अमेरिकन रब्बाई और अनेक प्रेरक
पुस्तकों के लेखक जोशुआ लोथ लीबमैन (1907-1948) ने अपने संस्मरणों में लिखा है-
मैं जब युवा था तब जीवन में मुझे क्या पाना है उसके सपने मैं देखता रहता था। एक
दिन मैंने उन चीज़ों की लिस्ट बनाई जिन्हें पाकर किसी को भी पूर्णता की अनुभूति हो
और वह स्वयं को धन्य समझे। उस लिस्ट में स्वास्थ्य, सौंदर्य, समृद्धि, सुयश,
शक्ति, संबल- और भी बहुत सी चीज़े उसमें मैंने
लिख दीं।
उस लिस्ट को लेकर मैं एक
बुजुर्ग के पास गया और उनसे मैंने पूछा- क्या इस लिस्ट में मनुष्य की सभी गुणवान
उपलब्धियाँ नहीं आ जाती हैं?
मेरे प्रश्न को सुनकर और मेरी
लिस्ट में वर्णित उपलब्धियों को देखकर उन बुजुर्ग के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी और
वह बोले- बेटे, तुमने वाकई बहुत
अच्छी लिस्ट बनाई है और इसमें तुमने अपनी समझ के अनुसार हर सुन्दर विचार को स्थान
दिया है। लेकिन तुम इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व तो लिखना ही भूल गए जिसकी
अनुपस्थिति में शेष सब कुछ व्यर्थ हो जाता है। उस तत्त्व का दर्शन विचार से नहीं
वरन अनुभूति से ही किया जा सकता है।
मैं असमंजस में आ गया। मेरी
दृष्टि में तो मैंने लिस्ट में ऐसी कोई चीज़ नहीं छोड़ी थी। मैंने उनसे पूछा- तो
वह तत्त्व क्या है?
इस प्रश्न के उत्तर में उन
बुजुर्ग ने मेरी पूरी लिस्ट को बड़ी निर्ममता से सिरे से काट दिया और उसके सबसे
नीचे उन्होंने छोटे से तीन शब्द लिख दिए:
'मन की शांति
' (Peace of Mind)
पागलपन
एक ताकतवर जादूगर ने किसी शहर
को तबाह कर देने की नीयत से वहाँ के कुँए में कोई जादुई रसायन डाल दिया। जिसने भी
उस कुँए का पानी पिया वह पागल हो गया।
सारा शहर उसी कुँए से पानी
लेता था। अगली सुबह उस कुँए का पानी पीनेवाले सारे लोग अपने होशोहवास खो बैठे। शहर
के राजा और उसके परिजनों ने उस कुँए का पानी नहीं पिया था ; क्योंकि उनके महल में उनका निजी कुआँ था , जिसमें
जादूगर अपना रसायन नहीं मिला पाया था।
राजा ने अपनी जनता को सुधबुध
में लाने के लिए कई फरमान जारी किये ; लेकिन उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा ; क्योंकि
सारे कामगारों और पुलिसवालों ने भी जनता कुँए का पानी पिया था और सभी को यह लगा कि
राजा बहक गया है और ऊलजलूल फरमान जारी कर रहा है। सभी राजा के महल तक गए और
उन्होंने राजा से गद्दी छोड़ देने के लिए कहा।
राजा उन सबको समझाने-बुझाने के
लिए महल से बाहर आ रहा था, तब रानी ने उससे कहा- क्यों न हम भी जनता कुँए का पानी
पी लें! हम भी फिर उन्हीं जैसे हो जाएँगे।
राजा और रानी ने भी जनता कुँए
का पानी पी लिया और वे भी अपने नागरिकों की तरह बौरा गए और बेसिरपैर की हरकतें
करने लगे।
अपने राजा को 'बुद्धिमानीपूर्ण' व्यवहार करते देख सभी नागरिकों ने
निर्णय किया कि राजा को हटाने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने तय किया कि राजा को
ही राजकाज चलाने दिया जाय।
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