समाज को नया
दृष्टिकोण अपनाना होगा
- डॉ. प्रीत
अरोड़ा
आज
भारत विश्व के विकासशील देशों में अग्रणी माना जाता है। जहाँ औद्योगिक क्षेत्र से
लेकर सामाजिक क्षेत्र की दशा व दिशा दोनों में ही अत्यधिक परिवर्तन हुआ है। परन्तु
प्रश्न उठता है कि आज भी समाज की संकीर्ण सोच में आखिर कितना परिवर्तन आया है?
विडम्बना तो यह है कि आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक स्त्री पीडि़त,
शोषित, प्रताड़ित एवं काम-वासना का शिकार बनती
हुई आई है। यह सत्य है कि पितृसत्तात्मक सत्ता के वर्चस्व के कारण नारी का जीवन
सदैव प्रतिबंधित रहा है। पितृसत्तात्मक समाज में नारी का मनोबल कानून व व्यवस्था
आदि पर पुरुषों का कब्जा होता है जहाँ वह नियम, कायदे,
कानून, परम्परा, नैतिकता,
आदर्श, न्याय एवं सिद्धांत द्वारा नारी- जीवन
को नियत्रिंत करने की प्रक्रिया का निर्माण करते हैं और इस तरह वे नियंत्रण करके
नारी- वर्ग पर अपना प्रभुत्व जमाना चाहते हैं जिसके फलस्वरूप शुरू होता है-शोषण का
घिनौना सिलसिला।
शोषण ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा
पितृसत्तात्मक समाज विजयी घोषित होकर नारी को अबला, पददलित व
पराश्रित बना सकता है। इसलिए आज समाज में नारी के साथ होने वाला दैहिक, मानसिक, आर्थिक व शैक्षणिक शोषण का सिलसिला
दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। आज कहने को तो नारी ने जीवन की सभी परिभाषाएँ
बदल दी हैं। वह जीवन में निरर्थक से सार्थक बनकर परीक्षाओं व प्रतियोगिताओं में स्वयं
को सशक्त भी सिद्ध कर रही है। यहाँ तक कि वह अपने पाँवों पर खड़ी होकर स्वाभिमानी
जीवन भी व्यतीत कर रही है इसी कारण वर्ष 2001 को नारी सशक्तीकरण के नाम से भी
घोषित किया गया है परन्तु इतिहास गवाह है कि नारी- समाज का अत्याचारों द्वारा
प्रताडि़त होने के सिलसिले में तेजी से इज़ाफा हो रहा है। आज की स्वतंत्र नारी
भारतीय समाज की संकीर्ण सोच के समक्ष हर नजरिये से परतंत्र बना दी जाती है। जहाँ
उस नारी द्वारा अपने अधिकारों के लिए चलाई गई हर मुहिम भी दम तोड़ती नज़र आती है।
आज भी महिला पढ़ी लिखी हो अथवा अनपढ़,
गृहकार्य में दक्ष गृहस्वामिनी हो या चहारदीवारी लाँघकर अपने कन्धों
पर दोहरा भार उठाने वाली परन्तु उसके प्रति समाज का दृष्टिकोण क्रूर ही नज़र आता
है। ऐसे में उसे पुरुष सन्दर्भ के द्वारा ही पत्नी, माँ,
बहन व बेटी का दर्जा ही प्राप्त होता है, इसके
अतिरिक्त उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं माना जाता।
आज की नारी चाहे घर की चारदीवारी के भीतर हो या
घर से बाहर कार्यक्षेत्र में, शोषण
का दबदबा हर जगह कायम होता जा रहा है। दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार किसी सभ्य
समाज का उदाहरण प्रस्तुत नहीं करता। इस घिनौनी घटना ने पूरे भारतवर्ष को दहला कर
रख दिया। न जाने अभी और कितनी मासूमों की जान ली जाएगी। आज समाज में नारी को बुरी
दृष्टि से देखना, छेड़छाड़, यौन-उत्पीडऩ
व अपहरण जैसी दर्दनाक घटनाएँ अखबारों व टी.वी. चैनलों पर चर्चा का विषय बनती जा
रही हैं। पर क्या कहीं इन बढ़तीं वारदातों को विराम मिल रहा है? दु:ख तो इस बात का है कि नारी- शोषण की असहनीय पीड़ा को मूक साधिका बनकर
सहन करने को विवश हो जाती है। कई बार हिम्मत करके वह कानून के कटघरे में इन्साफ के
लिए गुहार तो लगाती है परन्तु
पितृसत्तात्मक समाज में कानून व्यवस्था कमजोर होने के कारण अत्याचारी
दरिंदे सरेआम रिहा हो जाते हैं और शोषण का अगला इतिहास रचते हैं।
कहीं न कहीं नारी के साथ होने
वाले शोषण के पीछे एक बड़ा कारण परिवार में ही लिंग- भेदभाव करना,
लड़कियों की पराया धन के रूप में मान्यता इत्यादि मानसिकता भी है।
फलस्वरूप उसे वह सारे सुअवसर प्राप्त नहीं होते जिससे उसका बौद्धिक व नैतिक विकास
सुचारू रूप से हो सके। आज भी पारिवारिक परिवेश के अन्तर्गत ऐसे कई हजारों उदाहरण
