर में दुर्योधन राजा छत्र
चले अगुवानी
कौरव पाण्डव युद्ध करत भये मिट
गया वंश निशानी
गति तुम्हरो नहि जानी
आल्हा-ऊदल की वीरता का बखान
करते हुए वीर रस के अनेक फाग हैं।
पहले पूरे एक महीने तक नित्य
फाग गाने का प्रचलन था, रात्रि भोजन
के पश्चात् लोग एक स्थान पर जुटते थे और घंटों दौर चलता था फाग गाने का। पर आज के
व्यस्त जमाने में होली के दो-चार रोज पूर्व से लेकर होली तक ही फाग गाने का रिवाज
रह गया है। हो सकता है कि आने वाले कुछ सालों के बाद फाग गाने की परम्परा भी दम
तोड़ दे और फाग गीतों को लोग पूरी तरह से भुला बैठें।
2 comments:
बढि़या प्रस्तुति. धन्यवाद और बधाई.
बहुत ही अच्छा फाग गीत है धन्यवाद
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