मिल जाएँगे जहाँ पुरुष कदम-कदम पर नारी से सहयोग की अपेक्षा करता है जिसके कारण
नारी की अपनी खुशियाँ, इच्छायें और अभिव्यक्तियाँ पारिवारिक कल्याण और सुख
शान्ति के नाम पर गौण हो जाती हैं। आज भी आए दिन लड़की के ससुराल वालों की अतृप्त माँगों
के पूरे न होने पर विवाहिता को जलाने या आत्महत्या करने की कोशिश जैसी घटनाएँ
सुनी- सुनाई जाती हैं परन्तु प्रताडऩा का यह सिलसिला कहीं थमता नज़र नहीं आता।
जहाँ आज अत्याचारों से पीडि़त घरेलू नारी की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है वहीं
कार्यक्षेत्र में कामकाजी नारी भी शोषण के चक्रव्यूह में फँसी नज़र आ रही है। कई
बार कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत भी नारी पुरुष के निर्भीक वर्चस्व, स्वार्थपरता व पितृसत्तात्मक शक्ति के कारण भयावह जीवन व्यतीत करती है।
उसे कार्यक्षेत्र में प्रतियोगी, सहयोगी व बॉस जैसे पुरुषों
के व्यग्यं- उपहास एवं बदनाम व्यवहार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यदि हम
एक नज़र पिछड़े इलाकों और ग्रामीण समाज पर भी डालें तो वहाँ नारी की स्थिति और भी
दयनीय है। पिछड़े इलाकों और ग्रामीण समाज में नारी को प्रत्येक क्षेत्र में कमज़ोर
मानकर मानसिक रूप से विखंडित किया जाता है। आज भी वहाँ नारी को घर की दासी,
विलासिता की वस्तु और सन्तान पैदा करने का यंत्र माना जाता है। नारी
को पुरुष के समान स्वतंत्र चिन्तन की छूट नहीं दी जाती है इसका प्रमुख कारण है कि
भारतीय समाज कुण्ठाओं और वर्जनाओं से भरपूर समाज है जहाँ आज भी अनेकानेक प्रकार की
सामाजिक कुरीतियाँ व रूढिय़ाँ बरकरार है।
पितृसत्तात्मक समाज नारी के अधिकारों पर विविध
वर्जनाओं व निषेधों का पहरा बिठा चुका है। जहाँ समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं से
मुक्ति पाना इतना आसान नहीं दिखता। अगर हम आज के पढ़े-लिखे व सभ्य समाज की संकुचित
अवधारणा से मुक्ति पाने के लिए शिक्षा को एक मात्र हथियार माने तो वह भी किस हद तक
सफल सिद्ध हुआ है? मैं मानती हूँ कि
शिक्षा के अभाव में नारी असभ्य, अदक्ष, अयोग्य एवं अप्रगतिशील बन जाती है। परन्तु सच तो यह भी है कि आज सबसे
ज्यादा कामकाजी व पढ़ी- लिखी नारी के साथ ही शोषण के हादसे हो रहे हैं। शिक्षित
होकर भी नारी खुलेआम प्रताडऩा का शिकार होती है।
हर साल आठ मार्च को 'महिला दिवस’ की दुहाई देकर अनेक सम्मेलन , सगोष्ठियाँ व जलसे निकाले जाते हैं। अखबारों व पत्रिकाओं में नारी-
विशेषांक निकाले जाते हैं परन्तु समाज की सोच में कितने प्रतिशत परिवर्तन होता है।
इसका अन्दाज़ा दिनदहाड़े होने वाली वारदातों से लगाया जा सकता है, चूंकि सबके पीछे एक बड़ा कारण
हमारे समाज की संकीर्ण सोच है और जब तक सोच में बदलाव नहीं आएगा तब तक ऐसे ही शोषण
का चक्र अपने भीतर न जाने कितनी नारियों की दासता को समेटता चला जाएगा। हम सिर्फ
और सिर्फ कठपुतली बनकर टी.वी. चैनलों, अखबारों व किताबों में
वारदातों के किस्से पढ़ते एवं देखते रहेंगें। इसलिए आज आवश्यकता है समाज को अपनी
संकीर्ण सोच में बदलाव लाकर एक नया दृष्टिकोण अपनाने की जिससे भारतीय सामाजिक
व्यवस्था में भी बदलाव आएगा और नारी अपने समस्त अधिकारों से परिचित होकर समाज व
परिवार में सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकेगी।
लेखक के बारे मेः
जन्म- 27 जनवरी,
शिक्षा- एमए हिंदी पंजाब विश्वविद्यालय से। मृदुला गर्ग के
कथा-साहित्य में नारी-विमर्श पर शोध-कार्य। अध्ययन एवं स्वतंत्र लेखन व अनुवाद।
आकाशवाणी व दूरदर्शन के कार्यक्रमों तथा साहित्य उत्सवों में भागीदारी, हिंदी से पंजाबी तथा पंजाबी से हिंदी अनुवाद। देश-विदेश की अनेक
पत्र-पत्रिकाओं व समाचार-पत्रों में नियमित लेखन।
संपर्क:
मकान नम्बर- 405, गुरूद्वारे के पीछे,
दशमेश नगर,खरड़, जिला-
मोहाली, पँजाब-140301,फोन नं.
08054617915
Email- arorapreet366@gmail.com
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